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Justice For Mahesh Kumar Verma
Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....
Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015
Wednesday, December 26, 2007
कैसे करूं मैं नववर्ष का स्वागत
कितने आए कितने गए उम्र बीत गए
कहना न होगा हम चाँद सितारों पर पहुँच गए
पर धर्म के राह पर हम अभी तक न आए
नहीं मिलती है अदालत में न्याय
व्याप्त है चारों ओर अन्याय ही अन्याय
जब करो न्याय की बात
तो होगी अन्याय से मुलाकात
लाए हो सौगात तो होगी तुम्हारी बात
नहीं तो खाने पड़ सकते हैं दो-चार लात
बहुत बड़ी है उनकी औकात
भेज सकते हैं निर्दोष को भी हवालात
लौट जाना पड़ता है मुँह लटकाकर
क्योंकि रक्षक बना है भक्षक हथियार उठाकर
पता नहीं कब होगी धर्म की स्थापना
न जाने कैसा होगा आने वाला जमाना
नहीं है कहीं न्याय की सुगबुगाहट
चारों ओर है अन्याय का ही आहट
कैसे करूँ मैं नववर्ष का स्वागत
कैसे करूँ मैं नववर्ष का स्वागत
Friday, December 21, 2007
आज का संसार
छीन लेता है मुख का आहार
पीड़ित के साथ होता है दुराचार
यही तो है आज का संसार
Thursday, December 20, 2007
यह दिल की आवाज़ है
यहाँ सुशासन नहीं कुशासन है
यहाँ रक्षक ही भक्षक है
न्याय मिलने की नहीं आश है
क्योंकि पंच परमेश्वर नहीं पंच पापी है
कोई नहीं अपना है
यह दिल की आवाज़ है
Sunday, December 9, 2007
जमाना हो गया है बेदर्द
दर्द को सह पाना आसान नहीं है
आसानी से मर नहीं सकता
ऐसी स्थिति में जिंदा रहना भी आसान नहीं है
सुनाऊं किसे मैं अपना दर्द
जमाना हो गया है बेदर्द
जो सुनना चाहा मेरा दर्द
जमाना उसे मुझसे दूर किया
जमाना उसे मुझसे दूर किया
क्योंकि जमाना हो गया है बेदर्द
Monday, December 3, 2007
मेरा जीवन नहीं है खुशहाल
तो कोई मुझसे खफा है
कोई विशेष विषय पर मेरा विचार जानना चाहता है
तो कोई मेरे शब्दों से कोसों भागता है
कोई मेरे बारे में विस्तृत जानना चाहता है
तो कोई मेरे नाम से घबराता है
कोई दरवाजा पर करोड़ों लिए खड़ा है
तो कोई दरवाजा पर से (मुझे) भूखों भगाया है
पता नहीं क्या होगा
मत पुछो मेरा हाल
चाहे जो भी होगा
पर अब मेरा जीवन नहीं है खुशहाल
Friday, November 30, 2007
तुमसे जुदाई का दर्द सहा नहीं जाता
तेरे बिना अब रहा नहीं जाता
खाई थी जीवन भर साथ देने की क़समें
खाई थी साथ-साथ जीने-मरने की क़समें
पर बेदर्द जमाना ने ऐसी जुदाई दी
कि फिर पास आना मुश्किल है
तुमसे मिलना मुश्किल है
आपस में बातें करना मुश्किल है
पर तोड़ दो इन सारे बंधनों को
और पास आ जाओ पास आ जाओ
तुमसे जुदाई का दर्द सहा नहीं जाता
तेरे बिना अब रहा नहीं जाता
Wednesday, November 28, 2007
शाकाहारी भोजन : शंका समाधान
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मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन
मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित
http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0
Sunday, November 18, 2007
पंच : परमेश्वर या पापी
Saturday, November 17, 2007
तेरी याद में
जागता हूँ तेरी याद में
खाता हूँ तेरी याद में
पीता हूँ तेरी याद में
लिखता हूँ तेरी याद में
सब कुछ करता हूँ तेरी याद में
हर पल बीतता है तेरी याद में
सब कुछ समर्पित है तेरी याद में
मेरा दिल धड़कता है तेरी याद में
बस तेरी याद में तेरी याद में
मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित
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मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन
http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0
Sunday, November 11, 2007
इतना कष्ट दिया तुने
इतना रुलाया तुने कि अब रोया भी नहीं जाता है
इतना प्यार था तुमसे कि अब साथ छोड़ा भी नहीं जाता है
इतना अन्याय किया तुने कि अब साथ रहा भी नहीं जाता है
तुझे लोगों ने श्रेष्ठ व बुद्धिजीवी समझा
पर तुम सबसे बड़ा पापी व अधर्मी निकला
तुझे लोगों ने दिल का साफ समझा
पर तुम मीठा जहर निकला
तुमसे लोगों न चाहा था उचित व्यवहार
पर तुमने किया सबों के साथ दुर्व्यवहार
तुमपर मैं किया था बहुत ही विश्वास
पर कभी न सोचा था कि तुम करोगे ऐसा आघात
पर अब मुझे नहीं होगी यह बर्दाश्त
क्योंकि तुने किया बहुत ही घिनौना वारदात
एक शंकर था आदि काल में जिसने विष का पान किया
एक शंकर तुम हो जिसने सबका सर्वनाश किया
इतना अन्याय किया तुने कि अब साथ रहा भी नही जाता है
इतना प्यार था तुमसे कि अब साथ छोड़ा भी नहीं जाता है
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यह रचना महेश कुमार वर्मा द्वारा १९.०८.२००६ को लिखा गया था।
Thursday, November 8, 2007
दिवाली दिन है खुशियाँ मनाने का
न कि बाद में पछताने का
दिवाली दिन है बुराई पर अच्छाई के विजय का
न कि जुआ में पैसे बर्बाद करने का
दिवाली दिन है अन्धकार से प्रकाश में जाने का
न कि बम-पटाखा से प्रदुषण फैलाने का
दिवाली दिन है आपस में खुशियाँ बटाने का
न कि बम-पटाखा से घायल होने का
दिवाली दिन है खुशियाँ मनाने का
न कि बाद में पछताने का
आख़िर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मुझे बदनाम व अपमानित किया
आख़िर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया
आखिर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मेरे साथ मार-पिट किया
आखिर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मुझे घर से निकला
चुप क्यों हो
बोलते क्यों नहीं हो
मुझे जवाब चाहिए
आखिर क्या गलती थी मेरी
आख़िर किस गलती की
सजा दे रहे हो मुझे
बोलो, बोलते क्यों नहीं हो
जवाब दो, मुझे जवाब चाहिए
आखिर क्या गलती थी मेरी
यही न कि
मैं तुम्हारे द्वारा बोले गए झूठ का विरोध किया
व तुम्हें सच्चाई बताना चाहा
बस यही न
इसी गलती की सजा दे रहे हो तुम
यानी सच बोलने की सजा
यदि सच बोलना है गुनाह तो जिंदा रहना भी है गुनाह
ठीक है, मर जाउंगा मिट जाउंगा
पर नहीं रहूंगा झूठ को स्वीकारकर
और मेरे मरने के लिए जिम्मेवार होगे तुम
तुम यानी झूठ बोलने के मामला में सबसे खतरनाक
व इस पृथ्वी पर का सबसे बड़ा अन्यायी व पापी व्यक्ति शिव शंकर
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यह रचना महेश कमर वर्मा द्वारा २६.०६.२००६ को लिखा गया था।
LS280
Saturday, November 3, 2007
हमें अपनी मंजिल को पाना है
हर चुनौती को स्वीकारना है
राह में चाहे जो भी बाधा आए
दुश्मन चाहे लाखों कांटा बिछाए
हरेक बाधा को तोड़ना है
हमें अपनी मंजिल को पाना है
अपना कर्म करते जा
जीवन में आगे बढ़ते जा
देखो कभी न तुम मुड़कर
सोचो कभी न तुम रूककर
हर परिस्थिति में बढ़ते जा
हरेक बढ़ा को तोड़ते जा
अपना कर्म करते जा
जीवन में आगे बढ़ते जा
Friday, October 26, 2007
अपराधी बनने का एक कारण यह भी
Thursday, October 25, 2007
आखिर कब तक
क्यों कष्ट देते हो मुझे
क्यों लोगों को गुमराह करते हो तुम
इसीलिए क्योंकि मैं
हमेशा सत्य पर रहा
इसीलिए क्योंकि मैं
कभी झूठ नहीं बोला
इसीलिए क्योंकि मैं
हमेशा तुम्हें अपना समझा
कब तक तपाओगे मुझे
कब तक कष्ट दोगे मुझे
कब तक करोगे तुम अन्याय
कब करोगे तुम मेरे साथ न्याय
क्या तुम कभी नहीं आओगे सच्चाई पर
क्या तुम कभी नहीं करोगे न्याय
मैंने तुम्हें झूठ बोलने के मामला में
सबसे खतरनाक व्यक्ति घोषित किया
मैंने तुम्हें इस पृथ्वी पर का
सबसे बड़ा अन्यायी व पापी व्यक्ति घोषित किया
क्या तुम्हारे अन्याय का अंत नहीं होगा
क्या तुम सच्चाई व इमानदारी पर नहीं आओगे
आखिर क्या चाहते हो तुम
आखिर तुमको मुझसे बात करने का सहस क्यों नहीं है
इसीलिए क्योंकि तुम हमेशा गलत व झूठ पर रहे
आखिर कब तक चलेगी तुम्हारी अन्याय
और कब तक मैं जीवन और मौत के बीच जूझता रहूंगा
तुम हो शिव शंकर मैं हूँ महेश
पर हम दोनों में कब तक चलेगी यह लड़ाई विशेष
चुप क्यों हो
मुझे जवाब चाहिए
आखिर कब तक चलेगी तुम्हारी अन्याय
आखिर कब तक
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यह रचना महेश कुमार वर्मा द्वारा ०४.०६.२००६ को लिखा गया था ।
Monday, October 22, 2007
महिलाओं को चुपचाप सबकुछ सहते रहना प्रताड़ना को बढावा देना है
Friday, October 19, 2007
मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन
आज हम बहुत ही गर्व के साथ कहते हैं कि मनुष्य इस पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी है। पर जरा सोचें कि एक बेकसूर जीवों को मरना व कष्ट देना क्या यही हमारी बुद्धिमत्ता है? ........ जरा सोचें कि हम अपने प्राणों से या अपने बच्चों से कितना प्यार करते हैं, क्या इसी प्रकार हमें दूसरे जीवों के लिए नहीं सोचना चाहिए? जिन जीवों को हम मारकर भोजन करते हैं उनमें भी उसी प्रकार आत्मा है जैसे मुझमें व आपमें है तथा उसे भी उसी प्रकार कष्ट होता है जैसे मुझे व आपको होता है। सोचें को आपको जब थोडा कष्ट होता है तो आपको कैसा लगता है ...........? उसी प्रकार सब जीवों को कष्ट होता है? ........ सोचें कि यदि आप बेकसूर हों और आपको कोई कष्ट देगा तो आपको कैसा लगेगा? ........ उसी प्रकार उस जीव के लिए भी सोचें जिसे मारकर हम खाते हैं? ............ इस पृथ्वी पर के सबसे अधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी मनुष्य के लिए यह शर्म की बात है कि वह सिर्फ अपने पेट व जिह्वा स्वाद के लिए बेकसूर जीवों को मारकर उसका मांस का भोजन करे। .......... ऐसी स्थिति में मनुष्य सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी कहना 'बुद्धिमत्ता' व 'विवेकशीलता' शब्द का अपमान करना है। और ऐसी स्थिति में मनुष्य को सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी न कहकर मनुष्य को पशु से भी बदतर कहना अनुचित नहीं होगा। (क्यों?)
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मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित
http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0
Thursday, October 18, 2007
सबों को दुर्गा पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ
Wednesday, October 17, 2007
Tuesday, October 16, 2007
कादम्बिनी युवा वर्ग की एक अद्वितीय पत्रिका है
महेश
Monday, October 15, 2007
आपका दिन मंगलमय हो
कृपया इन्तजार करें, मैं जल्द ही इस ब्लोग पर तार्किक विषय से सम्बंधित विषय ला रह हूँ। बस थोडा इन्तजार करें।