मीना व उसकी माँ
दिवाली के दिन शाम से ही बंटी अपने दोस्तों के साथ पटाखे छोड़ने व मौज मनाने में लगा था। घर में माँ बेटी मीना के साथ मेहमानों के आवभगत में लगी थी। जो भी दीपावली की शुभकामना देने व मिलने आते थे उन्हें घर में बने पकवान व थोड़ा सा मिठाई से मुँह मीठा कराया जाता था।
काफी देर तक मेहमानों का आना होते रहा। मेहमानों के आवभगत के बाद मीना माँ से कही - "मैं भी जाती हूँ खाने।"
"जाओ खा लो।"
माँ के इतना कहने पर मीना खाने चली गयी। पर माँ ने फिर पीछे से आवाज लगाई - "मीना बिटिया"
"हाँ मम्मी"
"सुबह का चावल पड़ा होगा, वह भी खा लेना।"
"पर माँ वह चावल तो बासी हो गया, क्या मैं पकवान नहीं खाऊँ?
"चावल बरबाद हो जाएगा उसे खा ले, पकवान कल खा लेना।"
"नहीं खाऊँगी मैं।" -- इतना कहकर मीना क्रूध व उदास मन से अपने बिछावन पर चली गयी। हमेशा ही मीना को बचा हुआ भोजन खाना पड़ता था।
काफी देर तक मीना जब खाने के लिए नहीं गयी तब माँ गुस्सा में आवाज लगाते हुए नजदीक आ गयी -- "मीना, भोजन की, जाओ भोजन कर लो।"
मीना - "मैं चावल नहीं खाऊँगी।"
"क्यों?"
"वह बासी हो गयी। मेरे टीचर कहते हैं कि बासी भोजन मत करो व खुले बाजार का सामान जिसपर धुल व मक्खी बैठती है उसे मत खाओ।"
माँ का गुस्सा बढ़ गया, वह गुस्साते हुए बोली - "चलो खाएगी या नहीं?" माँ मीना का हाथ पकड़कर खींचकर बिछावन से नीचे कर दी।
मीना माँ के मार के डर से भोजन करने चली गयी। माँ अपने ही आप कहने लगी - 'स्कूल क्या भेजने लगी कि मुझे ही पढ़ाने लगी है। इससे अच्छा तो नहीं पढाती।' वहीँ कोने में बैठी बूढी दादी बड़बड़ायी - "आजकल तो बेटी पैदा करना ही पाप है।"
मीना थोड़ी सी सुबह वाला चावल खाकर सोने चली गयी। इधर बंटी आया तो वह पुनः पकवान व मिठाई खाया। मीना हमेशा घर में अपने व बंटी में भेदभाव देखती थी। उस दिन का यह घटना उसके मन में बैठ गयी और वह सोचने लगी कि रोज-रोज बचा भात मैं ही क्यों खाऊँ, बंटी भैया क्यों नहीं खायेगा?' ......... आज की मिठाई मीना अभी तक नहीं खाई थी, इस कारण उसे नींद नहीं आ रही थी और काफी देर तक वह बिछावन पर जगी रही। फिर न जाने कब उसे नींद आ गयी।
कुछ ही दिनों के बाद माँ छठ पर्व की तैयारी में कार्य में व्यस्त थी। माँ को बेटी मीना से कार्य में काफी सहायता मिल रही थी। जहाँ मीना माँ को कार्य में सहायता करती वहीँ बंटी को यदि माँ कोई कार्य के लिए कहती तो वह टाल देता व कार्य नहीं करता। .......... अब वह माँ यह महसुश कर चुकी थी मीना बिटिया से उसे काफी सहायता मिली व मीना की सहायता से ही वह इतनी व्यवस्था कर सकी है।
अब माँ यह अच्छी तरह समझ चुकी थी कि बेटा व बेटी दोनों को अलग-अलग नहीं बल्कि एक ही दृष्टि से देखनी चाहिए। अब माँ का मीना के प्रति व्यव्हार बदल गया था। अब वह बंटी व मीना दोनों को समान रूप से देखती थी व अब उसकी यही ख्वाहिश थी कि दोनों पढ़-लिख कर आगे बढ़े।
लेखक -- महेश कुमार वर्मा