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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Wednesday, December 30, 2009

नववर्ष का विचार : हमें सुधरना होगा

नव वर्ष पर सबों को हार्दिक शुभकामनाएं।

हरेक वर्ष हम नववर्ष पर एक-दुसरे को शुभकामनाएं देते है। पर कभी हमने सोचा है कि सिर्फ शुभकामनाएं भर दे देने से क्या हमारा समाज व देश उन्नति कर सकेगा। कभी नहीं, हमें अपने समाज से बुराई को हटाना होगा। जब तक हम समाज में व्याप्त बुराई को हटाने में कोई सहयोग नहीं करते हैं तो सिर्फ शुभकामनाएं देने से कुछ नहीं होगा। कितने लोग सोचते व कहते हैं कि एक हमारे चाहने से क्या होगा .......... पूरा दुनियाँ ऐसी हैं तो क्या एक सिर्फ हमारे सुधरने से दुनियाँ सुधर जायेगी ............ इस तरह से लोग कई बात कहते हैं। पर हमें सोचना व समझना चाहिए कि हम और आप जैसे व्यक्तियों से ही यह समाज बना है। तब फिर हमारे व आपके सुधरने से यह समाज क्यों न सुधरेगा? याद रखें हमारे-आपके सहयोग से ही इस देश की उन्नति संभव है। और हमारे-आपके सहयोग से ही देश से अपराध व भ्रष्टाचार समाप्त हो सकती है। अन्यथा देश की अपराध व भ्रष्टाचार हमें ही कुचल देगी।

अतः हम सबों से यह आह्वान करना चाहता हूँ कि अपने में सुधार लाते हुए समाज को सुधारने में अपना योगदान दें। यही हमारी नववर्ष की खुशी होगी।

हम बदलेंगे युग बदलेगा।
हम सुधरेंगे युग सुधरेगा॥

धन्यवाद।


आपका
महेश कुमार वर्मा

Tuesday, December 15, 2009

बारात का मतलब

मैंने अपने पिछले पोस्ट में बताया कि किस प्रकार हमारे समाज में जबरन लड़कियों की शादी करायी जाती है? फिर यदि शादी के रश्म को किसी भी तरह पूरा करने को ही शादी मानें तो होने वाले शादियों के गवाह या साक्ष्य कितने बन पाते हैं? हिन्दू परिवार से जुड़े रहने के कारण हिन्दू परिवार के कुछ शादियों को देखने का अवसर मुझे मिला है, अतः आएं इन शादियों पर कुछ विचार करें।

लोग कहते हैं कि बारात जाने का मतलब होता है कि वे बारात उस शादी के गवाह व साक्ष्य बनते हैं। पर मैं देखता हूँ कि गए बारात की उपस्थिति में तो शादी होती ही नहीं हैं तो उस बाराती को प्रत्यक्षदर्शी साक्षी या गवाह कैसे माना जाए? सामान्यतः देखा जाता हैं कि बारात लड़के वाले के यहाँ से लड़की वाले के यहाँ जाती है। और लड़की वाले के घर में ही शादी का कार्यक्रम होता है। पर उस शादी के कार्यक्रम में बाराती नहीं जाते हैं बल्कि शादी कुछ लड़के वाले व कुछ लड़की वाले के ही उपस्थिति में सम्पन्न होता है। कहीं-कहीं तो शादी के अंतिम मुख्य रश्म सिन्दुरदान के समय सामने पर्दा दे दिया जाता है और उपस्थित लोगों को भी शादी के इस मुख्य रश्म के दर्शक व साक्षी बनने से रोका जाता है। तो जब बाराती उस शादी के समय उपस्थित रहता ही नहीं है तो फिर उस बाराती को प्रत्यक्षदर्शी / साक्षी / गवाह कैसे कहा जा सकता है। तो इस प्रकार सामान्य तौर पर बाराती को प्रत्यक्षदर्शी नहीं कहा जा सकता है। और इस प्रकार 'बारात के जाने का मतलब गवाह बनना' यह कहना सही नहीं है।
पाठकों पर ही मैं इस प्रश्न को छोड़ रहा हूँ कि बारात का मतलब सिर्फ मनोरंजन ही है या और कुछ?

Monday, December 14, 2009

जहाँ जबरन शादी होती है

मित्रों, आज हम आपको उस स्थान के बारे में बताने जा रहा हूँ जहाँ जबरन शादी होती है। चौकिये नहीं, यह कोई कोरी-काल्पनिक बात नहीं बल्कि वास्तविकता है। आगे पढ़ें (Click Here)

Sunday, December 13, 2009

जागो बहना जागो

हर परिवार, हर जाति, हर समाज में शादी बड़ी धूमधाम से होती है। शादी को लोग मांगलिक व शुभ मानते हैं। दुल्हन अपने बाबुल के घर को छोड़कर पिया संग ससुराल जाती है और फिर वही ससुराल ही उसका घर-परिवार हो जाता है। दुल्हन का एक नया जीवन शुरू होता है। ससुराल में दुल्हन को अपने बाबुल के घर से भिन्न परिस्थिति का सामना करना पड़ता है। अपने नए जीवन के विषम परिस्थिति में दुल्हन को अपने को ढालना पड़ता है। उसी प्रकार दूल्हा को भी अपने जीवनसाथी के साथ सामंजस्य स्थापित कर रहना पड़ता है ताकि दोनों की जीवन रूपी नैया सही ढंग से चल सके।
हर माँ-बाप अपने संतान के लिए चाहते है कि उसका जीवन सही ढंग से बीते। कन्या के व्यस्क होते ही माँ-बाप उसके लिए योग्य वर के तलाश में लग जाते हैं। पर दहेज समस्या व गरीबी के कारण कितने माँ-बाप कम उम्र में ही अपनी बेटी की व्याह रचा देते हैं तो कितने योग्य वर न ढूंढ़ पाते हैं और किसी तरह बेटी का व्याह रचाकर छुट्टी कर लेते हैं। हरेक लड़का-लड़की को अपने जीवन-साथी के संदर्भ में मन में एक सपना / एक ईच्छा / एक ख्वाहिश रहती है या उसके होने वाले दूल्हा या दुल्हन कैसी है यह जानने की इच्छा होती है। पर हमारे समाज में बेटी के व्याह में बेटी से उसके शादी के बारे में कोई राय नहीं ली जाती हैं। यहाँ तक कि उसके भावी वर के बारे में भी उसे जानकारी नहीं दी जाती है। बेटी संकीर्ण मानसिकता के समाज में इस प्रकार से दबी व फँसी रहती है कि वह अपने शादी के बारे में अपना विचार किसी से कह भी नहीं सकती है। जिस लड़का से उसकी शादी ठीक की जा रही है उसके बारे में वह किसी से पूछ भी नहीं सकती है और यदि उसे उस लड़का के बारे में कोई ऐसी बात मालूम भी होती है जिस कारण वह उसके साथ शादी न करना चाहे तो यह बात भी वह किसी को बता नहीं सकती है और यदि वह अपने ही शादी में अपनी ओर से कुछ कही तो उसपर तमाम इल्जाम लगने में भी देर न होती है। तो इस प्रकार अपने ही शादी में लड़की अपने इच्छानुसार कुछ भी नहीं कर सकती है। शादी में न तो लड़की के इच्छा को स्थान दिया जाता है, न तो उससे कुछ पूछा ही जाता है, न तो उसका कुछ सुना ही जाता है। और इस प्रकार बुद्धि-विवेक रहते हुए भी वह लड़की कठपुतली के समान रहती है और जबरन उसकी शादी किसी लड़के से करा दी जाती है चाहे वह उस लड़की को पसंद हो या न हो। लड़की को वह लड़का पसंद नहीं है या लड़की से कोई विचार नहीं लिया जाए और उसकी शादी करायी जाती है तो यह शादी जबरन नहीं तो और क्या है?
इस प्रकार लड़कियों के जबरन शादी हमारे समाज में लगभग सभी घरों में हो रहे हैं। पर सोचें कि क्या यह जबरन शादी उचित है? एक समय हमारे देश में स्वयंवर की प्रथा थी, जहाँ कन्या को भी ख़ुद अपना वर चुनने का अधिकार था। पर आज वहीं उस
की कुछ नहीं सुनी जाती है और जबरन उसकी शादी करा दी जाती है।

हमारे समाज में इस तरह के कार्य हमारी पतितता को ही दर्शाता है। हमें अपने समाज के इस कृत्य पर शर्मिंदगी होनी चाहिए। मैं अपने देश के तमाम बहनों से आग्रह करना चाहूँगा कि वे महिला प्रताड़ना के विरुद्ध आवाज उठाएं।
देश के बहना तुम जागो
तुम मानव हो
तुममे बुद्धि-विवेक है
तुम्हारी चुप्पी ही तुम्हें दबाती है
अतः अपने बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल करो
अन्याय के विरुद्ध लड़ो
समाज से महिला प्रताड़ना को उखाड़ फेंको
व महिलाओं को शीर्ष स्थान पर स्थापित करो
जागो बहना जागो
जागो बहना जागो
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