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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Friday, January 25, 2008

मेरे देश की कहानी

सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों आओ सुनो मेरे देश की कहानी
जहाँ रोज होती है घोटाला और होती है बेईमानी
और कुछ हो या ना हो भ्रष्टाचार ही है देश की निशानी
सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों आओ सुनो मेरे देश की कहानी

बेईमानी, भ्रष्टाचार, घुसखोरी और अत्याचार
इसी पर तो टिकी है इस देश की सरकार
नहीं हो भ्रष्टाचार तो ये जी नहीं पाएंगे
इसीलिए तो भ्रष्टाचार को ये कभी नहीं छोड़ेंगे

बढ़ रहे हैं बढ़ रहे हैं ये बढ़ते ही रहेंगे
भ्रष्टाचार को ये नंबर वन का बिजनेस बनाएँगे

तड़पते को रुलाएंगे
मरते को मारेंगे
धर्मं को भुलाएँगे
पैसे को पहचानेंगे
सबों पर अपना रॉब जमाएँगे
दुनियाँ में ताकतवर कहलाएँगे

और कुछ नहीं है इनका विचार
बढ़ते ही रहेगी देश में अत्याचार

पुरुष हो या हो महिला
गरीब हो या हो लाचार
सबों के साथ होगी दुर्व्यवहार व अत्याचार
यही तो है इनको शक्तिशाली कहलाने का आधार

छोड़ देंगे यदि इसे
तो नहीं चल पाएगी इनकी सरकार

यह नई बात नहीं
यह तो है वर्षों पुरानी
यहाँ हमेशा होती रही
बेईमानी ही बेईमानी

बस यही है यहाँ की कहानी
यही है मेरे देश की कहानी
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Saturday, January 19, 2008

कहाँ जाऊंगा मैं तुम्हें छोड़कर

कहाँ जाऊंगा मैं तुम्हें छोड़कर
नहीं रह सकता में तुमसे नाता तोड़कर
चले न जाना तुम मेरा दिल तोड़कर
आ जाना तुम मेरा अपना बनकर
जी नहीं सकता मैं तुम्हें छोड़कर
जी नहीं सकता मैं तुम्हें छोड़कर

Wednesday, January 16, 2008

मुझे शांतिपूर्वक जाने दो

यदि कोई नहीं है इस दुनिया में सच्चाई पर चलने वाला
यदि कोई नहीं है इस दुनिया में सच्चाई का साथ देने वाला
यदि कोई नहीं है इस दुनिया में ईमानदारिता पर चलने वाला
यदि कोई नहीं है इस दुनिया में निष्पक्षता पर चलने वाला
यदि कोई नहीं है इस दुनिया में मुझको न्याय दिलाने वाला
यदि कोई नहीं है इस दुनिया में मुझको सुनने वाला
यदि कोई नहीं है इस दुनिया में मुझसे बातें करने वाला
यदि कोई नहीं है इस दुनिया में गलत व झूठ का बहिष्कार करने वाला
तो किसी को भी नहीं है अधिकार मेरे विरुद्ध कुछ कहने का
तो किसी को भी नहीं है अधिकार मेरे विरुद्ध कुछ करने का
तो किसी को भी नहीं है अधिकार मेरे विरुद्ध कुछ करवाने का
तो किसी को भी नहीं है अधिकार मेरे किसी कार्य में आपत्ति करने का
तो किसी को भी नहीं है अधिकार मुझे कुछ करने से रोकने का
तो किसी को भी नहीं है अधिकार मेरे राह में विध्न डालने का
और ऐसी स्थिति में मुझे जिंदा रहना भी बेकार है
और ऐसी स्थिति में मुझे मर जाना ही बेहतर है
और ऐसी स्थिति में नहीं है किसी को मुझे मरने से रोकने का अधिकार
क्योंकि मैं तो हूँ सारी दुनिया के लिए बेकार
तब तो फिर मर ही जाऊंगा
तब फिर तुझे मैं कुछ न कहूँगा
तब तुमको नहीं होगी कोई दिक्कत मुझसे
तब तुम रहना चैन व आराम से
क्योंकि तब तुम्हारी सारी समस्या का अंत हो जाएगा
तुम्हारे नजर में यह पापी तुमसे हमेशा-हमेशा के लिए दूर चला जाएगा
मैं चला जाऊंगा
फिर कभी न आऊंगा तुम्हारे नजरों के सामने
मैं चला जाऊंगा
फिर कोई पापी न होगा तुम्हारे नजरों के सामने
तब जाता हूँ
मुझे जाने दो
पर एक विनती है
मुझे शांतिपूर्वक जाने दो
बस एक चोटी सी अन्तिम इच्छा पूरी कर दो
और मुझे शांतिपूर्वक जाने दो

...............

०६०६३०

Sunday, January 13, 2008

विचार : दूध का सेवन कहाँ तक उचित है

आज मिठाई का चलन खूब हो गया है, कोई विशेष समारोह हो तो वहाँ नास्ता में मिठाई , मेहमान को नास्ता कराना हो तो वहाँ मिठाई ........... इत्यादि कई प्रकार से मिठाई का उपभोग हो रहा है। ............ अधिकांश मिठाई के निर्माण में दूध का ही उपयोग किया जाता है। दूध का उपयोग मिठाई बनाने के अलावा भी कई कार्यों में होता है। चाय का उपयोग तो हरेक जगह धड़ल्ले से हो रहा है जिसमें दूध का ही प्रयोग किया जाता है। ........... कुल मिलाकर कहें तो आज दूध का उपयोग लोगों के जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है। ........... पर सोचें कि यह दूध हम कहाँ से लाते हैं? ............ यह दूध हम किसी न किसी स्तनधारी जीव (भारत में मुख्यतः गाय व भैंस) से लेते है, जिसे वह अपने बच्चे के लिए पैदा करती है। हम एक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी मानव होकर एक पशु के बच्चा को अपने माँ का दूध पीने से वंचित कर देते हैं और खुद उसका दूध हम पीते हैं। ........... जब हमें इन पशु से दूध प्राप्त करना होता है तो हम क्या करते हैं? ............... बच्चा को अलग बांध देते हैं फिर वह पशु जिसे दुहना रहता है उसका भी पैर बांध देते हैं और तब फिर हम दुहकर दूध प्राप्त करते हैं। और इस बीच बेचारा वह पशु का बच्चा दूध पीने के लिए छटपटाते रहता है। ..............हम बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी होकर कितना जुल्म करते हैं इन बच्चों पर जिसकी माँ ने उसे जन्म देने के बाद उसके आहार के लिए अपने थन / स्तन में दूध उत्पादित करती है उसे हम उस बच्चे को न देकर खुद पीते हैं। ............... क्या यह उचित है? ..............कभी नहीं, नैतिकता के दृष्टि से यह कभी भी उचित नहीं है कि हम सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी मानव होकर एक पशु के बच्चे पर इस प्रकार का जुल्म करके उसका आहार को हम ग्रहण करें। ............. ख्याल रखें कि कोई भी स्तनधारी जीव चाहे वह मनुष्य हो या पशु वह अपने दूध का उत्पादन सिर्फ अपने शिशु / बच्चा के लिए ही करता है न कि अन्य के लिए और यह प्रकृति का नियम है। .............. इस प्रकार हमें सिर्फ अपने ही माँ का दूध पीने का अधिकार है जो हम अपने शैश्यावस्था में पी चुके होते हैं और इसके अलावा हमें अन्य किसी भी जीव का दूध पीने का कोई अधिकार नहीं है। और इस प्रकार हमें दूध या दूध से बने किसी भी पदार्थ का उपभोग नहीं करना चाहिए क्योंकि दूध हमारे लिए नहीं बल्कि उस बच्चे के लिए होता है जिसे हम भूखे रखकर जबरन उसके माँ के थन से दूध निकालते हैं।
हमें नवजात पशु पर व उसके जननी (माँ) पर जुल्म ढाना बंद करके किसी भी प्रकार से दूध का उपयोग बंद करना चाहिए।

इंसान नहीं हैवान हैं हम

इंसान नहीं हैवान हैं हम
मारते बेकसूर जीव को और
भरते अपना पेट हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम

मत कहो हमें सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी
यहाँ हम रोज करते हैं बेईमानी

करते हैं अत्याचार
होती है बलात्कार
देते हैं रिश्वत
कोई नहीं करता है बहिष्कार

एक दिन नहीं रोज का है धंधा
पहुंचाते हैं पैसा
डालते हैं डाका
देते हैं उसे भी आधा
पैसे दो मौज मनाओ
कुछ न कहेंगे कुछ न करेंगे
अपना काम करते रहो
वे यों ही सोते रहेंगे
न्याय के लिए आने वाले को हंटर लगाएंगे
वे पुलिस हैं पुलिस ही कहलाएंगे
यह थी हमारी एक झलक
यहाँ होती है अत्याचार झपकते ही पलक
अन्याय करने में सब है मतवाला
जो जितना बड़ा है उसका मुँह उतना ही काला

इंसान नहीं हैवान हैं हम
कलियुग के शैतान हैं हम
मत कहो हमें सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी
हैं हम दुनिया के सर्वाधिक खतरनाक प्राणी
इंसान नहीं हैवान हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम

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http://kavimanch.blogspot.com/#poem18

कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर

आते हैं आंखों में आंसू यह जानकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर
अंधे हैं वो आँख रखकर
बहरे हैं वो कान रखकर
गूंगे हैं वो मुँह रखकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर

हैवानियत की हद कर दी उसने
इंसानियत की नाम नहीं है
कितने भी बड़े क्यों न हो
मानवता की पहचान नहीं है
कहने को तो हैं वो सज्जन
पर दुर्जन से कम नहीं हैं
कुछ बोलो तो होगी पिटाई
जल्लाद से वो कम नहीं हैं
हैं वो हैवान इन्सान बनकर
तड़पाते हैं वो हमेशा शैतान बनकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर
कोई नहीं है मेरा मुझे पहचानकर

Saturday, January 12, 2008

भारतीय गणतंत्र के ५८ वर्ष

कुछ ही दिनों बाद हम भारतीय गणतंत्र के ५८ वीं वर्षगांठ मनाने वाले हैं। ५८ वर्ष पूर्व २६ जनवरी १९५० को हमारा देश भारत गणतंत्र हुआ था जिसकी वर्षगांठ हरेक वर्ष २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप दिनों मनाया जाता है इस गणतंत्र दिवस के अवसर पर पूरे भारत वर्ष में हजारों-लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं। पर हमें इस बात पर विचार करना चाहिए कि गणतंत्र दिवस मनाने की सार्थकता कितनी सफल होती है। ............



वास्तविकता के जमीं पर आएं तो हम देखते हैं कि भले ही हमारा देश आज स्वतंत्र है पर आज इस देश के नागरिकों को वास्तविक रूप से न तो न्याय पाने का अधिकार है और न तो इन्हें अभिव्यक्ति की ही स्वतंत्रता है। यह कोरी बातें नहीं बल्कि वास्तविकता है। कानून में भले हमें इस प्रकार की स्वतंत्रता व अधिकार मिली है पर वास्तविकता आज यही है कि आम लोगों के लिए आज न्याय पाना उस सपने कि तरह है जो अंततः कोरी कल्पना ही साबित होती है। आज आम लोगों के साथ जुल्म ढाए जाते हैं और यदि वह न्याय की मांग करता है तो न्याय पाना तो दूर की बात उसके साथ और भी अन्याय व अत्याचार किया जाता। जो रक्षक के रूप में खड़ा रहते हैं वे भक्षक बन जाते हैं और जो पंच परमेश्वर के नाम पर रहते हैं वे पापी बन जाते हैं। .......

जरा सोचें कि जब हमारे देश में पीड़ित के साथ न्याय नहीं हो तो ऐसी स्थिति में गणतंत्र दिवस व स्वाधिनता दिवस मनाने का क्या औचित्य रह जाता है? आज भले ही भारत स्वतंत्र है पर भारतवासी अन्याय का गुलाम है और जब तक आमलोगों को न्याय दिलाना सुनिश्चित नहीं हो जाती है तब तक स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस मनाने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। .......


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न्यायालय में भी नहीं है न्याय


पंच : परमेश्वर या पापी


आज का संसार


यह दिल की आवाज़ है


कैसे करूं मैं नववर्ष का स्वागत

न्यायालय में भी नहीं है न्याय

......... नव वर्ष के स्वागत में हम अनेकों प्रकार से जश्न मानते हैं तथा एक-दूसरे को नव वर्ष का बधाई देते हैं। पर क्या सिर्फ बधाई भर दे देने मात्र से हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है? नव वर्ष के आगमन पर हम एक-दूसरे को बधाई व शुभ-कामना दें और फिर सालों भर अपने धर्म व कर्तव्य को भूल जाएँ, क्या यही मेरा कार्य होना चाहिए? ............

नव वर्ष के आगमन के साथ ही हम लग जाते हैं गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारी में। अगले माह हम फिर गणतंत्र दिवस मनाएंगे। हम गणतंत्र की ५७ वीं वर्षगांठ में फिर तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित करेंगे व हजारों रुपये खर्च करेंगे। पर क्या हमने कभी सोचा है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्रात्मक राज्य भारत में हम गणतंत्र दिवस पर हजारों-लाखों रुपये खर्च कर देते हैं पर भारत को गणतंत्र हुए आज ५७ वर्ष हो जाने पर भी आज भारत के जनता को न्याय नहीं मिल पाती है। न्याय मिलना तो दूर की बात, कभी-कभी तो लोगों को न्याय की मांग तक करने का अधिकार का हनन होता है। कभी-कभी तो अदालत द्वारा भी सही फैसला नहीं सुनाया जाता है और दोषी सजा-मुक्त हो जाता है तथा निर्दोष को सजा भुगतना पड़ता है। कुछ ही दिनों पहले की घटना में एक ऐसा ही उदाहरण मिलता है 'जेसिका लाल हत्याकांड' के मामला में; जिसमें हाईकोर्ट द्वारा जो फैसला सुनाया गया वह निचली अदालत के फैसले से पूर्णतः विपरीत था। जहाँ निचली अदालत ने 'मनु' को निर्दोष बताकर बरी कर दिया था वहीं उच्च न्यायालय ने 'मनु' को दोषी व हत्यारा बताकर उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई। ............. सोचें कि यदि निचली अदालत के फैसले व जांच पर रहा जाता तो क्या दोषी को सजा मिल पाती? सोचें कि आख़िर निचली अदालत द्वारा सच्चाई तक क्यों नहीं पहुँचा गया? ................ ऐसा एक नहीं कई मामला रहता है जिसमें अदालत द्वारा गलत फैसला सुनाया जाता है और दोषी आजाद रहता है व निर्दोष सजा भुगतता है। ............ सोचें कि आखिर किस मुँह से हम यह कहकर अपने को गौरवांवित महसूस करते हैं कि हम भारतीय गणतंत्र की ५७ वीं वर्षगांठ मना रहे हैं। -- सिर्फ दिखावा के लिए गणतंत्र दिवस मनाने का कोई औचित्य नहीं है। हमें ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि हरेक व्यक्ति को न्याय मिले। ............. सिर्फ यह कहने मात्र से नहीं होगा कि सभी को न्याय पाने का अधिकार है बल्कि सबों के साथ न्याय करना भी होगा। - वास्तव में कितने लोगों को आज न्याय पाना तो दूर की बात उन्हें न्याय मांगने का भी अधिकार नहीं है और यदि वह न्याय की मांग किया तो उसके साथ और भी ज्यादा अन्याय होने लगता है। ......... और उसके साथ अन्याय जब चरम सीमा पर पहुंच जाती है, उसके साथ मानसिक प्रताड़ना इतनी आधिक हो जाती है कि ऐसी स्थिति में कभी-कभी पीड़ित विवश होकर हथियार को लेता को या फिर ऐसी ही स्थिति में कभी-कभी पीड़ित या तो आत्महत्या कर लेता है या या फिर अपराधी बन जाता या फिर मानसिक प्रताड़ना से जूझकर पागल हो जाता है। ..........

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(यह महेश कुमार वर्मा द्वारा २४.१२.२००६ को लिखे एक पत्र से लिया गया है।)

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