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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Thursday, September 25, 2008

है रमजान प्रेम-मुहब्बत का महीना

है रमजान प्रेम-मुहब्बत का महीना।
है रमजान मज़हब याद दिलाने का महीना॥
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना।
है रमजान ज़श्न मनाने का महीना॥
पाक रखेंगे इसे अल्लाह के नाम।
नहीं करेंगे हम इसे बदनाम॥
है प्रेम का महीना रमजान।
है प्रेम का महीना रमजान॥
आया है ईद प्रेम-भाईचारा का सौगात लेकर।
मनाएंगे इसे वैर व कटुता का भाव भुलाकर॥
मिलजुल मनाएंगे ईद।
नहीं करेंगे मांस खाने की जिद॥
तोड़ेंगे हिंसा का रश्म।
मनाएंगे मिलकर ज़श्न॥
हम सब लें आज ये कसम।
हम सब लें आज ये कसम॥


--महेश कुमार वर्मा

Tuesday, September 23, 2008

अपना समाज महान होगा


समाज विकास तब होगी।
जब मुझमें मानवता आएगी॥
समाज विकास तब होगी।
जब मुझमें सच्चरित्रता आएगी॥
समाज विकास तब होगी।
जब मुझमें ईमानदारिता आएगी॥
समाज विकास तब होगी।
जब मुझमें निष्पक्षता आएगी॥
जब आएगी मुझमें मानवता
जब आएगी मुझमें ईमानदारिता
तब होगी हमारी अपनी सत्ता
तब होगी हमारी अपनी सत्ता
तब नहीं कोई भ्रष्ट होगा
तब नहीं कोई बेईमान होगा
तब नहीं कहीं अन्याय होगा
तब नहीं कहीं अत्याचार होगा
तब नहीं किसी से शिकवा होगा
सभी जगह प्रेम व करुणा होगा
आपस में भाईचारा होगा
स्वच्छ व सुंदर समाज होगा
तब अपना समाज महान होगा
तब अपना समाज महान होगा

रचनाकार : महेश कुमार वर्मा

Sunday, September 14, 2008

है किसी में हिम्मत तो

अब तक तो चुप था पर

अब चुप रह सकता नहीं

मरना होगा मर जाएंगे पर

मैं सर झुका सकता नहीं

है किसी में हिम्मत तो मेरे बातों का जवाब दे दे

है किसी में ईमानदारी तो सच्चाई सामने ला दे

सत्य धर्म से प्यार

किसे सुनाऊँ मैं अपनी हाल
हाल मेरा है बेहाल
मर जाऊँगा मिट जाऊँगा
नहीं मानूंगा मैं हार
झूठ को नहीं स्वीकारुँगा
सत्य को नहीं छोडूँगा
मुझको तो है सत्य धर्म से प्यार
मुझको तो है सत्य धर्म से प्यार

Friday, September 12, 2008

कोई अपना मुझे नजर नहीं आता

चाहता था कुछ कहना पर कह न पा रहा हूँ
चाहता था कुछ लिखना पर लिख न पा रहा हूँ
करूँ मैं क्या मुझे पता नहीं चलता
जीने का कोई सहारा अब नजर नहीं आता
चाहा था नई जिन्दगी जीने को
पर बचा है अब सिर्फ मरने को
चाहता था कुछ कहना पर कह नहीं सकता
चाहता था कुछ लिखना पर लिख नहीं सकता
कैसे कहूँ कैसे सुनाऊँ पता नहीं चलता
कोई अपना मुझे नजर नहीं आता
कोई अपना मुझे नजर नहीं आता

Tuesday, September 9, 2008

दिल

दिल वो चीज है जो टूट गया तो जुड़ना मुश्किल है
दिल वो चीज है जिसका जख्म भर पाना मुश्किल है
भर जाएंगे शरीर के जख्म दिन नहीं तो महीनों में जरुर
पर नहीं भरेंगे दिल का जख्म यह बात है जरुर
तड़पते रह जाओगे दिल का जख्म लेकर
पर नहीं आएँगे कोई तुम्हें अपना समझकर
जमाना हो गया है बेदर्द
कोई नहीं समझेगा दिल का दर्द
कोई नहीं समझेगा दिल का दर्द
क्योंकि जमाना हो गया है बेदर्द
दिल वो चीज है जो टूट गया तो जुड़ना मुश्किल है
दिल वो चीज है जिसका जख्म भर पाना मुश्किल है

Monday, September 8, 2008

बहुत ही नाजुक होती है ये रिश्ते

बहुत ही नाजुक होती है ये रिश्ते
निभा सको तो साथ देगी जीवन भर ये रिश्ते
नहीं तो सिर्फ कहलाने को रह जाएँगे ये रिश्ते
बनते हैं पल भर में, बिगड़ते हैं पल भर में ये रिश्ते
बहुत ही नाजुक होती है ये रिश्ते
बहुत ही नाजुक होती है ये रिश्ते

Thursday, September 4, 2008

ये रिश्ता चीज होती है क्या

ये रिश्ता चीज होती है क्या
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पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या

था कभी भाई-भाई का रिश्ता
कभी बिछुड़ने वाला रिश्ता
जो हमेशा साथ-साथ खेलता
हमेशा साथ-साथ पढ़ता
हमेशा साथ-साथ खाता
हमेशा साथ-साथ रहता
पर आज जब वे बड़ा समझदार हुए
तो दोनों एक-दूसरे के दुश्मन हुए
हथियार लेकर दोनों आमने-सामने हुए
भाई-भाई का रिश्ता दुश्मनी में बदल गया
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या


किया था शादी पति-पत्नी के रिश्ता के साथ
जीवन भर साथ निभाने को
पर रह गयी दहेज़ में कमी
तो दिया उसे साथ रहने को
और जिन्दा ही पत्नी को जला डाला
क्योंकि था वह दहेज़ के पीछे मतवाला
था वह दहेज़ के पीछे मतवाला
जीवन भर साथ निभाने का रिश्ता दुश्मनी में बदल गया
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या


था पिता-पुत्र का रिश्ता
पिता ने उसे अपने बुढ़ापे का सहारा समझा
पर उसने तो दुश्मन से भी भयंकर निकला
निकाल दिया पिता को घर से
भूखे-प्यासे छोड़ दिया
नहीं मरा पिता तो उसने
जहर देकर मार दिया
बुढ़ापे का सहारा आज उसी का कातिल बना
था इन्सान पर आज वह हैवान बना
पता नहीं चलता ये रिश्ता चीज होती है क्या
अरे कोई तो बताए ये रिश्ता चीज होती क्या

ये रिश्ता चीज होती है क्या

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http://merekavimitra.blogspot.com/2008/08/rishte-par-kavitayen-kavya-pallavan.html#mahesh

Tuesday, September 2, 2008

बाल शिक्षा बनाम बाल मजदूरी

आज सरकार शिक्षा पर जोर दे रही है तथा तरह-तरह के योजनाएं चला रही हैं। पर उस सरकार को क्या यह वास्तविकता मालूम है कि उनके योजनाओं का कितना लाभ बच्चों को मिल रहा है। सरकार को यह नहीं मालूम है कि उनके द्वारा लागु किए गए दोपहर के भोजन का कार्यक्रम की सारी रकम व अनाज स्कूल के शिक्षकों द्वारा चट कर दिए जाते हैं और बच्चों को भोजन नहीं मिलता है और यदि कहीं कभी-कभी थोड़ा-बहुत मिल भी जाता है तो वह घटिया किस्म का ही रहता है। ............ और इस कारण आज सरकारी स्कूल जाने वाले बच्चे-बच्चे "घोटाला" शब्द से वाकिफ हो गए हैं और वे जानते हैं कि उनके लिए आए अनाज उनको न मिलकर शिक्षकों के घर पहुँच रहे हैं। ..............
आज सरकार १४ वर्ष तक के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देने की बात कह रही है। पर क्या सरकार कभी इस सच्चाई को जानने की कोशिश की कि कितने बच्चे स्कूल जाते हैं व पढ़ते हैं? शायद सरकार कभी यह जानने की कोशिश नहीं की, और यदि की तो वह सही तथ्य तक नहीं पहुँच पायी। ........ आज भी ऐसे कितने बच्चे हैं जो अपनी पढ़ाई के उम्र में पढ़ाई से वंचित होकर अपने पेट पालने के लिए कहीं किसी के अन्दर काम या नौकरी कर रहे हैं। इस प्रकार के बच्चों को न तो पढ़ने का मौका मिलता है और न तो खेलने का ही मौका मिलता है। ................ बच्चो के साथ ऐसी स्थिति सिर्फ गाँव-देहात में ही नहीं शहर में भी है। जबकि बाल मजदूरी पर कानून ने रोक लगा रखी है। ............ शहर के होटलों में या अन्य स्थानों में भी ऐसे कितने बच्चे मिलेंगे जो दिन भर काम करके अपना पेट पालते हैं और न तो वे लिखना-पढ़ना जानते हैं और न तो जान पाते हैं। उन्हें तो बस दिन भर वहाँ काम करना है। उनके जीवन में न तो पढ़ाई है, न तो खेल है और न तो उनके विकास का कोई साधन है। ................... आप सोच सकते हैं कि ऐसे बच्चों का भविष्य क्या होगा? ..............
सरकार को सिर्फ घोषणाएं करने व कार्यक्रम तैयार करने से नहीं होगा .................. बल्कि हर बच्चे को उचित समय पर उचित शिक्षा व उचित वातावरण सुनिश्चित कराना होगा। हमें बच्चे के प्रतिभा को कुंठित नहीं होने देना चाहिए बल्कि प्रतिभा को जगाना चाहिए।
--- महेश कुमार वर्मा
०२.०९.२००८
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