मनुष्य जाति के लिए इससे बड़ी शर्म की बात और कुछ नहीं होगी कि यह बेकसूर जीवों को मारकर फिर उसे खाकर अपना पेट भरता है। धिक्कार है ऐसी मनुष्य जाति को जो अपने को सर्वश्रेष्ठ व सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील कहता है। उस समय कहाँ जाती है उसकी बुद्धिमत्ता व विवेकशीलता जब वह बेकसूर जीवों को मारकर उसे खाता है? क्या यही उसकी बुद्धिमत्ता है कि निरपराध जीवों को मारकर अपनी पेट भरे? क्या यही उसकी बुद्धिमत्ता है कि अपने से कमजोर जीव को मारकर अपना पेट भरे?..................
किसी भी सूरत में मांसाहार भोजन उचित नहीं है। जिस प्रकार हमें अपने प्राणों से प्रेम रहता है उसी प्रकार हमें उन जीवों के लिए भी सोचना चाहिए जिन्हें मारकर हम खाते है। ..........
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मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन
http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0
4 comments:
I read a detail story in Dainik Bhaskar and story was saying that being a vegitarian is better.
मनुष्य के पास इसके अलावा क्या विकल्प है? अन्न खाने के लिए भी तो पौधों की हत्या की जाती है और उनमें भी प्राण होते हैं। क्या एक प्राणी की हत्या जायज़ है और दूसरे की ग़लत?
Who the hell are you to use this kind of abusing language for nonagenarians.
Goats r vegetarian, go & live with them
जिस जीव को पांचों ज्ञानेन्द्रियों द्वारा जाना जा सकता है । उस जीव की हत्या न्याय एवं नीति की दृष्टि से अनुचित है । जिस जीव की हत्या का न्याय और नीति को स्थापित करने एवं आत्मरक्षा से कोई संबंध नहीं है । इसलिए अन्याय एवं अनीति पर आधारित जीव हत्या धर्म नहीं हो सकती । जो कर्म धर्म के विरुद्ध हो, वह अधर्म है । धर्म तो अन्तिम समय तक क्षमा करने का गुण रखता है । जितना बड़ा पाप, उतना बड़ा प्रायश्चित ।
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