इस साईट को अपने पसंद के लिपि में देखें

Justice For Mahesh Kumar Verma

Sunday, October 18, 2009

हमें मनुष्य बनना होगा

दिवाली का पर्व बीत गया और अब महापर्व छठ निकट गया है। आपको याद होगा पिछले वर्ष छठ पर्व के उपरांत पशुओं ने कवि के रचना के माध्यम से मनुष्य को मुर्ख की संज्ञा देता हुए शाप दिया था कि इनका व्रत निष्फल जाएगा। क्या हम मनुष्य पशुओं के शाप से मुक्त होंगे?

हम मनुष्य को सबसे बुद्धिमान विवेकशील प्राणी कहते हैं पर वास्तव में इनका जीवन आज पशु से भी बदतर है, तभी तो ये पशुओं का दुःख-दर्द नहीं समझते हैं उन्हें मारकर अपना पेट भरते हैंकिसी भी दृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति ने मनुष्य को मांसाहारी जीव के रूप में नहीं बनाया है पर मनुष्य प्रकृति के नियम को तोड़कर मांसाहार करता हैउस समय मनुष्य अपनी सारी बुद्धि खो देता है और पशु से भी बदतर बन जाता
है।

अतः कवि हमें जोर डालते हुए मनुष्य बनने के लिए कहता है :

हमें मनुष्य बनना होगा
पशुओं का दर्द समझना होगा
प्रकृति के साथ चलना होगा
हमें मनुष्य बनना होगा

बन सके नारायण तो
नर का कर्तव्य निभाना होगा
अंदर के बुराई को हटाना होगा
अच्छाई को लाना होगा
हमें मनुष्य बनना होगा
हमें मनुष्य बनना होगा


-- महेश कुमार वर्मा

--

Saturday, October 17, 2009

दीपावली की शुभकामनाएं

दीपावली की शुभकामनाएं

अंतर में ज्ञान का दीप जलाकर सत्य के प्रकाश में ईमानदारिता के राह पर चलें।

Friday, October 9, 2009

दीपावली का संकल्प

दुर्गा पूजा व दशहरा बीत गया। ईद भी बीत गया और अब आ गया बुराई पर अच्छाई के विजय व अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक पर्व दीपावली। दीपावली का पर्व हमें अंधकार से प्रकाश में जाने की प्रेरणा देता है। इस पर्व के अवसर पर कई दिन पहले से ही लोग अपने घरों की साफ-सफाई में लग जाते है।
कार्त्तिक मास के
अमावस को मनाया जाने वाला इस पर्व को अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक माना जाता है। इस दिन शाम में लोग लक्ष्मी-गणेश का पूजन कर अपने घरों में दीप जलाते हैं। लोग घरों को दीपक से सजाते हैं और दीपक के रोशनी से ही अमावस की वह काली रात उजियाला में बदल जाता है। वैसे अब दीपक का स्थान मोमबत्ती व विद्युत-बल्ब भी ले लिया है। पर इस दिन लोग अपने घरों को दीप, मोमबत्ती, इत्यादि से प्रकाशवान बनाते हैं व खुशियाँ मनाते हैं। इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की पूजा होती है अतः व्यापारी वर्ग में व दुकानों में इस पर्व का विशेष महत्त्व है व उस दिन लोग माँ लक्ष्मीं की पूजा कर धन-धान्य की कामना करते हैं।
पर्व में खुशियाँ मनाना व पर्व के आधार पर अच्छे राह पर चलना तो ठीक है पर लोग कुछ लापरवाही व कुछ अपनी संकीर्ण मानसिकता के कारण खुद अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने से भी नहीं चुकते हैं। आप खुद देखिए, अंधकार से प्रकाश में जाने का प्रतिक पर्व दीपावली के लिए लोग महीनों पहले से अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं पर दीपावली के दिन क्या करते हैं। उस दिन लोग बम-पटाखे व आतिशबाजी से ध्वनि व वायु प्रदूषित कर हमारे पर्यावरण व वातावरण को ही नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि खुद के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाते हैं। ......... अंधकार से प्रकाश में जाना तो ठीक है, साफ-सफाई भी ठीक है पर वातावरण प्रदूषित कर खुद की स्वास्थ्य खराब करना कहाँ तक उचित है? जरा सोचें, दीपावली अंधकार से प्रकाश में जाने का पर्व है न की स्वच्छ वातावरण को प्रदूषित करने का। .....................
दूसरी ओर कितने लोगों की यह संकीर्ण मानसिकता रहती है की इस दिन रात में जुआ / सट्टा / पचीसी खेला जाता है / खेलना चाहिए और अपने इसी संकीर्ण मानसिकता के कारण कितने लोग उस रात जुआ खेलते हैं / पैसे सट्टा में लगाते हैं व हजारों रुपये बर्बाद करते हैं। पर सोचें, क्या हुआ जुआ खेलकर ...... एक ओर धन की देवी लक्ष्मी की पूजा व दूसरी ओर जुआ / सट्टा में हार कर धन बर्बाद करना ................ क्यों, ऐसा क्यों? ................... वास्तव में जुआ खेलना धन कमाने का उचित तरीका है ही नहीं। ..................

दीपावली अंधकार से प्रकाश में जाने का पर्व है और इस दिन अपने में बुराई रूपी अंधकार को हटाकर अच्छाई रूपी प्रकाश को लाना चाहिएतो क्यों इस दिवाली में हम बुरे मार्ग से हटकर अच्छे मार्ग पर चलने का संकल्प लें


चिट्ठाजगत
चिट्ठाजगत www.blogvani.com Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

यहाँ आप हिन्दी में लिख सकते हैं :