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Justice For Mahesh Kumar Verma

Wednesday, December 26, 2007

कैसे करूं मैं नववर्ष का स्वागत

दिन बीते माह बीते वर्ष बीत गए
कितने आए कितने गए उम्र बीत गए
कहना न होगा हम चाँद सितारों पर पहुँच गए
पर धर्म के राह पर हम अभी तक न आए
नहीं मिलती है अदालत में न्याय
व्याप्त है चारों ओर अन्याय ही अन्याय
जब करो न्याय की बात
तो होगी अन्याय से मुलाकात
लाए हो सौगात तो होगी तुम्हारी बात
नहीं तो खाने पड़ सकते हैं दो-चार लात
बहुत बड़ी है उनकी औकात
भेज सकते हैं निर्दोष को भी हवालात
लौट जाना पड़ता है मुँह लटकाकर
क्योंकि रक्षक बना है भक्षक हथियार उठाकर
पता नहीं कब होगी धर्म की स्थापना
न जाने कैसा होगा आने वाला जमाना
नहीं है कहीं न्याय की सुगबुगाहट
चारों ओर है अन्याय का ही आहट
कैसे करूँ मैं नववर्ष का स्वागत
कैसे करूँ मैं नववर्ष का स्वागत

Friday, December 21, 2007

आज का संसार

न्याय मांगने पर जहाँ होता है प्रहार
छीन लेता है मुख का आहार
पीड़ित के साथ होता है दुराचार
यही तो है आज का संसार

Thursday, December 20, 2007

यह दिल की आवाज़ है

बात बहुत खास है
यहाँ सुशासन नहीं कुशासन है
यहाँ रक्षक ही भक्षक है
न्याय मिलने की नहीं आश है
क्योंकि पंच परमेश्वर नहीं पंच पापी है
कोई नहीं अपना है
यह दिल की आवाज़ है

Sunday, December 9, 2007

जमाना हो गया है बेदर्द

दिले दर्द को बयां कर नहीं सकता
दर्द को सह पाना आसान नहीं है
आसानी से मर नहीं सकता
ऐसी स्थिति में जिंदा रहना भी आसान नहीं है
सुनाऊं किसे मैं अपना दर्द
जमाना हो गया है बेदर्द
जो सुनना चाहा मेरा दर्द
जमाना उसे मुझसे दूर किया
जमाना उसे मुझसे दूर किया
क्योंकि जमाना हो गया है बेदर्द

Monday, December 3, 2007

मेरा जीवन नहीं है खुशहाल

कोई मुझसे प्रभावित है
तो कोई मुझसे खफा है
कोई विशेष विषय पर मेरा विचार जानना चाहता है
तो कोई मेरे शब्दों से कोसों भागता है
कोई मेरे बारे में विस्तृत जानना चाहता है
तो कोई मेरे नाम से घबराता है
कोई दरवाजा पर करोड़ों लिए खड़ा है
तो कोई दरवाजा पर से (मुझे) भूखों भगाया है
पता नहीं क्या होगा
मत पुछो मेरा हाल
चाहे जो भी होगा
पर अब मेरा जीवन नहीं है खुशहाल
चिट्ठाजगत
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