हमारी पुलिस प्रशासन का हालात कैसी है इसका अंदाजा इसी घटना से लगाया जा सकता है कि आगामी ३०.०४.२००९ को लोकसभा चुनाव है और इससे मात्र ८ दिन पहले २२.०४.२००९ को एक प्रा. वि. के हेडमास्टर श्री चितरंजन भगत का अपहरण होता है। पर घटना के चौथे दिन आज २५.०४.२००९ के अब तक भी पुलिस द्वारा न तो अपहर्ता के विरुद्ध कोई खाश कार्रवाई ही की गयी है न तो अपहृत को ही उनके चंगुल से मुक्त कराया गया है जबकि अपहर्ता व अपहृत से मोबाईल पर बराबर बात हो रही है। इसके बावजूद भी पुलिस द्वारा कार्रवाई नहीं की जा रही है। आरक्षी अधीक्षक (एस. पी.) ने स्पष्ट रूप से कल २४.०४.२००९ को पीड़ित वालों को कह दिया कि मेरे पास कार्रवाई करने के लिए फोर्स नहीं है। वहीं डी. एस. पी. ने कह दिया कि आपलोग खुद अपने स्तर से मामला को सलटा लें। उल्लेखनीय है कि अपहर्ता द्वारा मोबाईल पर ६ लाख रूपये फिरौती की माँग की गयी है (जो बाद में कम कर ४ लाख कर दिया गया है) और पैसे जमा करने के लिए आज २५.०४.२००९ तक का समय दिया गया है अन्यथा अपहृत को जान से मार डालने की धमकी दी गयी है। पर पुलिस अब तक हाथ पर हाथ धरे बैठी है। एस. पी. के अनुसार कार्रवाई करने के लिए उनके पास फोर्स नहीं है। जब इस मामला में कार्रवाई करने के लिए प्रशासन के पास फोर्स नहीं है तो आप सोच सकते है कि ५ दिनों के बाद ३०.०४.२००९ को होने वाले चुनाव कितना निष्पक्ष होगा? ............ आख़िर पुलिसवाले करेंगे भी क्या? इस घटना में पुलिसवाले व थाना का अपराधकर्मी से साथ-गाँठ है, इसका भी प्रमाण मिला है, जो इस घटना से स्पष्ट है :
अपहर्ता व अपहृत का फोन हमेशा पीड़ित के एक नजदीकी के मोबाईल पर आता है जिसमें अपहर्ता पैसे की माँग करते हैं अन्यथा अपहृत को जान से मार डालने की धमकी देते हैं। ..... मोबाईल धारक द्वारा हुए बातचीत की रिकॉर्डिंग कर ली जाती है और फिर वे इस रिकार्डिंग को संबंधित सलखुआ(सहरसा) थाना के पुलिस अधिकारी को सुनाते हैं। तो फिर बाद में अपराधकर्मियों द्वारा फोन पर कहा जाता है कि आप थाना गए थे और वहाँ हमलोगों के बातचीत के रिकॉर्डिंग सुनाये हैं ........... इस प्रकार कहकर उन्हें धमकी दी जाती है ........................ अब आप खुद सोचें कि थाना में रिकॉर्डिंग सुनाया गया तो यह ख़बर अपराधकर्मियों तक कैसे पहुँचा? यह इसी बात को प्रमाणित करता है कि थाना और पुलिसवाले का अपराधकर्मी से साथ-गाँठ है और इसी कारण ही वे कोई विशेष कार्रवाई नहीं कर रहे हैं और इस केस से अपना पिंड छुड़ाने के लिए कह दिए कि कार्रवाई करने के लिए फोर्स नहीं है, आप अपने स्तर से ही मामला को सलटा लें (यानि पैसे के लेन-देन करके छुड़वा लें)।
इस पुरे घटनाक्रम से हमारी पुलिसिया तंत्र की हालात स्पष्ट होती है जो यदि चाहे तो अपहृत को तुरत मुक्त करा सकता है पर अपराधी से खुद उनकी साथ-गाँठ होने के कारण वे कुछ नहीं कर रही है। घटना बिहार राज्य के सहरसा जिला के सलखुआ थाना क्षेत्र की है। अपहृत श्री चितरंजन भगत सहरसा के संतनगर मुहल्ला के निवासी हैं तथा सलखुआ(सहरसा) के फरकिया क्षेत्र स्थित प्रा. वि., रंगनिया(अलानी) में हेडमास्टर के पद पर पदस्थापित हैं; जिन्हें गत बुधवार यानि २२.०४.२००९ को स्कूल जाने के क्रम में पंचभीरा घाट के समीप सशस्त्र अपराधकर्मियों द्वारा अपहरण कर लिया गया। ...................... इस क्षेत्र में यानी सुपौल लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र में अगले कुछ दिनों बाद ३०.०४.२००९ को लोक सभा चुनाव होनी है। अब आप खुद सोचें कि क्या पुलिस प्रशासन की यह हालात यहाँ लोक सभा चुनाव कराने के लिए उचित है? ............. क्या इस हालात में यहाँ निष्पक्ष चुनाव हो सकता है? ................. क्या यहाँ के आम जनता सुरक्षित है? ......................... नहीं, यहाँ न तो आम जनता ही सुरक्षित है और न ही यहाँ के पुलिस प्रशासन ही चुस्त व दुरुस्त है जो सही ढंग से चुनाव करा सके। इस प्रकार यहाँ के यानी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र सुपौल की वर्तमान स्थिति चुनाव कराने लायक नहीं है। .......... यों भी जब एक अपहरण के मामला में पुलिस कुछ नहीं कर रही है और एस. पी. खुद कह दिए कि कार्रवाई करने के लिए उनके पास फोर्स नहीं है तो फिर ऐसे विकलांग पुलिस प्रशासन के भरोसे लोक सभा चुनाव कैसे कराया जा सकता है? .....................................
(घटना की जानकारी विभिन्न स्रोतों द्वारा प्राप्त जानकारी पर आधारित)