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Justice For Mahesh Kumar Verma

Wednesday, April 1, 2009

नशा!

नशा!
नशा शराब में नहीं
नशा बोतल में नहीं
नशा तो मेरे मन में है
यदि होती शराब में नशा
तो नाचती वो बोतल
यदि होती बोतल में नशा
तो नाचती वो बोतल
पर नशा तो मेरे उस मन में है
जिसने खुद को पागल बनाया
व बोतल व शराब से दोस्ती निभाया
नशा शराब में नहीं
नशा मेरे मन में है
नशा मेरे मन में है
और बोतल बेचारा बदनाम है
नशा बोतल में नहीं
नशा मेरे मन में है
नशा मेरे मन में है

5 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बढिया रचना लिखी है।बधाई।

SUNIL KUMAR SONU said...

bahut hi sundar nasha hai bade sahab.bole to LAJABAB

संगीता पुरी said...

अच्‍छा लिखा है ...

राज भाटिय़ा said...

बिलकुल सही लिखा.
धन्यवाद

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

सभी को मेरे ब्लॉग पर पधारने व प्रतिक्रिया देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

आपका
महेश

चिट्ठाजगत
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