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Justice For Mahesh Kumar Verma

Saturday, January 30, 2010

परीक्षा में कदाचार के लिए जिम्मेवार कौन

मैं अपने पिछले पोस्ट में परीक्षा में कदाचार का जिक्र किया है विचारनीय है कि परीक्षा मूल्यांकन में कदाचार के लिए जिम्मेवार कौन है? मैं जोर देकर कहता हूँ कि परीक्षा में कदाचार के लिए जिम्मेवार और कोई नहीं बल्कि परीक्षार्थी के अभिभावक रहते है जी हां अभिभावक, जो अपने बच्चे के विकास के लिए उसे स्कूल में पढ़ाते हैं पर मैट्रिक की परीक्षा में चोरी कराने में सबसे आगे उनका ही हाथ रहता है और ऐसा करके वे अपने बच्चे का जीवन उज्जवल नहीं बल्कि अंधकारमय ही बनाते हैं यह मेरी कोरी बहस नहीं बल्कि वास्तविकता है जो बच्चा स्कूल के परीक्षा में चोरी नहीं करता था और मैट्रिक की परीक्षा में भी चोरी नहीं करना चाहता है उसे भी अभिभावक मैट्रिक के परीक्षा में चोरी करने के लिए चीट / पुर्जा देते हैं यह बात सही है कि मैट्रिक के परीक्षा में चोरी / नक़ल करने के पक्ष में विद्यार्थी से ज्यादा उसके अभिभावक रहते हैं और अभिभावक खुद परीक्षा में अपने विद्यार्थी को नक़ल करने के लिए चीट (पुर्जी) पहुँचाते हैं / पहुँचवाते हैं और ऐसा करके वे अपने बच्चे का भविष्य बनाने में सहयोग नहीं करते हैं बल्कि बच्चे के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर भविष्य बिगाड़ते हैं

क्या ऐसी स्थिति से हमारी समाज सुधर सकती है?

Friday, January 29, 2010

ऐसे शिक्षक क्या पढ़ायेंगे?

जैसा कि पिछले पोस्ट में मैंने लिखा कि किस प्रकार आरक्षण नीति के कारण अयोग्य को महत्त्वपूर्ण कार्य दे दिया जाता है और इस कारण देश विकास के राह पर न चलकर पतन की ओर जाता है। योग्य व्यक्ति को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को कार्य सौंपना व्यक्ति के प्रतिभा के साथ खिलवाड़ ही है। आरक्षण के अलावा अन्य सरकारी नीति में भी इस प्रकार होती है। इसी का एक अच्छा उदहारण बिहार में कुछ वर्षों से हो रहे शिक्षकों की बहाली है। बिहार में रहने वाले तो जान ही रहे होंगे कि किस प्रकार बहाली की गयी है पर बिहार के बाहर के लोगों की जानकारी के लिए मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि इस बहाली में मेधा को कोई स्थान ही नहीं दिया गया है। प्रतियोगिता / प्रतियोगी परीक्षा समाप्त कर दी गयी। बल्कि उम्मीदवार द्वारा मैट्रिक / इंटर में प्राप्त किये गए अंक के आधार पर बरीयता सूचि के आधार पर बहाली की गयी / की जा रही है। पिछले बार भी इसी तरह हुयी थी और इस बार भी इसी तरह हो रही है। बहाली के इस नीति के ओर से तर्क दिया जा सकता है कि जिसे मैट्रिक / इंटर में ज्यादा अंक मिला है, स्वाभाविक रूप से वह तेज है अतः बिना प्रतियोगी परीक्षा के ही बहाली की जा रही है तो यह गलत नहीं है। कुछ पल के लिए यदि इस तर्क को मान लें तो इस तर्क के समर्थक को यह यह भी समझना चाहिए कि यदि वह तेज था तो वह तो उस समय तेज था जब वह मैट्रिक / इंटर पास किया था। पर आज की उसकी स्थिति क्या है इसकी जांच आपने कहाँ किया? आज आप उसके ज्ञान को परखे बिना, बिना कोई ट्रेनिंग दिए सीधे स्कूल में पढ़ाने के लिए भेज रहे है। -- क्या जो व्यक्ति 30-40 वर्ष पहले मैट्रिक किया और उस समय यदि वह तेज था और फिर इधर वर्षों से पढाई-लिखाई से उसका कोई संबंध नहीं रहा है तो क्या आप यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि वह अब भी पढ़ाने के योग्य है? फिर आपको यह भी समझना चाहिए कि कोई यदि पढने में तेज है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह सही ढंग से पढ़ाने के भी योग्य है। अपने तेज होने और दुसरे को पढ़ाना दोनों में बहुत ही अंतर है। फिर मैं पूछना चाहूँगा कि क्या परीक्षा में ज्यादा अंक लाने का मतलब तेज होना है? निःसंदेह इसका उत्तर लोग हाँ में देंगे। पर मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि किस प्रकार पहले परीक्षा में खुलकर कदाचार होता था और तेज विद्यार्थी अंक पाने में पीछे राह जाते थे व कमजोर व मुर्ख विद्यार्थी अच्छे अंक लाते थे। मेरे इस कथन से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह सर्वविदित है कि बिहार में परीक्षा में व मूल्यांकन में कदाचार पहले भी होता था और अब भी हो रहा है। पटना उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से 1996 में सुधार हुआ व परीक्षा में कड़ाई हुयी। पर फिर ........ फिर उसी तरह परीक्षा में चोरी / नक़ल व कदाचार जारी है। अंतर सिर्फ यही है कि पहले विद्यार्थी परीक्षा में बैग में किताब भरकर ले जाते थे और डेस्क पर किताब रखकर किताब खोलकर व देखकर उत्तरपुस्तिका में लिखते थे। पर अब डेस्क पर किताब रखकर चोरी / नक़ल नहीं की जाती है पर परीक्षा हॉल में किताब व चीट / पुर्जा जाता ही है और चोरी होती ही है, जो किसी से छिपी हुयी नहीं है। ...... मैं यह भी याद दिलाना चाहूँगा कि क्या आप यह भूल गए कि बिहार के शिक्षा में कुव्यवस्था के कारण ही बिहार के बाहर के एक राज्य (नाम मुझे याद नहीं है) ने बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद के प्रमाण पत्र की मान्यता समाप्त कर दी थी। फिर बहुत ही मुश्किल से बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद ने उस राज्य में अपने प्रमाण पत्र की मान्यता को पुनः प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की थी। ................. तो इस प्रकार परीक्षा में कदाचार होती थी व होती है। तो क्या यह कहना उचित होगा कि उच्च अंक प्राप्त करने वाला तेज है ही। और फिर इस प्रकार उच्च अंक प्राप्त करने वाले के बिना कोई ज्ञान के जांच किए ही शिक्षक के रूप में नियुक्त कर बिना ट्रेनिंग के ही सीधे स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजना उचित है? क्या इस प्रकार के शिक्षक बच्चे को सही ढंग से पढ़ा सकेंगे? बिहार में यही हो रहा है। पिछले बार के बहाली में तो उम्मीदवार के ऊपरी आयु सीमा वही थी जो आयु सीमा सेवानिवृति के लिए है। अतः 50-55 वर्ष के व्यक्ति को भी शिक्षक का नौकरी लग गया और वे अपना business छोड़कर नौकरी पर आ गए। ऐसे कितने लोगों को शिक्षक का नौकरी लग गया जिसे खुद कुछ नहीं आता है। ताज्जुब तो तब होती है जब एक पचास-पचपन वर्ष के एक पैर वाले व्यक्ति को Drill Teacher (व्यायाम शिक्षक) के रूप में नियुक्त किया गया। नियुक्त ही नहीं किया गया बल्कि वर्षों से वे नौकरी कर भी रहे है। आप सोच सकते हैं के जिनका एक ही पर है (उनका दूसरा पैर घुटना के ऊपर से ही कटा हुआ है) वह व्यायाम शिक्षक के रूप में बच्चे को क्या सिखाएंगे? ........................
तो इस प्रकार हुयी है व हो रही है शिक्षकों की बहाली और ऐसी है हमारी शिक्षा नीति। आप खुद सोच सकते हैं कि ऐसे शिक्षकों के भरोसे बच्चों का कितना विकास होगा? मेरे इस बात से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि बिहार में शिक्षकों की इस प्रकार के बहाली से लोगों को शिक्षक शब्द से ही शिक्षक के प्रति जो आदर व सम्मान की भावना थी वह अब नहीं रही। सच पूछिये तो शिक्षकों का कार्य अब अपने ज्ञान से सेवा भाव से बच्चों को सही राह पर लाकर विकास करना नहीं रहा बल्कि उनका कार्य अब सिर्फ बैठे-बैठे पैसा कमाना हो गया है।
शिक्षक = मास्टर = मास + टर
(यानी पढावें या न पढावें बस किसी तरह मास यानी महीना टरेगा यानी बीतेगा और पैसा मिलेगा)
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आप खुद सोचें कि इस प्रकार की व्यवस्था से देश का विकास होगा या देश का पतन होगा?

Thursday, January 28, 2010

आरक्षण नीति : उचित या अनुचित

मैंने अपने पिछले पोस्ट में बताया कि किस प्रकार सरकार जाति के आधार पर समाज को बाँट रही है। सरकार जाति के आधार पर आरक्षण करके देश को विकाश के ओर ले जा रही है या पतन की ओर? विचारने पर यह बात सामने आता है कि जाति के आधार पर या किसी भी आधार पर आरक्षण होने के कारण योग्य उम्मीदवार का चयन न होकर अयोग्य उम्मीदवार का चयन करना पड़ता है। जी हाँ, जिस वर्ग के लिए जो आरक्षण है उसे उस आरक्षण का लाभ देने के लिए यदि उस वर्ग विशेष में योग्य उम्मीदवार नहीं है तो अयोग्य को चुन लिया जाता है भले ही उसका परिणाम जो भी हो। ऐसा प्रतियोगी परीक्षा से लेकर राजनीति तक में हो रही है। आप खुद देखें -- चुनाव में जो सीट किसी वर्ग विशेष के लिए आरक्षित रहता है तो उस क्षेत्र में उस वर्ग विशेष के बाहर के कोई व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि यदि उस आरक्षित वर्ग विशेष में यदि योग्य व्यक्ति न भी हैं तो किसी भी अयोग्य ही सही, व्यक्ति चुनाव लड़ते हैं और जितने के बाद ......................... अयोग्य व्यक्ति जितने के बाद क्या करेंगे यह आप समझ ही सकते हैं। इस प्रकार आरक्षण की इस व्यवस्था से हमारा देश उन्नति की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही जाता है। कितने सीट महिला के लिए आरक्षित रहती है। वहाँ यदि कोई योग्य महिला नहीं रहती है तो फिर उसी तरह आरक्षण के कारण किसी न किसी महिला को ही जन प्रतिनिधि बनना पड़ता है। पर जितने के बाद क्या वह अपने विवेक से कुछ कर पाती है। उसका सारा कार्य उसका पति या कोई अन्य करता है। वह तो सिर्फ नाम का ही जन प्रतिनिधि रहती है। अब आप बताएं कि जब जितने के बाद भी वहाँ उसका पति या अन्य ही कार्य करता है तो महिला के नाम पर उस आरक्षण का क्या हुआ? ऐसी स्थिति सिर्फ चुनाव में ही नहीं, सरकारी नौकरियों व प्रतियोगी परीक्षाओं में भी है। और वहाँ आरक्षण के कारण अयोग्य को भी बड़े से बड़े जिम्मेदारी वाला कार्य सौंप दी जाती है और इसका सीधा असर आम जन पर पड़ता है।
इस प्रकार आरक्षण की निति से देश उन्नति की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही जाती है। सरकार को यह समझना चाहिए कि कमजोर वर्ग को ऊँचा उठाने के लिए आरक्षण नहीं बल्कि उसे वैसी व्यवस्था व साधन चाहिए जिससे वह अपने को मेधा सूचि में ला सके। और फिर बिना किसी जाति के आधार पर वह आरक्षित श्रेणी से आए नहीं कहलाकर योग्य कहलाये।
ऊँची डाली को छूने के लिए हमें ऊपर उठना चाहिए न कि डाली को ही झुकाना चाहिए। उसी तरह कमजोर को योग्य बनाकर उसे कार्य सौंपे न कि आरक्षण से कार्य को ही झुका दें।
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पाठक अपना निष्पक्ष विचार देने की कृपा करें।
आपका
महेश

Wednesday, January 27, 2010

जाति के आधार पर समाज को बांटने में सरकार कितनी दोषी

सोचनीय है कि एक ओर धर्म व जाति के आधार पर भेद-भाव समाप्त करने की बात कही जाती है और दूसरी ओर धर्म व जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाता है। विचारने पर तो यही बात सामने आती है कि धर्म व जाति के आधार पर समाज को बांटने का कार्य करने में सबसे ज्यादा हाथ हमारी यह धर्म व जाति के आधार पर के आरक्षण व्यवस्था है। यह कोई कोरी बहस नहीं है बल्कि सौ फीसदी सही है। आप खुद देख सकते हैं कि हमारे समाज में किसी भी जाति के लोगों को एक जगह रहने में या अपना व्यापार करने में कोई दिक्कत नहीं है। पर हमारी कानून की क्या व्यवस्था है? कानून कि व्यवस्था है कि जाति प्रमाण पत्र ले आओ तो यह सुविधा मिलेगा....... तो फलां जाति के लिए इतना आरक्षण तो फलां जाति के लिए इतना आरक्षण..........आप खुद देखें कि सरकार व कानून ने समाज को जाति के आधार पर कितने वर्गों में बांटा है...... फॉरवर्ड, बैकवर्ड, पिछड़ा वर्ग, अन्यन्त पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति , दलित, महादलित............. आप कहेंगे कि जाति की व्यवस्था हमारे समाज में पहले से ही है और वहाँ इससे भी अधिक बहुतों जातियां हैं। पर आप खुद सोचें कि हमारे समाज में एक शादी को छोड़कर अन्य कहीं भी जाति को लेकर किसी को रहने या कार्य करने में कोई दिक्कत नहीं है। हाँ, पहले हमारे समाज में जातिवाद था पर अब समाज इसे छोड़ रही है पर अफसोस कि अब हमारे सरकार की जाति पर आधारित आरक्षण व्यवस्था इसे बढा रही है।
किसी ने सही कहा है :
सरकार कहती है जाति-पाती हटाओ।
कानून कहता है जाति प्रमाण पत्र ले आओ॥
क्या यह षडयंत्र है।
नहीं यह लोकतंत्र है॥
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मेरे इस आलेख पर पाठक अपनी निष्पक्ष विचार देने की कृपा करें।
आपका
महेश

Tuesday, January 26, 2010

देश से अपराध भगाना है, खुशहाल जीवन लाना है।

आज राष्ट्र 61 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा है। भारत को स्वतंत्र हुए 62 वर्ष व गणतंत्र हुए 60 वर्ष हो गए। पर इतने अवधि में हमने क्या पाया? क्या देश के आम नागरिकों को देश के विकाश का वास्तविक फायदा मिल पाया है? इस बात पर विचारने पर हम पाते हैं कि कहने के लिए देश कितनी भी प्रगति क्यों न कर लिया हो पर आम लोगों के जीवन में इस प्रगति का कोई फायदा नहीं है। आज देखें हरेक जगह बेईमानी व भ्रष्टाचार फैला है और इसका सीधा असर आम जन पर पड़ रहा है। पर इस प्रकार के स्थिति के लिए जिम्मेवार कौन है? इसके लिए जिम्मेवार देश के बाहर के कोई दुश्मन नहीं बल्कि देश में ही रहने वाले हम व आप सहित पूरा देश है। और यदि हम अपने देश के अंदरूनी भ्रष्टाचार पर काबू नहीं पाएंगे तो वह दिन दूर नहीं जब हम पुनः अपने देश के अंदर के ही दुश्मन के गुलाम बन जाएंगे। हमें जागना होगा व देश के दुश्मन को भगाना होगा और इसके लिए हम सबों को साथ मिलकर चलना होगा। तो आएं अपने देश के अंदर फैले अपराध, बेईमानी व भ्रष्टाचार को समाप्त कर व देश में मानवता व सच्चाई-ईमानदारिता के धर्म की स्थापना कर देश को अपराध मुक्त व खुशहाल बनाने में अपना सहयोग करें।

देश से अपराध भगाना है।

खुशहाल जीवन लाना है॥

जय हिंद।

जय भारत॥

Sunday, January 24, 2010

क्यों न करूँ मैं गणतंत्र दिवस का बहिष्कार

गणतंत्र दिवस है आया
सोचने पर हमने है विचारा
है नहीं यहाँ बच्चों को पढने का अधिकार
है नहीं बच्चों को खेलने का अधिकार
बच्चे करते हैं होटल में काम
बेचते हैं रेल पर नशा तमाम
देखने वाला नहीं है कोई उसे
फिर हमने देश को गणतंत्र माना कैसे
गणतंत्र दिवस है आया
सोचने पर हमने विचारा
नहीं है यहाँ पीड़ित को न्याय का अधिकार
गुनाहगार घूमता है खुला बाजार
न है न्याय पाने का अधिकार
न है न्याय करने का अधिकार
न है सच बोलने का अधिकार
न है सच पर चलने का अधिकार
देश में फैली है भ्रष्टाचार
हो रही है सबों के साथ बलात्कार
तो फिर क्यों कहते हैं मेरा देश है महान
क्यों मनाऊं मैं गणतंत्र दिवस का त्यौहार
क्यों न करूँ मैं गणतंत्र दिवस का बहिष्कार
क्यों न करूँ मैं गणतंत्र दिवस का बहिष्कार
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चिट्ठाजगत
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