इस साईट को अपने पसंद के लिपि में देखें

Justice For Mahesh Kumar Verma

Sunday, July 19, 2009

तीन भिखारी

तीन भिखारी

 

हाथ में कटोरा लिए

आधा कपड़ा फटे हुए

आधा तन उघड़े हुए

एक हाथ में लाठी लिए

झुकी कमर से चल रहे

लोगों से हैं कह रहे

दे दो बाबू दे दो

इस बुढ़े को दे दो

तू एक पैसे देगा

वो दस लाख देगा

दे दो बाबू दे दो

दे दो बाबू दे दो

उसे देख कई चलने वाले

सिक्‍के डाल देते कटोरी में उसके

कोई अपने आप से कहता

यही है इन लोगों का धंधा

तो कोई नजर छुपाकर बढ़ जाते

व सुरक्षित रखते अपने पैसे

सुरक्षित रखते अपने पैसे

सड़क पर के भिखारी ये

मॉंगते दो पैसे अपने पेट के लिए

मॉंगते दो पैसे अपने पेट के लिए

 

थोड़ी दूर चलने पर

पहुँचा मैं अपने पुराने ऑफिस में

थोड़ी दूर चलने पर

पहुँचा मैं अपने पुराने ऑफिस में

वही पुराना ऑफिस

जहॉं मैं वर्षों कार्य किया

वही पुराना ऑफिस

जहॉं से मैं रिटायर हुआ

मेरे रिटायर होने पर

किया था विदाई समारोह सहकर्मियों ने

दिया था कुछ उपहार मेरे सह‍कर्मियों ने

वही पुराना ऑफिस

वही पुराना ऑफिस जब मैं पहुँचा

लेने अपने रिटायर्मेंट का पैसा

लेने अपने रिटायर्मेंट का पैसा

बड़ा बाबू ऐनक पहने

मोटे फाईल में व्‍यस्‍त थे

मुझे देख ऐनक उतार

मुझको वे समझाने लगे

मेरे ही पैसे मुझे देने के लिए

मॉंग रहे थे मुझसे पैसे

मॉंग रहे थे मुझसे पैसे

कहा उसने

नहीं दोगे तो होगा नहीं काम तुम्‍हारा

अब नहीं है यहॉं ईमानदारी तुम्‍हारा

मेरे कलम पर है पैसा तुम्‍हारा

मेरे कलम पर है पैसा तुम्‍हारा

अब तुम्‍हारा नहीं है यहॉं कोई सम्‍मान

दे दो वरना कर दुँगा तुम्‍हें बदनाम

फिर नहीं होगा तुम्‍हारा काम

फिर नहीं होगा तुम्‍हार काम

 

मैं वापस आ गया

मैं वापस आ गया

सोचने लगा

मेरे ही पैसे मुझे देने के लिए

मॉंगते हैं ये पैसे मुझसे

मॉंगते हैं ये पैसे मुझसे

यह सोचने पर मैं विवश था

यह सोचने पर मैं विवश था

कि यह तो

उस सड़क किनारे के

भिखारी से भी बदतर निकला

जिसने मेरे पैसे को भी

अपना ही समझा

जिसने मेरे पैसे को भी अपनो ही समझा

 

नहीं था मेरे पास कोई चारा

सोचा कि लूँ पुलिस का सहारा

नहीं था मेरे पास कोई चारा

सोचा कि लूँ पुलिस का सहारा

गया मैं थाना पुलिस के पास

होती दारोगा बाबू से मुलाकात

जो सामने ऑफिस में ही थे

कलम लिए कुछ लिख रहे थे

उनके ईशारे पर

सामने कुर्सी पर मैं बैठा

और सुनाया अपना दुखड़ा

कहा मैं बिल्‍कुल साफ-सुथरा

नहीं है मेरे पास कोई पैसा

आपसे ही है मुझे आशा

आपसे ही है मुझे आशा

दिला दो मुझे मेरा पैसा

दिला दो मुझे मेरा पैसा

 

दारोगा बाबू ने कुछ सोचकर कहा

दारोगा बाबू ने कुछ सोचकर कहा

काम तो हो जाएगा

पर देना होगा कुछ पैसा

फिर तुम्‍हारा सारा पैसा

तुम्‍हारे हाथ में होगा

और वह बड़ा बाबू

वह बड़ा बाबू भी हवालात में होगा

वह बड़ा बाबू भी हवालात में होगा

पर कुछ तो देना होगा

बिना दिए कुछ नहीं होगा

बिना दिए कुछ नहीं होगा

 

मैंने कहा

मेरे पास नहीं है पैसा

मेरे पास नहीं है पैसा

वहाँ न दिया तो

आपके लिए

लाऊँ मैं कहॉं से पैसा

लाऊँ मैं कहॉं से पैसा

मेरे पास नहीं है पैसा

पर एक आपसे ही है आशा

एक आपसे ही है आशा

दिला दो मुझे मेरा पैसा

दिला दो मुझे मेरा पैसा

 

पर दारोगा बाबू ने कुछ नहीं सुना

दारोगा बाबू ने कुछ नहीं सुना

कहा उसने संतरी से

निकालो इसे बाहर

और ले जाओ यहॉं से

है नहीं पैसा

और करता है बकवास

ले जाओ इसे यहॉं से

ले जाओ इसे यहॉं से

आया संतरी

बड़ी-बड़ी मुँछों वाला

रंग था उसका बिल्‍कुल काला

हाथ में लिए था डंडा

खींच मुझे बाहर निकाला

मैं कुछ कहना चाहा

पर उसने एक न सुना

धक्‍का देकर बाहर निकाला

दो-चार थप्‍पड़ भी लगाया

और मुझे निकाल दिया

और मुझे निकाल दिया

 

आया फिर मैं अपने घर में

आया फिर मैं अपने घर में

सोचने लगा

कि ये पुलिस हैं या हैं जल्‍लाद

ये रक्षक हैं या हैं भक्षक

करते हैं ये धर्म की रक्षा

या करते हैं धर्म को ही हलाल

या करते हैं धर्म को ही हलाल

मैं सोचने लगा

कि ये क्‍यों मॉंगते हैं मुझसे

ये क्‍यों मॉंगते हैं मुझसे

सड़क का भिखारी

अपने पेट के लिए मॉंगते हैं

ऑफिस का किरानी

मेरे पैसे को अपना ही समझ लिया

और ये पुलिस

ये तो

ये तो मेरे पैसे व मेरे शरीर

दोनों पर अपना अधिकार जमाया

और बेवजह मुझे मार भगाया

बेवजह मुझे मार भगाया

 

किरानी रूपी भिखारी

सड़क के भिखारी से बदतर निकला

पर पुलिस रूपी ये भिखारी

सबसे बड़ा घिनौना निकला

सबसे बड़ा घिनौना निकला

जो मेरे शरीर को भी मेरा न समझा

और बेवजह मुझे मार भगाया

बेवजह मुझे मर भगाया

पुलिस रूपी ये जल्‍लाद

सबसे बड़ा घिनौना निकला

सबसे बड़ा घिनौना निकला

 

*******

*****

***

*

 

 



--
महेश कुमार वर्मा
Webpage : http://popularindia.blogspot.com
E-mail ID : vermamahesh7@gmail.com
Contact No. : +919955239846
--------------------------------------------------------------

Tuesday, July 14, 2009

अब तुम्हारे हवाले बदन साथियों

हमारे देश को स्वतंत्र हुए ६२ वर्ष हो गए और अब हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं, कोई कुछ करने वाला नहीं है। चाहे भ्रष्टाचार का मामला हो या अपराध का मामला हो हम बेरोकटोक आगे बढ़ रहे हैं। आखिर हम स्वतंत्र जो हैं, मेरे कार्य पर कोई भला क्यों अंकुश लगाएगा? इतना ही नहीं हम अपने पहनावे में भी पूर्ण स्वतंत्र हो गए हैं। अपने इच्छानुसार हम ज्यादा कपड़े पहनें या कम पहनें, दुसरे को क्यों कुछ भी लेना-देना? तब तो आज फिल्म से लेकर हमारे समाज तक में शरीर पर से वस्त्र घटने लगे हैं। और यही देखकर मेरे कलम को भी नहीं रहा गया और उसे यह गीत गाना पड़ा :
हट गए हैं वस्त्र तन से साथियों।
अब तुहारे हवाले बदन साथियों॥
हो गए हैं फिदा सनम साथियों।
होंगे न जुदा सनम साथियों।
साँस थमती नहीं नब्ज जमती नहीं।
तुमसे मिलने को हैं बेकरार साथियों।
अब तुम्हारे हवाले बदन साथियों॥
हो गए हैं निर्वस्त्र दिलदार साथियों।
है तुम्हारा इंतजार आशिकी साथियों।
अब तुम्हारे हवाले बदन साथियों।
अब तुम्हारे हवाले बदन साथियों॥
(व्यंग्य)
रचनाकार : महेश कुमार वर्मा
चिट्ठाजगत
चिट्ठाजगत www.blogvani.com Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

यहाँ आप हिन्दी में लिख सकते हैं :