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Justice For Mahesh Kumar Verma

Wednesday, September 30, 2015

दुष्कर्म व बलात्कार बनाम हमारा समाज

दुष्कर्म व बलात्कार बनाम हमारा समाज

आज लिंग भेद समाप्त कर महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा व हक दिलाने की बात कही जा रही है। भले ही कानून द्वारा महिलाओं को पुरुष के समान दर्जा मिल गया हो पर निचली स्तर पर हमारे समाज में आज भी महिलाएँ पुरुषों के अपेक्षा काफी निम्न स्तर का जीवन जी रही हैं व पुरुषों द्वारा शोषित, प्रताड़ित होने के साथ-साथ बलात्कार व दुष्कर्म का शिकार भी हो रही हैं। आखिर महिलाओं के साथ ऐसा क्यों होता है? क्या महिलाओं को सुखी पूर्वक व सम्मान के साथ जीने का हक नहीं है?
बलात्कार व दुष्कर्म के मामला को लेकर इस बात पर कई बार बहस छिड़ी है कि इन घटनाओं के लिए दोषी कौन है? सभी इस मामला में अपने-अपने ढ़ंग से तर्क देकर अपना-अपना पक्ष रखते हैं। कोई लड़की या महिला को तो कोई उनके पहनावा को तो कोई दुष्कर्मी युवक को तो कोई किसी और को दोष देता है। पर क्या हमने कभी यह सोचा है कि इन सब घटनाओं के पीछे हमारे सामाजिक व्यवस्था की कितनी दोष है? यह बात तो सही है ही कि यदि परिवार, विद्यालय व समाज द्वारा शुरू से ही सभी बच्चों (लड़का व लड़की दोनों) को सही संस्कार दिया जाए तो वे बच्चे बड़े होने पर भी संस्कारित रहेंगे व तब फिर ऐसी घटनाओं में कमी होगी। पर इसके अलावा भी हमें इस तरफ ध्यान देना चाहिए कि आज भी हमारे समाज में लड़कियों व महिलाओं को उनके मौलिक अधिकार से वंचित किया जाता है व उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिलती है। इस कारण भी ऐसी घटनाओं में बढ़ोत्तरीहोती है।
आज हमारे समाज में क्या होता है? लड़कियों को किसी लड़के से बात करने या मिलने पर रोक लगायी जाती है। कोई लड़की व लड़का में दोस्ती है तब भी या यों भी वे खुलकर न मिल सकते हैं, न बात कर सकते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी लड़की व लड़का को बात करते कोई देख लिया तो फिर उस लड़की पर घर में व समाज में तरह-तरह के लांछन लगने शुरू हो जाते हैं व उनके साथ मारपीट भी होने लगती है। ................ आखिर ऐसा क्यों? लड़की को किसी के साथ खुलकर मिलने व बात करने का अधिकार क्यों नहीं है? क्या वह लड़की बनकर जन्म ली है सिर्फ इसीलिए? नहीं यह बात नहीं है। बात तो यह है कि यहाँ इस पुरुष प्रधान समाज में सारे नियम-कानून तो इस ढ़ंग से बने हैं कि सभी सुख-सुविधा व अधिकार पुरुष के पास हो व महिला को कोई अधिकार ही न मिले व महिला पुरुष के इशारे पर नाचे व पुरुष के लिए खिलौना बनकर रहे। .............. तब तो आज हमारे समाज में शादी के मामले में भी लड़की को अपने मन से अपने जीवनसाथी चुनने का भी अधिकार नहीं है। आज हमारे समाज में शादी में लड़की से उसके इच्छा-अनिच्छा के बारे में भी नहीं पूछा जाता है। बल्कि माँ-बाप अपने मन से किसी लड़के से उसकी शादी करा देते हैं। यदि लड़की उनके फैसले के विरुद्ध कुछ कह भी दे तो उसपर विचार नहीं होता है बल्कि उस लड़की को और भी खरी-खोटी सुननी पड़ती है। इस प्रकार लड़की अपनी जीवनसाथी के चुनाव में भी अपना विचार नहीं दे सकती है। और इस प्रकार माँ-बाप द्वारा लड़की की जो शादी करायी जाती है वह जबरन करायी गयी शादी ही होती है, जिसे जिंदगी भर लड़की को झेलना पड़ता है।
आखिर लड़की को अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार क्यों नहीं है? लड़की को किसी से स्वतंत्र रूप से मिलने और बात करने का अधिकार क्यों नहीं है? हमारे समाज की यह व्यवस्था सुव्यवस्था नहीं बल्कि एक कुव्यवस्था है। और इसी के परिणामस्वरूप यह होता है कि कोई लड़की-लड़का सामान्य रूप में भी यदि आपस में मिलते हैं या बात करते हैं तो वे अपने माँ-बाप या अभिभावक के नजरों से छिपकर मिलते हैं ताकि कोई उन्हें देखे न। और इसी तरह यदि किसी लड़की-लड़का में प्रेम हो जाता है तो वे हमेशा लोगों से नजरें चुराकर छिपकर मिलने लगते हैं। ............... यदि हमारे समाज में लड़का-लड़की के मिलने पर रोक न हो व लड़का-लड़की सभी को अपने जीवनसाथी चुनने का पूर्ण अधिकार हो तब फिर ये लोग इस प्रकार छिपकर कभी नहीं मिलेंगे। पर हमारे समाज में ऐसी स्वतंत्रता नहीं है। जिस कारण ये लोग छिपकर मिलते हैं। पर इस प्रकार छिपकर मिलने में हमेशा उन्हें पकड़े जाने या मार खाने का डर भी बना रहता है। साथ ही इस प्रकार छिपकर मिलने में उन्हें न तो मिलने की संतुष्टि पूरी होती है और न तो बात करने की ही संतुष्टि पूरी होती है। बाद में उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है की वे न तो घर-समाज से भागकर शादी ही कर पाते हैं न तो अपने प्रेम-प्रसंग की बात घर-समाज में कह ही पाते हैं। कितने भागकर शादी कर भी लेते है पर फिर भी यदि वे पकड़े जाते हैं तो उन्हें घर-समाज से डांट-डपट सुननी पड़ती है या फिर उन्हें समाज में रहने के लिए जगह भी नहीं मिलती है। आखिर ऐसा क्यों? लड़का हो या लड़की, क्यों नहीं सभी को स्वतंत्र रूप से जीने, लोगों से मिलने, बात करने व अपने जीवनसाथी चुनने का अधिकार है? हमारे समाज के इसी कुव्यवस्था का एक दुष्परिणाम यह भी है की इसी कुव्यवस्था में कुछ लड़के या युवक ऐसे हो जाते हैं जो अपने विपरीत लिंगी साथी से खुलकर न मिलने या न बात करने या हमेशा किसी भी विपरीत लिंगी से बात करने या मिलने में बाधा के कारण अपना मानसिक संतुलन इस हद तक खो देते हैं कि फिर उसका स्वभाव कामुकता हो जाती है और फिर वे किसी भी लड़की या महिला के साथ बलात्कार या दुष्कर्म की घटना को अंजाम दे देते हैं। वहीं इसी तरह मानसिक संतुलन खोने की स्थिति में कुछ युवक ऐसे हो जाते हैं जो झूठा प्यार का नाटक कर लड़कियों को फँसाना शुरू कर देते हैं। और इस तरह के झूठा प्यार में फँसे लड़कियों के साथ आगे धोखा ही होता है। ...................
इस प्रकार हमारे समाज में लड़की-लड़का को आपस में मिलने-जुलने या बात करने पर जो रोक लगी हुयी है तथा उन्हें स्वतंत्र रूप से जीने व अपना जीवनसाथी चुनने का जो अधिकार प्राप्त नहीं है उस कारण ही दुष्कर्म व बलात्कार की घटनाएँ बढ़ रही हैं। यदि हमारे समाज में लड़की-लड़का सबों को स्वतंत्र रूप से जीने, आपस में खुलकर किसी से भी मिलने, बात करने व अपना जीवनसाथी खुद चुनने का पूर्ण अधिकार मिल जाए तो निश्चित रूप से दुष्कर्म व बलात्कार जैसी घटनाओं में कमी आएगी।

-    महेश कुमार वर्मा
16.09.2015
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(इस आलेख में उल्लेखित विचार लेखक के निजी विचार हैं।)


Saturday, September 26, 2015

बुरा वक्त का अच्छा संदेश

बुरा वक्त का अच्छा संदेश 

वक्त पर होती है पहचान 
कि दोस्त कैसा है 
वक्त पर पर होती है पहचान 
कि कौन कैसा है 
वक्त पर होती है पहचान दोस्त की 
वक्त पर होती है पहचान अपनों की 
यदि बुरा वक्त न आए 
तो न होगी इनकी सही पहचान 
बुरा वक्त में ही होती है 
इनकी सही पहचान 
अतः बुरे वक्त को 
ईश्वर के द्वारा दिया गया 
वह अच्छा समय समझो 
जिसमें होती है 
लोगों की असलियत की पहचान 
जिसमें होती है 
अपनों व परायों की पहचान 
जिसमें होती है 
दोस्त व दुश्मन की पहचान 
अतः वह बुरा वक्त भी धन्य है 
जिसने करायी मुझे इस वास्तविकता की पहचान 
पर हे प्रभु 
कितना अच्छा होता 
जब बिना बुरा वक्त दिखाये 
तुम इस वास्तविकता की पहचान करा दिया होता 
तो मुझे न इतना कष्ट होता 
और न कोई काम में विध्न होता 
अतः हे प्रभु 
ऐसा बुरा वक्त फिर न दिखाना 
व वास्तविकता की पहचान पहले करा देना


-- महेश कुमार वर्मा 
01.03.2015
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