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Justice For Mahesh Kumar Verma

Monday, December 1, 2008

याद

याद

हर रोज तुम आती हो
हर वक्त साथ रहती हो
तुम्हारे साथ रहने के कारण ही
मैं राह चल पाता हूँ
तुम साथ रहती हो
पर फिर भी
नहीं कर पाता तुम्हारा शरीर-स्पर्श
कारण तुम शरीर से नहीं
बल्कि तुम्हारी सिर्फ याद आती है
तुम्हारी सिर्फ याद आती है

तुम्हारी याद में वो बल है
जो मुझे आगे बढ़ाता है
तुम्हारी याद में वो आकर्षण है
जो मुझे तुम्हारे करीब लाता है
तुम्हारी याद में वो एकता है
जो हमदोनों को एक बनाता है
तुम्हारी याद में वो संजीवनी है
जो मुझे जीवित रखता है
तो भला तुम्हारी याद कैसे न आए
तुम्हारी याद कैसे न आए



-- महेश कुमार वर्मा

3 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब मियां , बहुत सुंदर.
धन्यवाद

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

bhagwan kare aisi yaaden sabko milen.....!!

vijay kumar sappatti said...

kya baat hai yaar

itni acchi kavita ki bus poocho mat.

bahut bahut badhai


vijay
poemsofvijay.blogspot.com

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