इस साईट को अपने पसंद के लिपि में देखें

Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Saturday, January 24, 2009

गणतंत्र दिवस : एक प्रश्न

दो दिनों के बाद २६ जनवरी २००९ को हम गणतंत्र दिवस के ५९ वीं वर्षगाँठ मनाएँगे। प्रश्न उठता है की हम गणतंत्र दिवस क्यों मनाएँ? क्या सिर्फ इसलिए कि हम भारतीय है? जरा सोचें कि हमारे देश भारत वर्ष को स्वतंत्र हुए आज ६१ वर्ष वर्ष व गणतंत्र हुए ५९ वर्ष बीत गए पर आज तक देशवासियों को वास्तविक स्वतंत्रता व उचित अधिकार नहीं मिली है?

कानून के पुस्तकों में व कागजी घोषणाओं में तो देशवासियों को सारी सुविधाएँ, वास्तविक स्वतंत्रता व उचित अधिकार मिल गयी है। पर वास्तविकता इनसे कोसों दूर है। वास्तविकता के जमीं पर हम आयें तो हम देखेंगे कि आज देशवासी ख़ुद अपने ही देश में गुलामी की स्थिति में जी रहे हैं। इन्हें न तो वास्तविक स्वतंत्रता मिली है न तो उचित अधिकार मिला है और न तो जरुरत पड़ने पर इनके साथ उचित न्याय ही होता है।

यह बात सिर्फ कहने-सुनने के लिए ही नहीं बल्कि वास्तविकता है। आप ख़ुद देखें आज बच्चों को उचित शिक्ष भी नहीं मिल पाती है। उन्हें पढने व खेलने का भी अधिकार नहीं है और बचपन से ही उनसे मजदूरी करायी जाती है। ....... आज महिलाओं को अपने अधिकार के लिए लड़ने का भी अधिकार नहीं है और महिला वर्ग हमेशा पुरुषों द्वारा प्रताडित ही होती रहती है। आज पीड़ित को उचित न्याय नहीं मिल पाता है और तंग आकर वह अपराधी भी बन जा रहा है। आज भारत में न्यायप्रिय राजा नहीं है बल्कि यहाँ सभी मुद्राप्रिय हैं। कभी दुनियाँ को धर्म की शिक्षा देने वाला भारत आज खुद भ्रष्टाचार, बेईमानी व तरह-तरह के जुल्म के खाई में गिरा हुआ है। और इसके लिए जिम्मेवार और कोई नहीं बल्कि हमारे न्यायपालिका व कार्यपालिका के साथ-साथ खुद हमारे समाज हैं। जी हाँ, इसमें आश्चर्य करने की कोई बात नहीं है। आज हमारे न्यायपालिका व कार्यपालिका की व्यवस्था ऐसी है कि आज अन्याय व जुल्म के सताए व्यक्ति को उचित न्याय भी नहीं मिल पाता है। पुलिस से लेकर अदालत तक सभी मुद्राप्रिय हो गए हैं और यहाँ धर्म के आधार पर नहीं बल्कि मुद्रा के आधार पर न्याय होता है। ऐसे कई मामला देखे जाते हैं जहाँ न्यायलय में न्याय करने के लिए बैठे हमारे न्यायाधिश भी पैसे लेकर पैसे वाले के पक्ष में फैसला सुनाते हैं। अपराध बढ़ाने में तो शायद सबसे बड़ा हाथ समाज से अपराध को मुक्त कराने के लिए बैठे हमारे पुलिसिया तंत्र का ही है। जहाँ यदि आप अपने ऊपर हुए किसी जुल्म व अन्याय के शिकायत करने जाएँ तो आपके साथ क्या जुल्म हुआ यह नहीं देखा जाता है बल्कि देखा जाता है कि आपके पास क्या पैसा है। इतना ही नहीं, अपराधी अपना लाभांश इन पुलिस को देकर ही अपने अपराध के व्यवसाय में दिन दुनी रात चौगुनी प्रगति कर रहे हैं। ................. अपराधों को बढ़ाने में हमारा समाज भी पीछे नहीं है। भ्रूण-हत्या हो या बच्चों व कन्या को शिक्षा से वंचित करना व बाल मजदूरी का अपराध हो या महिलाओं को प्रताड़ित करने का मामला हो या दहेज़ समस्या हो, इन सब अपराधों की जड़ हमारा समाज ही है और इसमें कोई दो राय नहीं की इसी समाज में ये अपराध पल व बढ़ रहे हैं। .........................

इन सारे जुल्म व शोषण के शिकार होते हैं एक भोले-भाले आम नागरिक जिनके पास न्याय पाने के लिए कोई रास्ता नहीं रह जाता है और वे शारीरिक व मानसिक कष्ट में अपने जीवन बर्बाद करते रहते हैं। आप खुद सोचें कि हमारे देश में इतनी समस्याएँ व अराजकता रहने के बाद हम कैसे कह सकते हैं कि हम स्वतंत्र हैं। जहाँ न्यायलय मैं भी न्याय नहीं मिलता है तो हम कैसे कह सकते है कि हमारा देश गणतंत्र है? .................... और ऐसी स्थिति में हमें गणतंत्र दिवस मनाने का क्या औचित्य रह जाता है? ........ आयें अपने समाज व देश से अन्याय, भ्रष्टाचार व जुल्म को उखाड़ फेकने के लिए कदम आगे बढाकर राष्ट्रहित में कार्य करें।

धन्यवाद।

आपका

महेश कुमार वर्मा

---------------

इन्हें भी पढ़ें :

महिलाओं को चुपचाप सबकुछ सहते रहना प्रताड़ना को बढावा देना है

अपराधी बनने का एक कारण यह भी

पंच : परमेश्वर या पापी

आज का संसार

कैसे करूं मैं नववर्ष का स्वागत

न्यायालय में भी नहीं है न्याय

भारतीय गणतंत्र के ५८ वर्ष

इंसान नहीं हैवान हैं हम

मेरे देश की कहानी

कन्या भ्रूण हत्या : एक घिनौना कार्य

भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध

मुझे भी जन्म लेने दो

महापाप

स्वतंत्रता दिवस नहीं शोक दिवस

स्त्री शिक्षा में बाधा क्यों

बाल शिक्षा बनाम बाल मजदूरी

मुर्ख मनुष्य

बकरे की जुबान

7 comments:

राज भाटिय़ा said...

भाई आप ने लिखा तो सही है, आज भारत मे कया हो रहा है क्या यह सब एक आजाद देश मै होता है??
धन्यवाद

Umesh Chandra said...

mahesh kumar verma ji aapke vichar krantikari hia aapke vichar ek nai kranti ko janm de sakte hain mujhe aapke vicharon se bahut khushi hui hai ki aaj ke jmane maien bhi itne sundr vichar raklhne val bhi koi hai aap aise hi sundar lekh likhte raiye hamar pyar aur samrathan aapke saath hai.

aapka nya mitra
Umesh Chandra

Jayram Viplav said...

BAHUT ACHCHHE WICHAR JAISA KI SAB KAH CHUKE HAIN. BAAT BILKUL SAHI HAI . LAKIN AISE LIKH -BOL KAR BHADAS NIKAL;NE SE KUCHH NAHI BADALNE WALA HAI ..... JARURAT HAI KUCHH SAKRIY KADAM UTHANE KI ...... WAISE KUCHH KARNE SE PAHLE WICHARON KI SAN SE HI KRANTI KI SHURUAAT HO SAKTI HAI .......... LAGE RAHIYE HAMARI SUBHKAMNA AAPKE SAATH HAI .........................KABHI WWW.SACHBOLNAMANAHAI.BLOGSPOT.COM PAR BHI AAYEN

Udan Tashtari said...

बहुत सही.

दिनेशराय द्विवेदी said...

जो विचार आप ने यहाँ व्यक्त किए हैं। आप खुद उस के लिए कुछ करें। तब आप को यही बात औरों से कहने का अधिकार है। यह काम सामुहिक रूप से ही किया जा सकता है। इस के लिए किसी समान उद्देश्यों के संगठन से जुड़ कर काम करें।

Anonymous said...

सार्थक कदम उठाएं, नेतृत्व karein तभी समाज और देश badlega.

Anita kumar said...

jo kutch kahaa woh sahi hai fir bhi umeed par duniya kayam hai.

चिट्ठाजगत
चिट्ठाजगत www.blogvani.com Hindi Blogs. Com - हिन्दी चिट्ठों की जीवनधारा

यहाँ आप हिन्दी में लिख सकते हैं :