हर परिवार, हर जाति, हर समाज में शादी बड़ी धूमधाम से होती है। शादी को लोग मांगलिक व शुभ मानते हैं। दुल्हन अपने बाबुल के घर को छोड़कर पिया संग ससुराल जाती है और फिर वही ससुराल ही उसका घर-परिवार हो जाता है। दुल्हन का एक नया जीवन शुरू होता है। ससुराल में दुल्हन को अपने बाबुल के घर से भिन्न परिस्थिति का सामना करना पड़ता है। अपने नए जीवन के विषम परिस्थिति में दुल्हन को अपने को ढालना पड़ता है। उसी प्रकार दूल्हा को भी अपने जीवनसाथी के साथ सामंजस्य स्थापित कर रहना पड़ता है ताकि दोनों की जीवन रूपी नैया सही ढंग से चल सके।
हर माँ-बाप अपने संतान के लिए चाहते है कि उसका जीवन सही ढंग से बीते। कन्या के व्यस्क होते ही माँ-बाप उसके लिए योग्य वर के तलाश में लग जाते हैं। पर दहेज समस्या व गरीबी के कारण कितने माँ-बाप कम उम्र में ही अपनी बेटी की व्याह रचा देते हैं तो कितने योग्य वर न ढूंढ़ पाते हैं और किसी तरह बेटी का व्याह रचाकर छुट्टी कर लेते हैं। हरेक लड़का-लड़की को अपने जीवन-साथी के संदर्भ में मन में एक सपना / एक ईच्छा / एक ख्वाहिश रहती है या उसके होने वाले दूल्हा या दुल्हन कैसी है यह जानने की इच्छा होती है। पर हमारे समाज में बेटी के व्याह में बेटी से उसके शादी के बारे में कोई राय नहीं ली जाती हैं। यहाँ तक कि उसके भावी वर के बारे में भी उसे जानकारी नहीं दी जाती है। बेटी संकीर्ण मानसिकता के समाज में इस प्रकार से दबी व फँसी रहती है कि वह अपने शादी के बारे में अपना विचार किसी से कह भी नहीं सकती है। जिस लड़का से उसकी शादी ठीक की जा रही है उसके बारे में वह किसी से पूछ भी नहीं सकती है और यदि उसे उस लड़का के बारे में कोई ऐसी बात मालूम भी होती है जिस कारण वह उसके साथ शादी न करना चाहे तो यह बात भी वह किसी को बता नहीं सकती है और यदि वह अपने ही शादी में अपनी ओर से कुछ कही तो उसपर तमाम इल्जाम लगने में भी देर न होती है। तो इस प्रकार अपने ही शादी में लड़की अपने इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकती है। शादी में न तो लड़की के इच्छा को स्थान दिया जाता है, न तो उससे कुछ पूछा ही जाता है, न तो उसका कुछ सुना ही जाता है। और इस प्रकार बुद्धि-विवेक रहते हुए भी वह लड़की कठपुतली के समान रहती है और जबरन उसकी शादी किसी लड़के से करा दी जाती है चाहे वह उस लड़की को पसंद हो या न हो। लड़की को वह लड़का पसंद नहीं है या लड़की से कोई विचार नहीं लिया जाए और उसकी शादी करायी जाती है तो यह शादी जबरन नहीं तो और क्या है?
इस प्रकार लड़कियों के जबरन शादी हमारे समाज में लगभग सभी घरों में हो रहे हैं। पर सोचें कि क्या यह जबरन शादी उचित है? एक समय हमारे देश में स्वयंवर की प्रथा थी, जहाँ कन्या को भी ख़ुद अपना वर चुनने का अधिकार था। पर आज वहीं उस
की कुछ नहीं सुनी जाती है और जबरन उसकी शादी करा दी जाती है।
हमारे समाज में इस तरह के कार्य हमारी पतितता को ही दर्शाता है। हमें अपने समाज के इस कृत्य पर शर्मिंदगी होनी चाहिए। मैं अपने देश के तमाम बहनों से आग्रह करना चाहूँगा कि वे महिला प्रताड़ना के विरुद्ध आवाज उठाएं।
देश के बहना तुम जागो
तुम मानव हो
तुममे बुद्धि-विवेक हैतुम्हारी चुप्पी ही तुम्हें दबाती है
अतः अपने बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल करो
अन्याय के विरुद्ध लड़ो
समाज से महिला प्रताड़ना को उखाड़ फेंको
व महिलाओं को शीर्ष स्थान पर स्थापित करो
जागो बहना जागो
जागो बहना जागो
हमारे समाज में इस तरह के कार्य हमारी पतितता को ही दर्शाता है। हमें अपने समाज के इस कृत्य पर शर्मिंदगी होनी चाहिए। मैं अपने देश के तमाम बहनों से आग्रह करना चाहूँगा कि वे महिला प्रताड़ना के विरुद्ध आवाज उठाएं।
देश के बहना तुम जागो
तुम मानव हो
तुममे बुद्धि-विवेक हैतुम्हारी चुप्पी ही तुम्हें दबाती है
अतः अपने बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल करो
अन्याय के विरुद्ध लड़ो
समाज से महिला प्रताड़ना को उखाड़ फेंको
व महिलाओं को शीर्ष स्थान पर स्थापित करो
जागो बहना जागो
जागो बहना जागो
1 comment:
समय के साथ स्थितियाँ बदल तो रही हैं...हालांकि बहुत कुछ होना बाकी है.
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