इंसान नहीं हैवान हैं हम
मारते बेकसूर जीव को और
भरते अपना पेट हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम
मत कहो हमें सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी
यहाँ हम रोज करते हैं बेईमानी
करते हैं अत्याचार
होती है बलात्कार
देते हैं रिश्वत
कोई नहीं करता है बहिष्कार
एक दिन नहीं रोज का है धंधा
पहुंचाते हैं पैसा
डालते हैं डाका
देते हैं उसे भी आधा
पैसे दो मौज मनाओ
कुछ न कहेंगे कुछ न करेंगे
अपना काम करते रहो
वे यों ही सोते रहेंगे
न्याय के लिए आने वाले को हंटर लगाएंगे
वे पुलिस हैं पुलिस ही कहलाएंगे
यह थी हमारी एक झलक
यहाँ होती है अत्याचार झपकते ही पलक
अन्याय करने में सब है मतवाला
जो जितना बड़ा है उसका मुँह उतना ही काला
इंसान नहीं हैवान हैं हम
कलियुग के शैतान हैं हम
मत कहो हमें सर्वाधिक बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी
हैं हम दुनिया के सर्वाधिक खतरनाक प्राणी
इंसान नहीं हैवान हैं हम
इंसान नहीं हैवान हैं हम
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http://kavimanch.blogspot.com/#poem18
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Justice For Mahesh Kumar Verma
Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....
Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015
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1 comment:
ओजस्वी आशावान रचना!
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