याद
हर रोज तुम आती होहर वक्त साथ रहती हो
तुम्हारे साथ रहने के कारण ही
मैं राह चल पाता हूँ
तुम साथ रहती हो
पर फिर भी
नहीं कर पाता तुम्हारा शरीर-स्पर्श
कारण तुम शरीर से नहीं
बल्कि तुम्हारी सिर्फ याद आती है
तुम्हारी सिर्फ याद आती है
तुम्हारी याद में वो बल है
जो मुझे आगे बढ़ाता है
तुम्हारी याद में वो आकर्षण है
जो मुझे तुम्हारे करीब लाता है
तुम्हारी याद में वो एकता है
जो हमदोनों को एक बनाता है
तुम्हारी याद में वो संजीवनी है
जो मुझे जीवित रखता है
तो भला तुम्हारी याद कैसे न आए
तुम्हारी याद कैसे न आए
-- महेश कुमार वर्मा
3 comments:
बहुत खुब मियां , बहुत सुंदर.
धन्यवाद
bhagwan kare aisi yaaden sabko milen.....!!
kya baat hai yaar
itni acchi kavita ki bus poocho mat.
bahut bahut badhai
vijay
poemsofvijay.blogspot.com
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