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Justice For Mahesh Kumar Verma

Sunday, December 9, 2007

जमाना हो गया है बेदर्द

दिले दर्द को बयां कर नहीं सकता
दर्द को सह पाना आसान नहीं है
आसानी से मर नहीं सकता
ऐसी स्थिति में जिंदा रहना भी आसान नहीं है
सुनाऊं किसे मैं अपना दर्द
जमाना हो गया है बेदर्द
जो सुनना चाहा मेरा दर्द
जमाना उसे मुझसे दूर किया
जमाना उसे मुझसे दूर किया
क्योंकि जमाना हो गया है बेदर्द

3 comments:

Asha Joglekar said...

दर्द में भी कुछ बात है
दर्द भी कुछ खास है
दर्द आंसुओं को शब्दों में ढालता है
इस तरह आपको सम्हालता है ।

बालकिशन said...

दर्द किसी को सुनाने या बताने वाली चीज नही सर. बेहद ही निजी मामला है. अगर बताएँगे भी तो लोग शायद उसके बढ़ने मे ही मदद करे, कम करने के लिए कोई कुछ नही करेगा.
बहुत अच्छी कविता.

आशीष अवस्थी said...

बहुत बढ़िया महेश भाई , धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे ब्लॉग पर
नया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }

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