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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Friday, November 30, 2007

तुमसे जुदाई का दर्द सहा नहीं जाता

तुमसे जुदाई का दर्द सहा नहीं जाता
तेरे बिना अब रहा नहीं जाता
खाई थी जीवन भर साथ देने की क़समें
खाई थी साथ-साथ जीने-मरने की क़समें
पर बेदर्द जमाना ने ऐसी जुदाई दी
कि फिर पास आना मुश्किल है
तुमसे मिलना मुश्किल है
आपस में बातें करना मुश्किल है
पर तोड़ दो इन सारे बंधनों को
और पास आ जाओ पास आ जाओ
तुमसे जुदाई का दर्द सहा नहीं जाता
तेरे बिना अब रहा नहीं जाता

Wednesday, November 28, 2007

शाकाहारी भोजन : शंका समाधान

पिछले दिनों दिल की आवाज़ पर मांसाहार से संबंधित मेरा दो विचार (i) मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन व (ii) मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित प्रकाशित किए गए। इन ब्लाग्स पर पाठकों द्वारा प्राप्त प्रतिक्रिया में मेरे विचार के पक्ष में व विपक्ष में दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं थी। जिसमें पाठकों द्वारा कुछ प्रश्न भी उठाए गए। प्रस्तुत आलेख पाठकों द्वारा उठाए गए प्रश्नों के जवाब के रूप में प्रस्तुत है।
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कितने लोग मांसाहार के पक्ष में यह तर्क देते हैं की शाकाहार भोजन में हम जब पेड़-पौधे रूपी जीव की हत्या कर सकते हैं तो फिर मांसाहार भोजन से परहेज क्यों? इस तर्क के जवाब में मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि शाकाहार भोजन में वनस्पति को कष्ट होता है यह बात सही है पर मांसाहार भोजन में जंतु की हत्या होती है। और आपको यह समझना चाहिए कि जो भी पेड़-पौधे होते हैं वह फल अपने लिए नहीं उपजाते हैं बल्कि वह फल मनुष्य व अन्य पशु के भोजन के लिए ही होता है। पर कोई भी जंतु अपनी संतान का उत्पादन मनुष्य के भोजन के लिए नहीं करता है। जिस प्रकार आपको अपने संतान या अपने प्राणों से प्रेम रहता है उसी प्रकार उस जंतु को भी अपने प्राणों व अपनी संतान से प्रेम रहता है जिसे मारकर हम खाते हैं। जहाँ तक रही फल की बात तो पेड़ तो फल का उत्पादन मनुष्य व अन्य पशु के लिए ही करता है। आप फल को आसानी से तोड़कर खा सकते हैं, पेड़ कोई आपत्ति नहीं करेगा। यदि आप उस फल को न तोडें तो कुछ दिनों के बाद पेड़ खुद उस फल को छोड़ देता है क्योंकि पेड़ ने फल अपने लिए उत्पादित नहीं किए थे।
मांसाहार के पक्ष में कितने लोगों का तर्क रहता है कि यह प्रकृति का नियम है कि एक जीव दूसरे जीव का भोजन करते हैं, यदि मांसाहार भोजन बंद कर दिया जाए तो उस शाकाहारी जीव , जिनका मांस खाया जाया जाता है, की संख्या काफी बढ़ जाएगी और वे हमारी फसल नष्ट कर देंगे। इस तर्क के संदर्भ में मैं कहना चाहता हूँ कि विवेकशील मनुष्य के द्वारा यह तर्क देना शोभा नहीं देता है। उन्हें यह जानना चाहिए कि प्रकृति के द्वारा नियम में जो आहार-श्रृंखला है उसमें यह कहीं नहीं है कि मनुष्य वनस्पति के अलावे दूसरे जीव को खाएगा। हाँ, अन्य जंगली जीवों के साथ ऐसा है कि मांसाहारी जीव शाकाहारी जीव को खाते हैं, पर मनुष्य के साथ प्रकृति का यह नियम नहीं है। रही यह बात कि यदि हम मांसाहार भोजन न करें तो शाकाहारी जीवों कि संख्या बढ़ जाएगी और वी हमारी फसल नष्ट कर देंगे तो इस संदर्भ में बुद्धिमान मनुष्य को यह समझना चाहिए कि वह शाकाहारी जीव जिनका हम भोजन करते हैं वे पहले वास्तव में जंगल में ही रहते थे पर हम मनुष्य ही उसे जंगल से हटाकर अपने साथ बस्ती में ले आए। ........... फिर हम उन्हें पालकर उनकी संख्या वृद्धि में तो खुद हम ही सहायक बन रहे हैं तब फिर यह कहना किसी भी अर्थ में उचित नहीं है कि यदि नहीं खाएंगे तो उनकी संख्या बढ़ जाएगी। ...........
मनुष्य सर्वाधिक श्रेष्ठ व सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी है और इस कारण मनुष्य को अन्य जीवो का भक्षक बनना मनुष्य जाति के लिए शर्म व कलंक की बात है।

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मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन

मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित

वह बकरा ने आपको क्या किया था?

http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0

Sunday, November 18, 2007

पंच : परमेश्वर या पापी

सुना था पंचायत में पंच आते हैं
जो ईमानदार व निष्पक्ष होते हैं
वह धर्मानुकुल उचित निर्णय सुनाते हैं
इसी लिए पंच को परमेश्वर कहते हैं
पर जब मैं देखा कि
आए हुए पंच ईमानदार नहीं पक्षपाती है
वह दूसरे पक्ष को सुनने वाला नहीं
बल्कि एकतरफा दोषी का साथ देने वाला है
वह निष्पक्ष फैसला करने वाला नहीं
बल्कि निर्दोष पर ही जानलेवा हमला करने वाला है
तो मुझे सोचना पड़ा कि
यह पंच परमेश्वर नहीं बल्कि पंच पापी है

Saturday, November 17, 2007

तेरी याद में

सोता हूँ तेरी याद में
जागता हूँ तेरी याद में
खाता हूँ तेरी याद में
पीता हूँ तेरी याद में
लिखता हूँ तेरी याद में
सब कुछ करता हूँ तेरी याद में
हर पल बीतता है तेरी याद में
सब कुछ समर्पित है तेरी याद में
मेरा दिल धड़कता है तेरी याद में
बस तेरी याद में तेरी याद में

मांसाहार भोजन : उचित या अनुचित

मनुष्य जाति के लिए इससे बड़ी शर्म की बात और कुछ नहीं होगी कि यह बेकसूर जीवों को मारकर फिर उसे खाकर अपना पेट भरता है। धिक्कार है ऐसी मनुष्य जाति को जो अपने को सर्वश्रेष्ठ व सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील कहता है। उस समय कहाँ जाती है उसकी बुद्धिमत्ता व विवेकशीलता जब वह बेकसूर जीवों को मारकर उसे खाता है? क्या यही उसकी बुद्धिमत्ता है कि निरपराध जीवों को मारकर अपनी पेट भरे? क्या यही उसकी बुद्धिमत्ता है कि अपने से कमजोर जीव को मारकर अपना पेट भरे?..................
किसी भी सूरत में मांसाहार भोजन उचित नहीं है। जिस प्रकार हमें अपने प्राणों से प्रेम रहता है उसी प्रकार हमें उन जीवों के लिए भी सोचना चाहिए जिन्हें मारकर हम खाते है। ..........

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मंथन : विजया दशमी और मांसाहार भोजन

शाकाहारी भोजन : शंका समाधान

वह बकरा ने आपको क्या किया था?

http://groups.google.co.in/group/hindibhasha/browse_thread/thread/dde9e2ce361496a0

Sunday, November 11, 2007

इतना कष्ट दिया तुने

इतना कष्ट दिया तुने कि अब तड़पा भी नहीं जाता है
इतना रुलाया तुने कि अब रोया भी नहीं जाता है
इतना प्यार था तुमसे कि अब साथ छोड़ा भी नहीं जाता है
इतना अन्याय किया तुने कि अब साथ रहा भी नहीं जाता है

तुझे लोगों ने श्रेष्ठ व बुद्धिजीवी समझा
पर तुम सबसे बड़ा पापी व अधर्मी निकला
तुझे लोगों ने दिल का साफ समझा
पर तुम मीठा जहर निकला
तुमसे लोगों न चाहा था उचित व्यवहार
पर तुमने किया सबों के साथ दुर्व्यवहार

तुमपर मैं किया था बहुत ही विश्वास
पर कभी न सोचा था कि तुम करोगे ऐसा आघात
पर अब मुझे नहीं होगी यह बर्दाश्त
क्योंकि तुने किया बहुत ही घिनौना वारदात

एक शंकर था आदि काल में जिसने विष का पान किया
एक शंकर तुम हो जिसने सबका सर्वनाश किया
इतना अन्याय किया तुने कि अब साथ रहा भी नही जाता है
इतना प्यार था तुमसे कि अब साथ छोड़ा भी नहीं जाता है

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यह रचना महेश कुमार वर्मा द्वारा १९.०८.२००६ को लिखा गया था।

Thursday, November 8, 2007

दिवाली दिन है खुशियाँ मनाने का

दिवाली दिन है खुशियाँ मनाने का
न कि बाद में पछताने का
दिवाली दिन है बुराई पर अच्छाई के विजय का
न कि जुआ में पैसे बर्बाद करने का
दिवाली दिन है अन्धकार से प्रकाश में जाने का
न कि बम-पटाखा से प्रदुषण फैलाने का
दिवाली दिन है आपस में खुशियाँ बटाने का
न कि बम-पटाखा से घायल होने का
दिवाली दिन है खुशियाँ मनाने का
न कि बाद में पछताने का

आख़िर क्या गलती थी मेरी

आख़िर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मुझे बदनाम व अपमानित किया
आख़िर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया
आखिर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मेरे साथ मार-पिट किया
आखिर क्या गलती थी मेरी
जो तुमने मुझे घर से निकला

चुप क्यों हो
बोलते क्यों नहीं हो
मुझे जवाब चाहिए
आखिर क्या गलती थी मेरी
आख़िर किस गलती की
सजा दे रहे हो मुझे
बोलो, बोलते क्यों नहीं हो
जवाब दो, मुझे जवाब चाहिए
आखिर क्या गलती थी मेरी

यही न कि
मैं तुम्हारे द्वारा बोले गए झूठ का विरोध किया
व तुम्हें सच्चाई बताना चाहा
बस यही न
इसी गलती की सजा दे रहे हो तुम
यानी सच बोलने की सजा

यदि सच बोलना है गुनाह तो जिंदा रहना भी है गुनाह
ठीक है, मर जाउंगा मिट जाउंगा
पर नहीं रहूंगा झूठ को स्वीकारकर
और मेरे मरने के लिए जिम्मेवार होगे तुम
तुम यानी झूठ बोलने के मामला में सबसे खतरनाक
व इस पृथ्वी पर का सबसे बड़ा अन्यायी व पापी व्यक्ति शिव शंकर

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यह रचना महेश कमर वर्मा द्वारा २६.०६.२००६ को लिखा गया था।
LS280

Saturday, November 3, 2007

हमें अपनी मंजिल को पाना है

हमें अपनी मंजिल को पाना है
हर चुनौती को स्वीकारना है
राह में चाहे जो भी बाधा आए
दुश्मन चाहे लाखों कांटा बिछाए
हरेक बाधा को तोड़ना है
हमें अपनी मंजिल को पाना है

अपना कर्म करते जा

अपना कर्म करते जा
जीवन में आगे बढ़ते जा
देखो कभी न तुम मुड़कर
सोचो कभी न तुम रूककर
हर परिस्थिति में बढ़ते जा
हरेक बढ़ा को तोड़ते जा
अपना कर्म करते जा
जीवन में आगे बढ़ते जा
चिट्ठाजगत
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