दुर्गा पूजा व दशहरा बीत गया। ईद भी बीत गया और अब आ गया बुराई पर अच्छाई के विजय व अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक पर्व दीपावली। दीपावली का पर्व हमें अंधकार से प्रकाश में जाने की प्रेरणा देता है। इस पर्व के अवसर पर कई दिन पहले से ही लोग अपने घरों की साफ-सफाई में लग जाते है।
कार्त्तिक मास के अमावस को मनाया जाने वाला इस पर्व को अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक माना जाता है। इस दिन शाम में लोग लक्ष्मी-गणेश का पूजन कर अपने घरों में दीप जलाते हैं। लोग घरों को दीपक से सजाते हैं और दीपक के रोशनी से ही अमावस की वह काली रात उजियाला में बदल जाता है। वैसे अब दीपक का स्थान मोमबत्ती व विद्युत-बल्ब भी ले लिया है। पर इस दिन लोग अपने घरों को दीप, मोमबत्ती, इत्यादि से प्रकाशवान बनाते हैं व खुशियाँ मनाते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है अतः व्यापारी वर्ग में व दुकानों में इस पर्व का विशेष महत्त्व है व उस दिन लोग माँ लक्ष्मीं की पूजा कर धन-धान्य की कामना करते हैं।
पर्व में खुशियाँ मनाना व पर्व के आधार पर अच्छे राह पर चलना तो ठीक है पर लोग कुछ लापरवाही व कुछ अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से भी नहीं चुकते हैं। आप खुद देखिए, अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक पर्व दीपावली के लिए लोग महीनों पहले से अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं पर दीपावली के दिन क्या करते हैं। उस दिन लोग बम-पटाखे व आतिशबाजी से ध्वनि व वायु प्रदूषित कर हमारे पर्यावरण व वातावरण को ही नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि खुद के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ......... अंधकार से प्रकाश में जाना तो ठीक है, साफ-सफाई भी ठीक है पर वातावरण प्रदूषित कर खुद की स्वास्थ्य खराब करना कहाँ तक उचित है? जरा सोचें, दीपावली अंधकार से प्रकाश में जाने का पर्व है न की स्वच्छ वातावरण को प्रदूषित करने का। .....................
दूसरी ओर कितने लोगों की यह संकीर्ण मानसिकता रहती है की इस दिन रात में जुआ / सट्टा / पचीसी खेला जाता है / खेलना चाहिए और अपने इसी संकीर्ण मानसिकता के कारण कितने लोग उस रात जुआ खेलते हैं / पैसे सट्टा में लगाते हैं व हजारों रुपये बर्बाद करते हैं। पर सोचें, क्या हुआ जुआ खेलकर ...... एक ओर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा व दूसरी ओर जुआ / सट्टा में हार कर धन बर्बाद करना ................ क्यों, ऐसा क्यों? ................... वास्तव में जुआ खेलना धन कमाने का उचित तरीका है ही नहीं। ..................
दीपावली अंधकार से प्रकाश में जाने का पर्व है और इस दिन अपने में बुराई रूपी अंधकार को हटाकर अच्छाई रूपी प्रकाश को लाना चाहिए। तो क्यों न इस दिवाली में हम बुरे मार्ग से हटकर अच्छे मार्ग पर चलने का संकल्प लें।
कार्त्तिक मास के अमावस को मनाया जाने वाला इस पर्व को अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक माना जाता है। इस दिन शाम में लोग लक्ष्मी-गणेश का पूजन कर अपने घरों में दीप जलाते हैं। लोग घरों को दीपक से सजाते हैं और दीपक के रोशनी से ही अमावस की वह काली रात उजियाला में बदल जाता है। वैसे अब दीपक का स्थान मोमबत्ती व विद्युत-बल्ब भी ले लिया है। पर इस दिन लोग अपने घरों को दीप, मोमबत्ती, इत्यादि से प्रकाशवान बनाते हैं व खुशियाँ मनाते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है अतः व्यापारी वर्ग में व दुकानों में इस पर्व का विशेष महत्त्व है व उस दिन लोग माँ लक्ष्मीं की पूजा कर धन-धान्य की कामना करते हैं।
पर्व में खुशियाँ मनाना व पर्व के आधार पर अच्छे राह पर चलना तो ठीक है पर लोग कुछ लापरवाही व कुछ अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से भी नहीं चुकते हैं। आप खुद देखिए, अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक पर्व दीपावली के लिए लोग महीनों पहले से अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं पर दीपावली के दिन क्या करते हैं। उस दिन लोग बम-पटाखे व आतिशबाजी से ध्वनि व वायु प्रदूषित कर हमारे पर्यावरण व वातावरण को ही नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि खुद के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ......... अंधकार से प्रकाश में जाना तो ठीक है, साफ-सफाई भी ठीक है पर वातावरण प्रदूषित कर खुद की स्वास्थ्य खराब करना कहाँ तक उचित है? जरा सोचें, दीपावली अंधकार से प्रकाश में जाने का पर्व है न की स्वच्छ वातावरण को प्रदूषित करने का। .....................
दूसरी ओर कितने लोगों की यह संकीर्ण मानसिकता रहती है की इस दिन रात में जुआ / सट्टा / पचीसी खेला जाता है / खेलना चाहिए और अपने इसी संकीर्ण मानसिकता के कारण कितने लोग उस रात जुआ खेलते हैं / पैसे सट्टा में लगाते हैं व हजारों रुपये बर्बाद करते हैं। पर सोचें, क्या हुआ जुआ खेलकर ...... एक ओर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा व दूसरी ओर जुआ / सट्टा में हार कर धन बर्बाद करना ................ क्यों, ऐसा क्यों? ................... वास्तव में जुआ खेलना धन कमाने का उचित तरीका है ही नहीं। ..................
दीपावली अंधकार से प्रकाश में जाने का पर्व है और इस दिन अपने में बुराई रूपी अंधकार को हटाकर अच्छाई रूपी प्रकाश को लाना चाहिए। तो क्यों न इस दिवाली में हम बुरे मार्ग से हटकर अच्छे मार्ग पर चलने का संकल्प लें।
5 comments:
बढिया विचार प्रेषित किए है। धन्यवाद।
बहुत सुंदर विचार, भाई हम जुआ नही खेलते, आतिशवाजी भी नही चलाते, शराब भी कभी कभार एक पेग या एक बीय़र पीते है,लेकिन किसी भी त्योहार वाले दिन नही.
धन्यवाद
diwali aayegi to deep jalega hi.lekin kahan jalana chaukhat pe,ghar ke kone pe ya fir mahaj saaj-sajja ke liye char diwaron pe ya fir-------
jahan andhera ghana he.
jahan surya asamarth he.
jahan bahri rosini nahi jati.
arthat apne bhitar
man ke chhote se aangan me
bas ek hi deep jalana
bas ek hi deep jalana
ki raushan ho
vicharon ka jahan
prem-sauhard ka aashiyan.
भाटिया जी,
अपना विचार देने के लिए धन्यवाद.
आप दृढ संकल्पित होकर शराब छोड़ सकते है.
कोशिश करें, छूट जायेगी.
इस दिवाली में एक इस अच्छाई को अपनाएं.
आपका
महेश
सुंदर विचार .. आपको भी दीपावली की शुभकामनाएं !!
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