दिन बीते माह बीते वर्ष बीत गए
कितने आए कितने गए उम्र बीत गए
कहना न होगा हम चाँद सितारों पर पहुँच गए
पर धर्म के राह पर हम अभी तक न आए
नहीं मिलती है अदालत में न्याय
व्याप्त है चारों ओर अन्याय ही अन्याय
जब करो न्याय की बात
तो होगी अन्याय से मुलाकात
लाए हो सौगात तो होगी तुम्हारी बात
नहीं तो खाने पड़ सकते हैं दो-चार लात
बहुत बड़ी है उनकी औकात
भेज सकते हैं निर्दोष को भी हवालात
लौट जाना पड़ता है मुँह लटकाकर
क्योंकि रक्षक बना है भक्षक हथियार उठाकर
पता नहीं कब होगी धर्म की स्थापना
न जाने कैसा होगा आने वाला जमाना
नहीं है कहीं न्याय की सुगबुगाहट
चारों ओर है अन्याय का ही आहट
कैसे करूँ मैं नववर्ष का स्वागत
कैसे करूँ मैं नववर्ष का स्वागत
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Justice For Mahesh Kumar Verma
Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....
Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015
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1 comment:
अपने विचारों को कविता के जरीए बखूबी प्रेषित किया है।बधाई।
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