मैंने अपने पिछले पोस्ट में बताया कि किस प्रकार हमारे समाज में जबरन लड़कियों की शादी करायी जाती है? फिर यदि शादी के रश्म को किसी भी तरह पूरा करने को ही शादी मानें तो होने वाले शादियों के गवाह या साक्ष्य कितने बन पाते हैं? हिन्दू परिवार से जुड़े रहने के कारण हिन्दू परिवार के कुछ शादियों को देखने का अवसर मुझे मिला है, अतः आएं इन शादियों पर कुछ विचार करें।
लोग कहते हैं कि बारात जाने का मतलब होता है कि वे बारात उस शादी के गवाह व साक्ष्य बनते हैं। पर मैं देखता हूँ कि गए बारात की उपस्थिति में तो शादी होती ही नहीं हैं तो उस बाराती को प्रत्यक्षदर्शी साक्षी या गवाह कैसे माना जाए? सामान्यतः देखा जाता हैं कि बारात लड़के वाले के यहाँ से लड़की वाले के यहाँ जाती है। और लड़की वाले के घर में ही शादी का कार्यक्रम होता है। पर उस शादी के कार्यक्रम में बाराती नहीं जाते हैं बल्कि शादी कुछ लड़के वाले व कुछ लड़की वाले के ही उपस्थिति में सम्पन्न होता है। कहीं-कहीं तो शादी के अंतिम मुख्य रश्म सिन्दुरदान के समय सामने पर्दा दे दिया जाता है और उपस्थित लोगों को भी शादी के इस मुख्य रश्म के दर्शक व साक्षी बनने से रोका जाता है। तो जब बाराती उस शादी के समय उपस्थित रहता ही नहीं है तो फिर उस बाराती को प्रत्यक्षदर्शी / साक्षी / गवाह कैसे कहा जा सकता है। तो इस प्रकार सामान्य तौर पर बाराती को प्रत्यक्षदर्शी नहीं कहा जा सकता है। और इस प्रकार 'बारात के जाने का मतलब गवाह बनना' यह कहना सही नहीं है।
पाठकों पर ही मैं इस प्रश्न को छोड़ रहा हूँ कि बारात का मतलब सिर्फ मनोरंजन ही है या और कुछ?
पाठकों पर ही मैं इस प्रश्न को छोड़ रहा हूँ कि बारात का मतलब सिर्फ मनोरंजन ही है या और कुछ?
1 comment:
बारात का मतलब होने वाले दम्पत्ति को समाज से मिलवाला एक दम्पत्ति के रुप में या होने वाले दम्पत्ति के रुप में और अपनी खुशियों में समाज को सम्मलित करना.
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