देखा मैं एक ऐसा भिखारी
जो खा रहा था खैनी
सोचा
पेट भरने के लिए
कुछ नहीं है उसके पास
माँगता है कुछ लेकर आस
दया करके
कोई कुछ खाने देता है
कोई कुछ पैसे देता है
पर वह
वह भिखारी
मिले पैसे से
खैनी खाता है
सोचने पर मैं मजबूर हुआ
कि इसे पैसे देना
पुण्य है या पाप है
पुण्य है या पाप है
यह कोई कविता नहीं
नहीं यह कोई कहानी है
यह मेरी आँखों देखी हकीकत है
आँखों देखी हकीकत है
आप भी विचारें
उसे भिक्षा में पैसे देना
पुण्य है या पाप है
पुण्य है या पाप है
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मेरी आँखों देखी हकीकत पर आधारित
-- महेश कुमार वर्मा
7 comments:
पता नहीं पुन्य है या पाप है किन्तु आपकी संवेदनाएँ सच्ची लगी।
achcha likha hai. par aishe dhokhebaj bhikhari to karib-karib har jagah mil jate hai.
mujhe tajjub tab hua tha jab mere muhalle main ghumne wala bhikhari mujhe bank main mila tha.
पुण्य- पाप का पता नहीं लेकिन अपराध तो है. भिक्षादेना और मांगना भी --काम दिजीए दे सकते हैं तो नहीं तो भिक्षा दे कर उन्हें निठ्ठला न बनायें --
मेरे ब्लॉग पर आने व अपना विचार देने के लिए सबों को धन्यवाद.
-- महेश
मेरे ब्लॉग पर आने व अपना विचार देने के लिए सबों को धन्यवाद.
कभी कहीं मैं पढ़ा था कि मुंबई के हाजी अली और एक कोई नाम था वह याद नहीं आ रहा है, वहाँ का भिखारी सर्वाधिक धनी भिखारियों में है. वहां के भिखारी लाखपति में हैं. वे दिन में भीख मांगते हैं व शाम में भीख से अर्जित पैसे को सूद पर दूसरो को कर्ज देते हैं.
-- महेश
aapke is likhavat ne hume sochne par majbur kar diya. hume aur hamare samaj ke sabhi nagrikon ko is baat par jarur jor dalna chahiye, ki hamare ghar par aye bhikhari ko bhikh me hume paisa dena chahiya ya phir pet bharne ke liye bhojan.
mere khayal se bhikharion ko hamare dvara paise dene se uska aatmvishwas aur kaa karne ki aadte ghat jati hai kyoki sadharan si baat hai agar kisi ko muft me paise aur khane ko mil jaye to wah adami kaam hi kyo krega.
ath hume achchhi tarah soch-vichar karke aur bhikharion ke sthiti ko dekhakar hi uchit nirnay lena chahiye.
dhayawad,
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