जाति के आधार पर जनगणना का कोई अर्थ ही नहीं है. हाँ, यह बात सही है कि जब मुझे विभिन्न जातियों को जाति के आधार पर विशेष सुविधा देनी है तो हमें जाति का हिसाब रखना ही होगा और इसके लिए जनगणना में जाति पूछना ही होगा. पर जाति के आधार पर आरक्षण या अन्य सुविधा क्यों? हमारी समाज को जाति के नाम पर आखिर इस प्रकार का बंटवारा क्यों? सच पूछिये तो आज हमारे समाज जाति-प्रथा को जितना ही छोड़ रही है सरकार उसे उतना ही पकड़कर बढा रही है. हमारे समाज में पहले जाति-प्रथा थी उसे समाप्त करने के लिए हम वर्षों से प्रयासरत हैं और काफी हद तक सफलता भी प्राप्त किये हैं. पर सरकार उसी जाति-प्रथा को पुनः लाने की कार्य कर रही है. सरकार की इस प्रकार की नीति किसी भी अर्थ में उचित नहीं है. जाति-विशेष के नाम पर कोई कार्य नहीं होनी चाहिए. बस हमारी एक ही जाति है मानव जाति और सभी के लिए एक समान नियम व एक समान अधिकार होनी चाहिए. इस प्रकार जाति विशेष के नाम पर कुछ नहीं होनी चाहिए. और इस कारण जनगणना में जाति पूछना या जाति नोट करना उचित नहीं है. सरकार जाति की नाम पर लोगों के व भारत के भविष्य को शिखर की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही ले जा रही है, जो देश के लिए खतरनाक है. आखिर ऐसा क्यों?
हम जाति के नाम पर समाज को बांटने का घोर विरोध करते हैं.
-- महेश कुमार वर्मा