मना रहे हैं स्वतंत्रता की ६१ वीं वर्षगाँठ
पढ़ा रहे हैं सदाचारिता की पाठ
कर रहे हैं आपस में गरीबों के राशि के बंदरबाँट
यही है भारतीय स्वतंत्रता की वर्षगाँठ
स्वतंत्रता की ६१ वीं वर्षगाँठ
क्यों मनाऊं मैं स्वतंत्रता की वर्षगाँठ
आज मेरा देश स्वतंत्र है
पर इस देश के निवासी गुलाम हैं
भ्रष्टाचार व अन्याय के गुलाम
जुल्म व शोषण के गुलाम
घूसखोरी व अत्याचार के गुलाम
एक नहीं दो नहीं सभी हैं इनके गुलाम
यही है मेरे देश की पहचान
यहाँ किसी को बोलने का भी अधिकार नहीं है
यहाँ किसी को न्याय पाने का भी अधिकार नहीं है
नहीं होती है यहाँ आम जन के साथ न्याय
आम जन के लिए तो न्याय माँगना भी गुनाह हो जाता है
यदि माँगा वह न्याय और नहीं दिया पैसा
तो रक्षक भी उसका दुश्मन हो जाता है
क्योंकि यहाँ पैसे की ही बात सुनी जाती है
व पैसे की ही जीत होती है
एक नहीं दो नहीं नीचे से ऊपर तक सभी जगह है घूसखोरी व अत्याचार
इसे बंद करने के लिए नहीं है कोई सरकार
होती रही है होती रहेगी अन्याय व अत्याचार
हमें न्याय पाने का भी नहीं है अधिकार
हमें सच बोलने का भी नहीं है अधिकार
तो फिर क्यों मनाऊं मैं स्वतंत्रता दिवस
आज सच्चाई व इमानदारी का नहीं है नामों निशान
भारत में धर्म की कोई नहीं है पहचान
चूँकि भारत में सच्चाई, ईमानदारी व धर्म सभी का हो गया है नाश
तो क्यों न स्वतंत्रता दिवस के स्थान पर शोक दिवस ही मनाया जाए
रचनाकार : महेश कुमार वर्मा
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7 comments:
badhiya likha hai mitra, kuchh apne jaisi soch wale logon ko lekar ek raajneetik dal taiyar karen, tabhi kuchh thos ho paayega
Aachchi panktiyaan likhi hain lekin isme tuk bandi ki kami jhalakti hai.
swantantra diwas ko shok diwas ghosit karne ka karan achcha diya aapne lekin kisi ki kewal burai nahi dekhni chahiye. Har desh mein burai achchcai dono hai. Jab bhi desh mein koi burai nazar aati hai to aap apne aap se poochiye ki aapne us burai ko door karne ke liye kuch socha . thora bhi us or prayas kia?
Ye desh ka nahi prakriti ka rule hai ki hamesha takatwar ka hi raaj hota hai. Wo takatwar apne takat ka kaise istemaal karta hai isi pe sab nirbhar karta hai.
बहुत बढिया.लिखते रहें.
कब तक चलता रहेगा पाखण्डी शोक का यह प्रशस्ति गान ?कुछ पंक्तियां कहीं यालिखीं फिर घर जा सो लिये चादर तान | उझास सहन नही होता प्रकाश अन्धता के रोगियों को |सारा वातावरण पीत पीत नज़र आता है पीलिया के...... को |
मात्र आप जैसे लोग ही गुलाम है आपनी अपनी सोच के |
फोटो पते सहित ब्लागिंग करें और विरुद्ध कुछ न होना ही स्वतंत्रता का प्रमाण है | निज कमप्यूटर या साइबर कैफे से ब्लागिंग हेत क्या भ्रष्टाचार ने सक्षम बनाया है ?
मत सुधारने निकलो अपने घर से नगर देश या जग को |पर उपदेश के तर्ज न चल के पहले अपने परिवार को सुधारिये संस्कारिये | लेकिन उससे भी पूर्व सिद्धांतों को अपने ही जीवन में भी तो उतारिये | हम सब खुद सुधरें परिवार,नगर,देश जग तो अपने आप सुधर जायेगा |
बढिया लेख़।
बहुत बढिया लिखा है।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
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