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Justice For Mahesh Kumar Verma

Friday, September 12, 2008

कोई अपना मुझे नजर नहीं आता

चाहता था कुछ कहना पर कह न पा रहा हूँ
चाहता था कुछ लिखना पर लिख न पा रहा हूँ
करूँ मैं क्या मुझे पता नहीं चलता
जीने का कोई सहारा अब नजर नहीं आता
चाहा था नई जिन्दगी जीने को
पर बचा है अब सिर्फ मरने को
चाहता था कुछ कहना पर कह नहीं सकता
चाहता था कुछ लिखना पर लिख नहीं सकता
कैसे कहूँ कैसे सुनाऊँ पता नहीं चलता
कोई अपना मुझे नजर नहीं आता
कोई अपना मुझे नजर नहीं आता

1 comment:

अनिल रघुराज said...

लाखों लोगों की भावना को आपने जुबान दी है। तो कैसे कह सकते हैं कि
कोई अपना मुझे नजर नहीं आता।
अरे, अगल-बगल देखिए तो सही....

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