आते हैं आंखों में आंसू यह जानकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर
अंधे हैं वो आँख रखकर
बहरे हैं वो कान रखकर
गूंगे हैं वो मुँह रखकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर
हैवानियत की हद कर दी उसने
इंसानियत की नाम नहीं है
कितने भी बड़े क्यों न हो
मानवता की पहचान नहीं है
कहने को तो हैं वो सज्जन
पर दुर्जन से कम नहीं हैं
कुछ बोलो तो होगी पिटाई
जल्लाद से वो कम नहीं हैं
हैं वो हैवान इन्सान बनकर
तड़पाते हैं वो हमेशा शैतान बनकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर
दिल की आवाज़ में आपका स्वागत है। यहाँ आप विभिन्न विषयों पर महेश कुमार वर्मा के स्वतंत्र विचार, तर्क व रचनाएँ देख व पढ़ सकते हैं। आपके स्वतंत्र व निष्पक्ष सुझाव व विचारों का स्वागत है। E-mail ID : vermamahesh7@gmail.com
Justice For Mahesh Kumar Verma
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1 comment:
जीवन मे आने वालें उतार-चड़ाव को कविता के माध्यम से बखूबी प्रस्तुत किया है।
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