इस साईट को अपने पसंद के लिपि में देखें

Justice For Mahesh Kumar Verma

Saturday, January 12, 2008

भारतीय गणतंत्र के ५८ वर्ष

कुछ ही दिनों बाद हम भारतीय गणतंत्र के ५८ वीं वर्षगांठ मनाने वाले हैं। ५८ वर्ष पूर्व २६ जनवरी १९५० को हमारा देश भारत गणतंत्र हुआ था जिसकी वर्षगांठ हरेक वर्ष २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप दिनों मनाया जाता है इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरे भारत वर्ष में हजारों-लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं। पर हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि गणतंत्र दिवस मनाने की सार्थकता कितनी सफल होती है। ............



वास्तविकता के जमीं पर आएं तो हम देखते हैं कि भले ही हमारा देश आज स्वतंत्र है पर आज इस देश के नागरिकों को वास्तविक रूप से न तो न्याय पाने का अधिकार है और न तो इन्हें अभिव्यक्ति की ही स्वतंत्रता है। यह कोरी बातें नहीं बल्कि वास्तविकता है। कानून में भले हमें इस प्रकार की स्वतंत्रता व अधिकार मिली है पर वास्तविकता आज यही है कि आम लोगों के लिए आज न्याय पाना उस सपने कि तरह है जो अंततः कोरी कल्पना ही साबित होती है। आज आम लोगों के साथ जुल्म ढाए जाते हैं और यदि वह न्याय की मांग करता है तो न्याय पाना तो दूर की बात उसके साथ और भी अन्याय व अत्याचार किया जाता। जो रक्षक के रूप में खड़ा रहते हैं वे भक्षक बन जाते हैं और जो पंच परमेश्वर के नाम पर रहते हैं वे पापी बन जाते हैं। .......

जरा सोचें कि जब हमारे देश में पीड़ित के साथ न्याय नहीं हो तो ऐसी स्थिति में गणतंत्र दिवस व स्वाधिनता दिवस मनाने का क्या औचित्य रह जाता है? आज भले ही भारत स्वतंत्र है पर भारतवासी अन्याय का गुलाम है और जब तक आमलोगों को न्याय दिलाना सुनिश्चित नहीं हो जाती है तब तक स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस मनाने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। .......


.............

न्यायालय में भी नहीं है न्याय


पंच : परमेश्वर या पापी


आज का संसार


यह दिल की आवाज़ है


कैसे करूं मैं नववर्ष का स्वागत

No comments:

चिट्ठाजगत
चिट्ठाजगत www.blogvani.com Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

यहाँ आप हिन्दी में लिख सकते हैं :