कल १५ अगस्त, २००९ को राष्ट्र स्वतंत्रता की ६२वीं वर्षगाँठ मना रहा है। लोग इस अवसर को मनाने के लिएतरह-तरह की तैयारियाँ किए हैं। मैं जानना चाहता हूँ कि आज हम अपने को कैसे स्वतंत्र कहें? क्यों? आप खुद देखें व सोचें कि क्या आज हम वास्तव में स्वतंत्र हैं? आज हमें किस चीज की स्वतंत्रता मिली है, इसपर सोचें। आज हमें न तो न्याय पाने का अधिकार है न तो आज हमें अन्याय के विरुद्ध बोलने का अधिकार है। इतना ही नहीं हमारी कितनी ही अधिकारों का आज हनन हो गया है। बच्चे पढने व खेलने के लिए भी स्वतंत्र नहीं हैं और उन्हें काम पर लगा दिया जाता है। और जब उन्हें काम पर लगाया जाता है तो भी फिर उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिलती है। तब फिर हम कैसे कह सकते हैं कि हम स्वतंत्र हैं? आज हम देखते है कि किसी के साथ जब अन्याय होता है तो वह अपनी शिकायत भी नहीं कर सकता है क्योंकि उसकी शिकायत सुनने व फिर उसपर कारवाई होने तक उसे इतना परेशान होना पड़ता है कि उसे न्याय कोसों दूर दिखाई पड़ती है। यदि वह उस पर लगा भी रहा तो भी इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उसे न्याय मिल ही जाएगा। तब फिर ऐसी स्थिति में हम कैसे अपने को व अपने देश को स्वतंत्र कहें?
हाँ, यहाँ अपराधी स्वतंत्र जरुर हो रहे हैं और अब वे बेहिचक अपराध को अंजाम दे रहे हैं और फिर उसके विरुद्ध कार्रवाई में कमी हुई है। यह कोरी बात नहीं बल्कि वास्तविकता है।
तब फिर हम स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाएँ? आखिर किस मुँह से हम अपने व अपने देश को स्वतंत्र कहें? क्या हम व हमारे देश अपराध को नियंत्रित करने के लिए नहीं बल्कि अपराध को बढ़ाने के लिए हैं। नहीं, हमें व हमारे देश को ऐसा नहीं बनना है। आएँ इस स्वतंत्रता दिवस में अपने देश को अपराध मुक्त बनाने में एक-दुसरे का सहयोग करने का संकल्प लें।
स्वतंत्रता दिवस पर अन्य रचनाएँ
हाँ, यहाँ अपराधी स्वतंत्र जरुर हो रहे हैं और अब वे बेहिचक अपराध को अंजाम दे रहे हैं और फिर उसके विरुद्ध कार्रवाई में कमी हुई है। यह कोरी बात नहीं बल्कि वास्तविकता है।
तब फिर हम स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाएँ? आखिर किस मुँह से हम अपने व अपने देश को स्वतंत्र कहें? क्या हम व हमारे देश अपराध को नियंत्रित करने के लिए नहीं बल्कि अपराध को बढ़ाने के लिए हैं। नहीं, हमें व हमारे देश को ऐसा नहीं बनना है। आएँ इस स्वतंत्रता दिवस में अपने देश को अपराध मुक्त बनाने में एक-दुसरे का सहयोग करने का संकल्प लें।
-- महेश कुमार वर्मा
------स्वतंत्रता दिवस पर अन्य रचनाएँ
2 comments:
सारे सवालों का सार यही है कि आज़ादी के ६२ सालों बाद भी हमारी स्थिति दयनीय है। जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं के पूर्ति के लिए जद्दोजहद कर रहे एक आम भारतीय की वास्तविक हालत क्या एक स्वतंत्र मनुष्य की है ? हाँ , इतना जरुर है कि देश का एक तबका आर्थिक , सामाजिक , राजनितिक तमाम तरह की स्वतंत्रता का उपभोग कर रहा है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के जिस अधिकार को संविधान ने आम लोगों के हक में बने था । आज उसी अधिकार का नजायज फायदा उठकर तथाकथित बौद्धिक लोग अपनी जेबें भर रहे हैं ।
महेश जी,
आप के ब्लाग पर लिखी गई पोस्टों में आज की पोस्ट सर्वोत्तम है। इस का कारण है। अब तक की पोस्टों में आप की भावनाएँ बलवान हुआ करती थीं। लेकिन इस पोस्ट में आप का कथन और निष्कर्ष का आधार यथार्थ है। इस यथार्थ को सब जानते हैं लेकिन जानबूझ कर इसे अपनी जुबान पर नहीं लाना चाहते। वास्तव में 62 वर्ष बाद भी देश में न्याय नहीं है। किसी तरह का नहीं। जब तक न्याय होता है अत्याचारी न्याय मांगने वाले को कुचल देते हैं कि वह न्याय पाने के काबिल न रहे। आप ने सच कहा कि ...
हम स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाएँ? आखिर किस मुँह से हम अपने व अपने देश को स्वतंत्र कहें?
आप का आव्हान भी ठीक है। लोगों को इस नारे के इर्द गिर्द इकट्ठा होना होगा और तब तक संघर्ष करना होगा जब तक न्याय की स्थापना नहीं होती।
इतनी सुंदर पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई!
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