हम मनुष्य को सबसे बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी कहते हैं पर वास्तव में इनका जीवन आज पशु से भी बदतर है, तभी तो ये पशुओं का दुःख-दर्द नहीं समझते हैं व उन्हें मारकर अपना पेट भरते हैं। किसी भी दृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति ने मनुष्य को मांसाहारी जीव के रूप में नहीं बनाया है पर मनुष्य प्रकृति के नियम को तोड़कर मांसाहार करता है। उस समय मनुष्य अपनी सारी बुद्धि खो देता है और पशु से भी बदतर बन जाता है।
अतः कवि हमें जोर डालते हुए मनुष्य बनने के लिए कहता है :
पशुओं का दर्द समझना होगा
प्रकृति के साथ चलना होगा
हमें मनुष्य बनना होगा॥
न बन सके नारायण तो
नर का कर्तव्य निभाना होगा
अंदर के बुराई को हटाना होगा
व अच्छाई को लाना होगा
हमें मनुष्य बनना होगा।
हमें मनुष्य बनना होगा॥
-- महेश कुमार वर्मा