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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Tuesday, November 2, 2010

दीपावली की शुभकामनाएं : Happy Diwali

दीपावली की शुभकामनाएं


ज्ञान का दीप जलाकर सच्चाई व ईमानदारिता का प्रकाश फैलाएं.

* Happy Diwali *

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Sunday, October 24, 2010

जब दुःख की बदली छाती है

जब दुःख की बदली छाती है

जब दुःख की बदली छाती है
लोग दूरी बढा लेते हैं
अपना पराया हो जाता है
सच बोलने से वह कतराता है
पर जब होता है उसे अपना काम
तब मीठी-मीठी बातों से
निकालता है अपना काम
क्योंकि दूनियाँ हो गया है स्वार्थी
यहाँ कोई नहीं है हमदर्दी
दूनियाँ हो गया है स्वार्थी
दूनियाँ हो गया है स्वार्थी


-- महेश कुमर वर्मा
Mahesh Kumar Verma
Mobile: +919955239846



Friday, September 24, 2010

हम हिन्दू-मुस्लिम नहीं, हम मानव हैं

भगवान ने हमें इंसान बनाया
पर जाति और धर्म की लड़ाई हमने खुद है पाला
हिन्दू हों या मुस्लिम हों
हम सभी हैं मानव
मानव मेरी जाति
सत्य व मानवता मेरा धर्म
क्यों लड़ें हम धर्म व जाति के नाम पर
रमजान (RAMJAN) के प्रारंभ में है राम (RAM)
दिवाली (DIWALI) अंत में है अली (ALI)
तो फिर हम कैसे दो हुए?
हम दो नहीं हम एक हैं
हम हिन्दू-मुस्लिम नहीं
हम मानव हैं
हम इंसान हैं
सत्य व मानवता मेरा धर्म
इंसानियत मेरा फर्ज
हम दो नहीं हम एक हैं
हम मानव हैं
हम मानव हैं




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महेश कुमार वर्मा
Webpage : http://popularindia.blogspot.com
E-mail ID : vermamahesh7@gmail.com
Contact No. : +919955239846
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Tuesday, September 14, 2010

कौन है जिम्मेवार?

जिस कार्यक्रम में राज्यपाल को बुलाया गया, उस कार्यक्रम के हॉल में 3000 व्यक्ति गर्मी से परेशान थे.  न तो पंखा था न तो AC ही था.  इसके लिए जिम्मेवार कौन है?
विस्तृत के लिए यहाँ क्लिक करें. http://popularindia.blogspot.com/2010/09/silver-jubilee-celebrations-of-gyan.html 

Friday, September 10, 2010

ज्ञान निकेतन, पटना का रजत जयंती समारोह : Silver Jubilee Celebrations of Gyan Niketan, Patna

कल 09.09.2010 को ज्ञान निकेतन स्कूल का रजत जयंती समारोह स्थानीय श्रीकृष्ण मेमोरिअल हॉल, पटना में मनाया गया.  इस समारोह में दुर्भाग्य से मैं भी पहुँच गया था.  पर यदि मैं वहाँ नहीं पहुँचता तो मुझे यह रिपोर्ट लिखने का सौभाग्य नहीं मिलता.  बुलाये गए लोगों को दिए गए invitation card पर 03:30 pm तक आने के लिए लिखा गया था व समारोह प्रारंभ होने का समय 04:00 pm लिखा गया था.  मैं भी अपने ऑफिस से लगभग सवा तीन बजे छुट्टी लेकर समारोह स्थल गया.  हॉल के अंदर का हालत बहुत ही विचित्र थी.  सभी लोग गर्मी से व्याकुल थे.  हॉल के अंदर न तो पंखा की व्यवस्था थी और न ही एसी (AC) ही चल रहा था.  हॉल के अंदर (क्षमता से अधिक) लगभग तीन हजार व्यक्ति गर्मी में बंद थे व गर्मी से राहत पाने के लिए लोग अपने invitation card या रुमाल से हवा पाने की कोशिश कर रहे थे.  अपने पसीना पोछने के लिए लोग रुमाल का इस्तेमाल कर रहे थे.  आखिर स्कूल के बच्चे के कार्यक्रम में बच्चे व अभिभावक ही तो वहाँ पहुंचे थे.  वे किसी तरह समय बिता रहे थे.  महामहिम राज्यपाल श्री देवानंद कुमर को आने में लेट (विलम्ब) हुआ इस कारण अपने निर्धारित समय से कार्यक्रम प्रारंभ नहीं हुआ.  04:38 pm में कार्यक्रम प्रारंभ हुआ.  कार्यक्रम का पहला उद्घोषणा english के Good Evening शब्द के द्वारा संबोधन करके किया गया.  मैं यह सुनकर आश्चर्य में पड़ गया कि अभी 4 बजकर 38 मिनट हुए है और अभी किस आधार पर Good Evening शब्द का प्रयोग किया गया.  पूरा उद्घोषणा english में ही हुयी.  फिर महामहिम राज्यपाल श्री देवानंद कुमर आए.  खड़े होकर राष्ट्रगान गाकर उनका अभिवादन किया गया.  फिर राज्यपाल ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन किया.  कार्यक्रम के सभी उद्घोषणा english में की गयी.  कुछ लोग अपने भाषण हिन्दी में तो कुछ लोग english में दिए.  राज्यपाल ने लंबे समय तक अपना भाषण english में दिया.  भाषण के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ जिसमें बच्चों ने नृत्य, गीत, इत्यादि प्रस्तुत किये.  गर्मी, भगवान से वर्षा के लिए प्रार्थना, वर्षा व वर्षा के बाद का आनंद पर कई गीत व नृत्य प्रस्तुत किये गए.  लगभग साढ़े सात बजे शाम तक कार्यक्रम चला.  पर दुःख की बात है कि इस पूरे कार्यक्रम में हॉल की स्थिति व थी न तो पंखा न तो AC पूरे कार्यक्रम के दौरान लोग गर्मी से परेशान रहे.  दर्शक के अलावा मच पर के व्यक्तियों को भी बार-बार रुमाल से अपना पसीना पोछते हुए देखा गया.  वैसे मंच पर एक-दो stand fan दिखाई दे रहा था पर वह ऊँट के मुंह में जीरा का फोरन ही साबित हो रहा था.  सभी लोग गर्मी से परेशान थे.  यहाँ तक कि महामहिम राज्यपाल भी अपने भाषण के दौरान गर्मी से परेशान थे और तब उनके bodyguard ने रुमाल मंगवाकर उनके पास रुमाल भिजवाया और तब राज्यपाल ने रुमाल से अपने चेहरे के पसीना को पोछा.  अपने भाषण के बाद कुछ देर तक राज्यपाल ने कार्यक्रम देखा फिर चले गए.  गर्मी से लोगों की हालत तो व्याकुल थी कई लोग कार्यक्रम समाप्त होने से पहले ही चले गए.  कई बच्चे व कि अभिभावक भी हॉल से बाहर निकलकर शारीर में हवा लगाकर व आइसक्रीम, कुल्फी या मूंगफली वगैरह खाकर अपने शरीर को रहत दे रहे थे.  पूरे कार्यक्रम के दौरान हॉल में पिने के लिए पानी व कोई नाश्ता का कोई व्यवस्था नहीं किया गया.  बल्कि साढ़े सात बजे के लगभग जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तब जाते समय गाते पर लोगों को नाश्ता के एक-एक packet दिया जा रहा था. .....................
मैं ज्ञान निकेतन के principal व समारोह के व्यवस्थापक सहित संबंधित लोग से जानना चाहता हूँ कि वे उस हॉल में AC की व्यवस्था क्यों नहीं किया गया?  जानकारी के अनुसार हॉल में बैठने के लिए 2500 सीट है.  पर सीट फुल होने के बाद कितने लोग खड़े थे.  यानी स्पष्ट है कि कि उस हॉल में 2500 से अधिक व्यक्ति थे.  यानी लगभग तीन हजार व्यक्ति को उस हॉल में बंद कर गर्मी में कार्यक्रम हो रहा था जहाँ गर्मी से निजात पाने की कोई व्यवस्था नहीं थी.  आखिर कार्यक्रम के आयोजक का विद्यार्थी व अभिभावक के साथ कैसा व्यवहार करने की मंशा थी?  इस प्रकार के कुव्यवस्था के कार्यक्रम में महामहिम राज्यपाल को बुलाना राज्यपाल का भी अपमान है.  आखिर इस प्रकार के अव्यवस्था के लिए कौन जिम्मेवार है? 
आखिर इस प्रकार के अव्यवस्था के लिए कौन जिम्मेवार है?  क्या इस प्रकार के आयोजन के व्यवस्था को देखने वाला कोई नहीं है?  उस बंद कमरे में गर्मी में विद्यार्थी या अभिभावक के स्वास्थ्य  खराब होने के लिए जिम्मेवार कौन है?

आशा करता हूँ कि मेरे इस लेख के पाठक टिप्पणी करके अपने विचार देंगे.

आपका
महेश कुमार वर्मा
Mahesh Kumar Verma
Mob.: +919955239846

Saturday, August 14, 2010

स्वतंत्रता की ६३वीं वर्षगाँठ

कल १५.०८.२०१० को स्वतंत्रता की ६३वीं वर्षगाँठ है. आपने मेरे पूर्व के पोस्ट स्वतंत्रता दिवस नहीं शोक दिवस  (http://popularindia.blogspot.com/2008/08/blog-post.html)  पढ़ा होगा. 

इस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आपके लिए दो पंक्ति:

उस भारत माँ को सलाम
जिसने हमें जन्म दिया
उस भारत माँ को सलाम
जिसने हमें पाला-पोषा
उस भारत माँ को सलाम
जिसने हमें गलत व अन्याय के विरुद्ध बोलने की साहस दिया
पर उस भारतीय व्यवस्था को है धिक्कार
जिसने हमें गलत व अन्याय के विरुद्ध बोलने व न्याय पाने के अधिकार से वंचित किया
तो फिर क्यों मनाऊं मैं स्वतंत्रता दिवस??

-- महेश कुमार वर्मा
Mahesh Kumar Verma
Contact No. : +919955239846

Monday, July 19, 2010

मैं और पिताजी की बरसी

अपने पूर्व के पोस्ट "कातिल कौन?" में मैंने स्पष्ट किया था कि किस प्रकार मेरे पिता सत्येन्द्र नाथ दास अपने ही पुत्र किशोर कुमार वर्मा के कारण मृत्यु को प्राप्त हुए थे. कल 16.07.2010 को उनकी 5वीं बरसी मनायी गयी. पर दुःख के साथ कहना है कि घर में मनाये गए इस कार्यक्रम की जानकारी तक मुझे नहीं दी गयी. और आज किसी बाहरी व्यक्ति से जानकारी मिली कि कल बरसी मनायी गयी. ..................  (आगे पढ़ें) http://apnee-baat.blogspot.com/2010/07/blog-post.html

Sunday, May 16, 2010

जाति आधारित व्यवस्था : देश के लिए खतरा

जाति के आधार पर जनगणना का कोई अर्थ ही नहीं है. हाँ, यह बात सही है कि जब मुझे विभिन्न जातियों को जाति के आधार पर विशेष सुविधा देनी है तो हमें जाति का हिसाब रखना ही होगा और इसके लिए जनगणना में जाति पूछना ही होगा. पर जाति के आधार पर आरक्षण या अन्य सुविधा क्यों? हमारी समाज को जाति के नाम पर आखिर इस प्रकार का बंटवारा क्यों?  सच पूछिये तो आज हमारे समाज जाति-प्रथा को जितना ही छोड़ रही है सरकार उसे उतना ही पकड़कर बढा रही है. हमारे समाज में पहले जाति-प्रथा थी उसे समाप्त करने के लिए हम वर्षों से प्रयासरत हैं और काफी हद तक सफलता भी प्राप्त किये हैं. पर सरकार उसी जाति-प्रथा को पुनः लाने की कार्य कर रही है. सरकार की इस प्रकार की नीति किसी भी अर्थ में उचित नहीं है. जाति-विशेष के नाम पर कोई कार्य नहीं होनी चाहिए. बस हमारी एक ही जाति है मानव जाति और सभी के लिए एक समान नियम व एक समान अधिकार होनी चाहिए. इस प्रकार जाति विशेष के नाम पर कुछ नहीं होनी चाहिए. और इस कारण जनगणना में जाति पूछना या जाति नोट करना उचित नहीं है. सरकार जाति की नाम पर लोगों के व भारत के भविष्य को शिखर की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही ले जा रही है, जो देश के लिए खतरनाक है. आखिर ऐसा क्यों?

हम जाति के नाम पर समाज को बांटने का घोर विरोध करते हैं.


-- महेश कुमार वर्मा

Thursday, March 25, 2010

पतन की ओर हिन्दी भाषा

22 मार्च 2010 को बिहार में बिहार दिवस मनाया गया. बिहार के स्थापना के 98 वीं वर्षगाँठ पर पहली बार मनाया जाने वाला इस बिहार दिवस का मुख्य कार्यक्रम बिहार सरकार की ओर से 22 , 23 व 24 मार्च 2010 को पटना के गांधी मैदान में आयोजित किया गया. 24 .03 .2010 को बिहार दिवस के समापन समारोह में बिहार विधान परिषद के सभापति ताराकांत झा, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, मानव संसाधन विकास मंत्री हरी नारायण सिंह व माननीय राज्यपाल देवानंद कुमर ने उपस्थित लोगों के सामने अपने-अपने विचार व्यक्त किये. बिहार विधान परिषद के सभापति ताराकांत झा, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी व मानव संसाधन विकास मंत्री हरी नारायण सिंह ने बिहार सरकार के कई योजनाओं का हवाला देते हुए स्पष्ट करना चाहा कि बिहार विकास कर रहा है. माननीय राज्यपाल देवानंद कुमर ने भी स्पष्ट किया कि विश्व बैंक ने बिहार को सबसे तेजी से बढ़ने वाला राज्य माना है. 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनने की बात की चर्चा करते हुए राज्यपाल ने 2015 तक बिहार को सबसे विकसित राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया. राज्यपाल ने बिहार के इतिहास से कई महापुरुषों को याद कराया जो बिहार के ही थे. बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने स्पष्ट किया कि बिहार में व्यक्ति के जन्म से मरण तक के लिए योजनायें हैं. बिहार विधान परिषद के सभापति ताराकांत झा ने जोर देकर कहा कि बिहार बदल रहा है और इसी कारण अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुख्यमंत्री नितीश कुमार से मिलने की इच्छा जताए हैं और नितीशकुमार से मिलने वे बिहार आ रहे हैं.
बिहार कितनी प्रगति की है और कितनी प्रगति कर रही है यह तो अलग बात है पर इस पूरे कार्यक्रम से एक बात तो स्पष्ट है कि बिहार में बिहार की राजभाषा हिन्दी पतन की ओर जा रहा है. उल्लेखनीय है कि पूरे कार्यक्रम में वक्ता के भाषण को छोड़कर उदघोषक के द्वारा जो भी घोषणाएं की गयी या जो भी कहा गया उसमें एक पंक्ति भी हिन्दी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया. पूरा का पूरा उदघोषणा भोजपुरी भाषा में की गयी. प्राप्त जानकारी के अनुसार तीनों दिन के कार्यक्रम में मुख्य मंच के कार्यक्रम में यही स्थिति थी और हिन्दी भाषा नदारद थी. बिहार के स्थापना दिवस पर बिहार सरकार द्वारा मनाया जाने वाला इस बिहार दिवस के मुख्य कार्यक्रम के होने वाली घोषणाओं में बिहार के राजभाषा हिन्दी को स्थान न देने के पीछे सरकार की क्या सोच थी पता नहीं? बिहार दिवस में बिहार के राजभाषा हिन्दी को स्थान न देना बिहार के लिए कलंक की ही बात है. मैं बिहार सरकार से जानना चाहूँगा कि बिहार दिवस में बिहार के राजभाषा हिन्दी को स्थान न दिए जाने के पीछे आखिर उनकी क्या सोच थी? क्या बिहार की राजभाषा हिन्दी की मौत हो गयी है?

-- महेश कुमार वर्मा

Sunday, March 14, 2010

Is the Government Blind? क्या सरकार अंधी है?

Is the Government Blind?

It is not necessary that luxuries and attitude of people will improve, however improvement our country achieves. Now a days science is developing so much whereas there are many illiterate people. The largest number of illiterates is in India as per one report. There are numerous children seen in the hotels, restaurants, at the stations, in the market and on footpath to earn their livelihood or sell something. These children get opportunity neither to play nor to study. Not only this, these children are also engaged in selling items of narcotics like tobacco, pan parag, etc. on which the slogan is printed "Not for minor" at public places like trains, stations etc. where its uses ar banned.

You must think what will be the future of these children? Someone has rightly said government is blind. Narcotics and smoking items are sold openly at public places. Minors are engaged at hotels, resaurants, or like this many places. Doesn't the government see it? Where is the law for ban on selling of smoking items at common places? Where is the law for ban on child labour? Where is the law for imparting education to all children? All the rules and regulations of the government are openly violated but no positive steps are being taken against it. Perhaps government is blind surely. But who will guide this blind government? There are many political parties in our country only to reiterate and blame one another on some issues or events. All are madafter their their vote bank, they one completely blind to the improvement work being done in favour of the citizens or not, and when the welfare work is started, they think about only for the sake of their own benefit not for the common class.

Here doesn't end the discussion. We all should pander unanimously how to establish a clean and cultured society free from crime and corruption. Let us come to contribute in building a classic and honest society supporting honesty and truth.

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क्या सरकार अंधी है?
 
हमारा देश भले ही कितनी भी प्रगति कर ले पर इस देश के आम निवासी के सुख-सुविधा व सोच-विचार में प्रगति हो यह कोई आवश्यक नहीं है.  आज विज्ञान जहाँ इतनी प्रगति कर रही है वहीँ आज भी ऐसे कई बच्चे व व्यक्ति हैं जो निरक्षर हैं.  एक रिपोर्ट के अनुसार दूनियाँ में सबसे ज्यादा निरक्षर भारत में है.  आज आप होटल में, रेस्तराओं में, स्टेशन पर, बाजार में, फूटपाथ पर ऐसे कितने बच्चे देखेंगे जो अपने पेट पालने के लिए वहाँ काम करते हैं या कुछ बेचते हैं.  इन बच्चों को न तो पढने-लिखने को मिलता है न तो खेलने को ही मिलता है.  इतना ही नहीं नशीली चीजें (तम्बाकू, पान पराग, इत्यादि) जिसपर लिखा रहता है "Not for Minor"  उसे भी ये बच्चे उस सार्वजनिक स्थान पर खुलेआम बेचते हैं जहाँ इसका सेवन करना निषेध है जैसे - ट्रेन पर, स्टेशन में व अन्य स्थानों पर. 
आप जरा सोचें कि इन बच्चों का भविष्य क्या होगा?  किसी ने ठीक ही कहा है कि सरकार अंधी होती है.  खुलेआम सार्वजनिक स्थान पर नशीली चीजें व धुम्रपान का पदार्थ  बेचा जा रहा है.  अवयस्क बच्चे होटल, रेस्तरा या विभिन्न स्थानों पर काम पर लगाये जा रहे हैं. ................. क्या यह सरकार को दिखाई नहीं पड़ रही है?  कहाँ गयी सरकार की सार्वजनिक स्थानों पर धुम्रपान रोकने संबंधी कानून?  कहाँ गयी सरकार की सभी बच्चों को शिक्षा देने संबंधी कानून?  कहाँ गयी सरकार की बाल श्रम रोकने संबंधी कानून?  सरकार के इन कानून का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है, पर सरकार द्वारा कोई सार्थक कदम नहीं उठाया जा रहा है.  शायद सचमुच सरकार अंधी है.  पर इस अंधी सरकार को राह कौन दिखाएगा?  हमारे देश में कई राजनितिक पार्टियां हैं.  किसी भी घटना पर सभी एक-दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं.  सभी अपना-अपना वोट बैंक बनाते हैं पर आम जन के हित में क्या हो रहा है क्या नहीं हो रहा है इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है और यदि जाता भी है तो अपनी पॉकेट गर्म करने से किसी को फुर्सत मिलेगी तब न आम जन की समस्या पर सोचेगा.
बहस यहीं पर समाप्त नहीं होती है.  हम सबों को मिलकर यह सोचना होगा कि किस प्रकार अपराध व भ्रष्टाचार मुक्त स्वच्छ व सुन्दर समाज की स्थापना किया जाए?  आएँ सच्चाई व ईमानदारिता का साथ देकर स्वच्छ व सुन्दर समाज बनाने में अपना सहयोग करें.
 
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Written (in Hindi) by : Mahesh Kumar Verma
Translated into English by : Dhrub Kumar Verma
 

Wednesday, March 3, 2010

Great India is not great : महान भारत महान नहीं है

India is great because Indian is great. But Indian is not great because India is not great. India is not great because Indian have no rights of justice. Indian have no rights of justice because here no justice in the court. And for this criminal be freedom and victim have no rights for justice. So India is not great and it is falling down. Thus great India have no orderliness and hence it is not great.
भारत महान है क्योंकि भारतीय महान है। लेकिन भारतीय महान नहीं हैं क्योंकि भारत महान नहीं है। भारत महान नहीं है क्योंकि भारतीय को न्याय का अधिकार नहीं है। भारतीय को न्याय का अधिकार नहीं है क्योंकि यहाँ अदालत मैं न्याय नहीं है। और इस कारण अपराधी स्वतंत्र रहता है और पीड़ित को न्याय का अधिकार नहीं है। इसलिए भारत महान नहीं है और यह पतन की ओर जा रहा है। इस प्रकार महान भारत में सुव्यवस्था नहीं है और यह महान नहीं है।

Saturday, February 27, 2010

होली प्रेम पूर्वक मनाएं

सबों को होली की शुभकामनाएं
होली आपसी प्रेम भाईचारा का प्रेम हैअतः यह ख्याल रखें कि इस पर्व में आपसी प्रेम बनाएं रखें तथा किसी के भी साथ जोर-जबरदस्ती नहीं करेंजो चाहे उसे जबरन रंग-गुलाल लगायेंकिसी के साथ अभद्र व्यवहार करें तथा होली को प्रेम के साथ ही मनाएं

-- महेश कुमार वर्मा

Friday, February 26, 2010

महिला आरक्षण क्यों?

सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक पास कर दिया है और अब इसपर बहस होगी। इस विधेयक में लोक सभा व राज्य विधान सभा में महिलाओं को 33% आरक्षण की व्यवस्था है। स्थानीय निकाय के चुनाव में पहले से ही महिलाओं को आरक्षण मिला हुआ है। पर वहाँ महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों पर चुने गए महिला प्रतिनिधि किस प्रकार कार्य कर रही है इस बात को मैं अपने पोस्ट आरक्षण नीति : उचित या अनुचित में बताया हूँ। मेरे इस पोस्ट से आप जान गए होंगे कि आरक्षण के कारण किस प्रकार अयोग्य को भी मजबूरन अपना प्रतिनिधि के रूप में चुनना पड़ता है। व फिर उस चुने हुए प्रतिनिधि अपने अयोग्यता के कारण खुद कार्य नहीं करते हैं और उनके बदले में कार्य कोई और करता है। और जब ऐसा होता है तो फिर उस आरक्षण का क्या मतलब रहा? यह एक विचारनीय प्रश्न है कि क्या आरक्षण उचित है? कोई किसी कार्य के लिए कमजोर है तो उसे ऊँचा उठाना चाहिए ताकि वह उस खास कार्य के लिए योग्य बन सके और इस प्रकार उसे बिना दिक्कत उस खास कार्य को करने का अधिकार प्राप्त हो सकता है और तब वह अपने कार्य को सही ढंग से कर भी सकेगा? जिस प्रकार पेड़ की डाली को चूमने के लिए हमें ऊँचा उठना होगा, पेड़ की डाली नीचे नहीं आ सकती है। उसी प्रकार कमजोर को ऊँचा उठाएं न कि आरक्षण के माध्यम से अयोग्य को जिम्मेवारी सौंपे।
जहां तक महिला आरक्षण विधेयक का सवाल है मैं महिलाओं का सम्मान करता हूँ पर लोक सभा, विधान सभा या स्थानीय निकाय के चुनाव में किसी भी प्रकार से धर्म, जाति या लिंग के आधार पर आरक्षण का मैं जोरदार विरोध करता हूँ।
मैं किसी भी प्रकार से कमजोर वर्ग को चाहे वह पुरुष हो या महिला स्पष्ट कहना चाहता हूँ कि वे अपने में प्रगति करें व योग्य बनें तब फिर उनके दावेदारी पर लोग खुद उन्हें किसी भी विशेष कार्य की जिम्मेवारी सौंपेंगे। सरकार से मैं कहना चाहता हूँ कि कमजोर को ऊँचा उठाने के लिए सार्थक कदम उठाएं।
-- महेश कुमार वर्मा
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Saturday, February 13, 2010

RSBY के स्मार्ट कार्ड बनाने में अनियमितता

अपने पिछले पोस्ट में मैं बताया कि बिहार में पारिवारिक सर्वेक्षण के आंकड़ा में किस-किस तरह के गलती भरे पड़े हैं। और सच्चाई का खुलासा करते हुए आज मैं बता रहा हूँ कि BPL परिवार के लिए RSBY के स्मार्ट कार्ड बनाने में तथा उसे वितरित करने में किस तरह के अनियमितता बरती गयी है।
इसे बताने से पहले मैं बता दूँ कि स्मार्ट कार्ड बनने के बाद उसे activate करने का अधिकार FKO (हिंदी में शायद ग्राम-सचिव या पंचायत सचिव कहते हैं) को है। कार्ड activation करने की प्रक्रिया है कि FKO का अंगूठा का निशान एक खास स्कैनर से ले लिया जायेगा। फिर हरेक कार्ड को activate करने के लिए कार्ड को card reader में डालकर FKO स्कैनर पर अपना अंगूठा रखेगा। कंप्यूटर पूर्व में दिए गए अंगूठा के निशान से इस अंगूठा को मिलाएगा। यदि अंगूठा सही पाया गया तब तो आगे वह कार्ड activate होगा अन्यथा वह card activate नहीं होगा। हरेक कार्ड को activate करने के लिए बारी-बारी से कार्ड को card reader में डालकर अंगूठा का निशान स्कैनर पर देना पड़ता है जिसे कंप्यूटर पूर्व में दिए गए निशान से मिलाता है।
पर इस प्रक्रिया में अनियमितता यह बरती जा रही है कि FKO के अंगूठा के निशान के बदले कंप्यूटर ओपेरटर के ही अंगूठा के निशान save कर लिया जाता है और फिर ओपेरटर के अंगूठा के निशान से ही कार्ड activate होता है। देखने सुनने में तो यह सामान्य अनियमितता है पर वास्तव में यह बहुत ही गंभीर है। इस प्रकार से की गयी काम की जांच करने पर आप पायेंगे कि कई पंचायत के FKO के अंगूठा के निशान एक ही है और एक ही पंचायत में एक से अधिक भी अंगूठा का निशान है। जो कि सैधांतिक रूप से सही नहीं है क्योंकि विज्ञान के अनुसार किसी भी दो व्यक्ति के एक से अधिक अंगूठा का निशान नहीं हो सकता है और एक स्थान पर दो FKO भी नहीं है। सरकार को या किसी को भी इस अनियमितता की जांच करना हो तो वह activated card का backup file का data को लेकर उसके अंगूठा के निशान (जिससे वह card activate हुआ है) से वहाँ के FKO के अंगूठा के निशान से मिलाकर देखें कि क्या दोनों एक ही है? आप पायेंगे कि दोनों अलग-अलग है। इससे इस प्रकार की अनियमितता प्रमाणित होती है क्योंकि विज्ञान के अनुसार किसी भी दो व्यक्ति के अंगूठा के निशान एक ही नहीं हो सकता है।
मैं आपको यह भी बता दूँ कि मैं जो कार्य किया वहाँ मेरे अंगूठा के निशान से भी कई हजार card activate हुए। वैसे पहली बार जब मेरा अंगूठा का निशान लिया गया उससे पहले तक मैं यह नहीं जान पाया था कि FKO के बदले में यह मेरा या अन्य ओपेरटर के अंगूठा का निशान लिया जाता है। मैं समझता था कि उस ओपेरटर को ही card activate करने का अधिकार मिलता है। खैर अचानक उस दिन मेरे पास इस प्रकार का कार्य आने पर उस दिन तो मैं कार्य कर अपने अंगूठा के निशान से card activation का कार्य कर लिया। उससे पहले मैं card activation का नहीं बल्कि card printing का कार्य करता था। इस प्रकार पहला दिन तो अचानक आए इस कार्य को मैं कर दिया। पर चूँकि यह सही कार्य नहीं था तथा मैं कभी भी गलत कार्य करने के पक्ष में नहीं रहा अतः आगे मैं यह कार्य करूँ या इसे करने से इंकार कर दूँ, इसपर मैं खूब विचारा अपने किसी नजदीकी से भी सलाह लिया। अंत में मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यदि अभी मैं यह कार्य करने से इंकार कर दूंगा तो ये मुझे कार्य पर से निकाल देंगे और फिर मेरे पास इस अनियमितता का कोई सबूत या प्रमाण भी नहीं रहेगा। और यदि मैं अभी यह कार्य कर लूँ तो फिर मुझे इस अनियमितता को साबित करने का प्रमाण मिल जाएगा। काफी सोच-विचार कर मैं वह card activation का कार्य जारी रखने का विचार किया और साथ ही साथ मैंने यह भी फैसला किया कि भविष्य में मैं इस अनियमितता को उजागर करूँगा। और आज अपने इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से मैं इस अनियमितता को सबों के सामने उजागर कर रहा हूँ। सरकार को या किसी भी जांच एजेंसी को इसकी जांच करनी हो तो वे करें। मैं इस अनियमितता का प्रमाण दूंगा, पर मेरी सुरक्षा वे सुनिश्चित करें। मेरे अंगूठा के निशान से कई हजार card activate किये गए हैं जो यह साबित करता है कि card activation FKO नहीं किया है क्योंकि विज्ञान के अनुसार दो भिन्न व्यक्ति के अंगूठा के निशान एक ही नहीं हो सकता है। card किस निशान से activate हुआ यह देखने के लिए आप activated card का backup file देख सकते हैं। मेरे अंगूठा के निशान से किस-किस पंचायत का कार्य activate हुआ मैं आपको बता सकता हूँ। मेरे इस तर्क से यदि आप सहमत नहीं हैं और यदि आपका कहना है कि अनियमितता नहीं हुई है और card FKO द्वारा ही activate किया गया है तो मैं पूछना चाहूँगा कि activated card का backup file से स्पष्ट है कि card मेरे ही अंगूठा के निशान से activate हुआ है तो आप बताएं कि मुझे कब FKO का कार्य सौंपा गया?
अंत में मैं यह भी बता दूँ कि card बनने के बाद card बांटा तो गया पर जब पूरा card नहीं बंट सका और कितने card बचे रह गए तो वहाँ भी register में card प्राप्त करने वाले के अंगूठा के निशान वाले column में भी किसी ओपेरटर से ही अंगूठा का निशान लगा कर card को वितरित दिखा दिया गया। (यह कार्य मैं नहीं किया। मुझे भी card receiving वाले column में अंगूठा का निशान लगाने के लिए कहा गया था पर मैं यह कार्य करने से सीधा इंकार कर दिया था। फिर मुझपर दबाव नहीं डाला गया था।) इसकी जांच भी आप उस register को देखकर कर सकते हैं जहां आप देखेंगे कि एक ही गाँव या पंचायत के कई card एक ही अंगूठा के निशान द्वारा प्राप्त किया गया है।
मेरे द्वारा इस अनियमितता का खुलासा करने से किसी को भी आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
-- महेश कुमार वर्मा 
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Date : 13.06.2012
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जानकारी को बढ़ाते हुए मैं यहाँ स्पष्ट करना  चाहूँगा कि Bikram  block के Habispur  Gona पंचायत के 660, Patut  पंचायत के 792, Dattiyana पंचायत के 651, Arap पंचायत के 515 व Bikram Koraitha पंचायत के 474 (कुल 3092) card मेरे अंगूठे के निशान से activate हुए हैं। 

-- महेश कुमार वर्मा 
 

Friday, February 12, 2010

BPL परिवार के रिकॉर्ड में गलत आंकड़ा

अपने पिछले पोस्ट में मैं इस बात को स्पष्ट करने की कोशिश की है कि किस प्रकार चुनाव आयोग का मतदाता सूचि व फोटो पहचान पत्र के कार्य में गड़बड़ी होती है और सरकार द्वारा पानी के तरह पैसे खर्च किये जाने के बावजूद भी सही ढंग से कार्य नहीं होता है और गलती में सुधार नहीं होती है। आज मैं सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के लिए कराये गए सर्वेक्षण व इसके लिए बनाये जा रहे BPL परिवार के स्मार्ट कार्ड के कार्य को बताने जा रहा हूँ।
बिहार में BPL परिवार के लिए जो सर्वेक्षण किया गया है यदि उस सर्वेक्षण के नतीजे को सही मानें तो आप पायेंगे कि :
  • दो-तीन माह के बच्चा या एक-दो वर्ष के बच्चा भी मजदूरी करता है।
  • किसी के पत्नी के लिंग पुरुष भी है तो किसी के पति के लिंग स्त्री भी है। उसी तरह किसी के पुत्र का लिंग स्त्री व पुत्री का लिंग पुरुष भी है।
  • यह भी मिलेगा कि किसी के एक से अधिक पिता हैं।
  • पिता का उम्र कम व पुत्र का उम्र अधिक भी मिलेगा।
  • किसी व्यक्ति के नाम कई परिवार के सूचि में दर्ज है।
यह सब बात मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि यह बिहार में हुए सर्वेक्षण का नतीजा है और इसी के आधार पर BPL परिवार का रिकॉर्ड तैयार किया गया है व BPL कार्ड (स्मार्ट कार्ड) जारी किया गया है। ऐसे एक-दो उदहारण नहीं हैं बल्कि कई व कई परिवार के साथ मिलेंगे। इतना ही नहीं BPL परिवार को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) का जो समार्ट कार्ड वितरित किया गया है उसमें आपको कई कार्ड ऐसे मिलेंगे कि उसमें हिंदी में नाम कुछ और है तथा इंग्लिश में नाम कुछ और है।
मेरा नाम तो BPL परिवार में नहीं है और न ही मुझे RSBY का स्मार्ट कार्ड ही मिला है पर फिर भी मुझे यह बात इसीलिए मालूम है क्योंकि पारिवारिक सर्वेक्षण के रिपोर्ट को कंप्यूटर में एंट्री करने व RSBY का स्मार्ट कार्ड बनाने का कार्य मैं भी किया हूँ। सरकार को अपने कार्य में इन सब खामियों पर ध्यान देना चाहिए तथा सर्वेक्षण के कार्य में वैसे ही व्यक्ति को भेजना चाहिए जो जानकार हो। अन्यथा यही होगा कि पुत्र का लिंग स्त्री व पुत्री का लिंग पुरुष ही दर्ज होगा। अब आप सोचें कि इस रिकॉर्ड के आधार पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के कार्यक्रम में डॉक्टर उसका क्या ईलाज करेगा? क्या डॉक्टर लिंग परिवर्तित देखकर उसे गलत व्यक्ति घोषित कर ईलाज करने से इंकार कर देगा? .............
आपको ऐसे कितने परिवार मिलेंगे जिनको वास्तव में BPL के लिस्ट में नहीं आना चाहिए पर उनका नाम BPL के लिस्ट में है और वे उसका लाभ ले रहे हैं। ..............
जो भी हो पर इस तरह से कार्य होगी तो ये सब गलती में सुधार कभी नहीं होगी क्योंकि सरकार का सभी कार्य ठेका पर ही रहता है। सर्वेक्षण का कार्य भी किसी अन्य कंपनी को दिया जाता है और फिर वह जैसे-तैसे कार्य को सम्पन्न कर सिर्फ अपना ही पैसा बनाते हैं।

--महेश कुमार वर्मा

Thursday, February 11, 2010

सच्चाई का खुलासा : मतदाता सूचि में सुधार नहीं होगा

चुनाव आयोग मतदाता सूचि मतदाता पहचान पत्र बनाने में काफी पैसे खर्च कर रही हैपर मतदाता सूचि मतदाता पहचान पत्र में गलत आंकड़ा में कमी नहीं हो रही हैऔर जगह की बात तो मैं नहीं कह सकता पर बिहार में तो स्थिति यही हैयहाँ के मतदाता सूचि मतदाता पहचान पत्र मतदाता में अंकित मतदाता या संबंधी के नाम में गलती रहना आम बात हो गयी हैमतदाता पहचान पत्र में तो आप यह भी देखेंगे कि मतदाता कोई और है और फोटो किसी और का है, मतदाता पुरुष है तो फोटो किसी महिला का है, इत्यादिबिहार में मतदाता पहचानपत्र बनने की शुरुआत कई वर्ष पहले ही हुईपर प्रारंभ से अब तक मतदाता सूचि में मतदाता के नाम वगैरह में सुधार सही ढंग से नहीं हो पाया हैऔर जिस ढंग से कार्य होती है उसी ढंग से कार्य हो तो शायद कभी सुधार होगी भी नहींक्यों? क्या आपने कभी इस विषय पर सोचा कि आखिर यह सुधार क्यों नहीं हो पाती है जबकि चुनाव आयोग इसपर काफी रकम खर्च कर रही है? बिहार में रहने वाले तो इस बात को जरुर जान रहे होंगे कि मतदाता सूचि मतदाता पहचान पत्र में कितनी गलतियाँ रहती हैइस गलती के कारण एक बार चुनाव में चुनाव आयोग को समाचार पत्र में विज्ञप्ति निकालना पड़ा था कि मतदाता पहचान पत्र में हुई गलती को नजरअंदाज करके मतदाता को वोट डालने दिया जाएभले ही मतदाता उस पहचान पत्र से वोट तो डाल देते हैं पर उस पहचान पत्र में हुई गलती के कारण उसे वे अन्य जगह उपयोग नहीं कर पाते हैंकरते भी हैं तो कहीं-कहीं तो काम हो जाता है परकहीं-कहीं नाम में गलती रहने के कारण उसे अस्वीकार कर दिया जाता हैअब आप ही बताएं कि चुनाव आयोगद्वारा जारी किया गया मतदाता पहचान पत्र में गलती हो और उस गलती के कारण उसका उपयोग अन्य जगह नहीं हो, उसे अस्वीकार कर दिया जाये तो फिर उस पहचान पत्र का क्या मतलब रह गया? ऐसा भी देखने में मिला है किकिसी मतदाता सूचि में एक ही परिवार के सभी सदस्यों के नाम दो बार दर्ज है पर हरेक बार सुधार के कार्य होने के बाद भी वह उसी तरह रहता हैप्रश्न उठता है कि सुधार कार्य में इतने रकम खर्च करने के बाद भी आखिर सुधार क्यों नहीं हो पाता है?
चूँकि मतदाता सूचि मतदाता पहचान पत्र का कार्य मैं भी किया हूँ अतः मुझे उपरोक्त प्रश्न का सही जवाब मालुम हैऔर आज मैं यह खुलासा कर रहा हूँ कि किस प्रकार मतदाता सूचि मतदाता पहचान पत्र का कार्य होता है जिस कारण सुधार नहीं हो पाता है और सरकार का सभी पैसा पानी के तरह बह जाता है
चुनाव आयोग मतदाता सूचि मतदाता पहचान पत्र बनाने का कार्य ठेका पर (Contract basis पर) किसी प्राइवेटकंपनी को दे देती हैबिहार का कार्य सामान्यतः कोलकाता के किसी कंपनी को दिया जाता हैऔर फिर वह कंपनी पटना में विभिन्न स्थानों पर पटना से बाहर भी खुद या किसी अन्य को contract basis पर कार्य देकर कार्य कराती हैकार्य करने के लिए वे local (स्थानीय) ओपेरटर रखते हैंपर ओपेरटर को वे कार्य का पूरा बोझ दिए रहते हैवे ओपेरटर को टार्गेट दे देते हैं कि इतना कार्य करना हैऔर फिर इस स्थिति में ओपेरटर क्या करेगा? वे सुधार कार्य में समय बिताना छोड़कर आगे बढ़ जाते हैंऔर इस प्रकार गलती, जहाँ सुधार करनी थी वह ज्यों का त्यों बना ही रहता हैआप कहेंगे कि ओपेरटर को तो इस प्रकार नहीं करना चाहिएक्यों? आपका कहना तो ठीक हो सकता है पर मैं यहाँ यह भी बता दूँ कि ओपेरटर पर कार्य का काफी दबाव बना रहता है कि इतना कार्य करके इस टार्गेट को पूरा करना ही हैकितने जगह तो ओपेरटर को यह भी निर्देश दे दिया जाता है कि सुधार करने में समय मत बिताओ बल्कि कंप्यूटर पर सिर्फ वह डाटा खोलकर आगे बढ़ जाओ वह डाटा सुधार किया हुआ डाटा में गिनती कर लिया जायेगाऔर ओपेरटर यही करते है तथा गलती में वास्तविक सुधार नहीं होता है जबकि सिस्टम में उसे सुधार किया गया डाटा में गिन लिया जाता हैआपको मैं यह भी बता दूँ कि कोलकाता के एक कंपनी Netware Computer Services ने मुझे इसीलिए काम पर से हटा दिया था क्योंकि गलती को बिना सुधारे आगे बढ़ने के उसके बात को मेरे द्वारा नहीं मानने के कारण मैं उसका टार्गेट पूरा नहीं कर पाता था। .............
किसी भी व्यक्ति को मेरे इस सच्चाई का खुलासा करने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिएपर सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और यों ही पानी के तरह पैसा नहीं बहाना चाहिएबल्कि कार्य में कहाँ त्रुटी है उसे खोजकर उसमें सुधार करना चाहिए।

-- महेश कुमार वर्मा

Saturday, January 30, 2010

परीक्षा में कदाचार के लिए जिम्मेवार कौन

मैं अपने पिछले पोस्ट में परीक्षा में कदाचार का जिक्र किया है विचारनीय है कि परीक्षा मूल्यांकन में कदाचार के लिए जिम्मेवार कौन है? मैं जोर देकर कहता हूँ कि परीक्षा में कदाचार के लिए जिम्मेवार और कोई नहीं बल्कि परीक्षार्थी के अभिभावक रहते है जी हां अभिभावक, जो अपने बच्चे के विकास के लिए उसे स्कूल में पढ़ाते हैं पर मैट्रिक की परीक्षा में चोरी कराने में सबसे आगे उनका ही हाथ रहता है और ऐसा करके वे अपने बच्चे का जीवन उज्जवल नहीं बल्कि अंधकारमय ही बनाते हैं यह मेरी कोरी बहस नहीं बल्कि वास्तविकता है जो बच्चा स्कूल के परीक्षा में चोरी नहीं करता था और मैट्रिक की परीक्षा में भी चोरी नहीं करना चाहता है उसे भी अभिभावक मैट्रिक के परीक्षा में चोरी करने के लिए चीट / पुर्जा देते हैं यह बात सही है कि मैट्रिक के परीक्षा में चोरी / नक़ल करने के पक्ष में विद्यार्थी से ज्यादा उसके अभिभावक रहते हैं और अभिभावक खुद परीक्षा में अपने विद्यार्थी को नक़ल करने के लिए चीट (पुर्जी) पहुँचाते हैं / पहुँचवाते हैं और ऐसा करके वे अपने बच्चे का भविष्य बनाने में सहयोग नहीं करते हैं बल्कि बच्चे के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर भविष्य बिगाड़ते हैं

क्या ऐसी स्थिति से हमारी समाज सुधर सकती है?

Friday, January 29, 2010

ऐसे शिक्षक क्या पढ़ायेंगे?

जैसा कि पिछले पोस्ट में मैंने लिखा कि किस प्रकार आरक्षण नीति के कारण अयोग्य को महत्त्वपूर्ण कार्य दे दिया जाता है और इस कारण देश विकास के राह पर न चलकर पतन की ओर जाता है। योग्य व्यक्ति को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को कार्य सौंपना व्यक्ति के प्रतिभा के साथ खिलवाड़ ही है। आरक्षण के अलावा अन्य सरकारी नीति में भी इस प्रकार होती है। इसी का एक अच्छा उदहारण बिहार में कुछ वर्षों से हो रहे शिक्षकों की बहाली है। बिहार में रहने वाले तो जान ही रहे होंगे कि किस प्रकार बहाली की गयी है पर बिहार के बाहर के लोगों की जानकारी के लिए मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि इस बहाली में मेधा को कोई स्थान ही नहीं दिया गया है। प्रतियोगिता / प्रतियोगी परीक्षा समाप्त कर दी गयी। बल्कि उम्मीदवार द्वारा मैट्रिक / इंटर में प्राप्त किये गए अंक के आधार पर बरीयता सूचि के आधार पर बहाली की गयी / की जा रही है। पिछले बार भी इसी तरह हुयी थी और इस बार भी इसी तरह हो रही है। बहाली के इस नीति के ओर से तर्क दिया जा सकता है कि जिसे मैट्रिक / इंटर में ज्यादा अंक मिला है, स्वाभाविक रूप से वह तेज है अतः बिना प्रतियोगी परीक्षा के ही बहाली की जा रही है तो यह गलत नहीं है। कुछ पल के लिए यदि इस तर्क को मान लें तो इस तर्क के समर्थक को यह यह भी समझना चाहिए कि यदि वह तेज था तो वह तो उस समय तेज था जब वह मैट्रिक / इंटर पास किया था। पर आज की उसकी स्थिति क्या है इसकी जांच आपने कहाँ किया? आज आप उसके ज्ञान को परखे बिना, बिना कोई ट्रेनिंग दिए सीधे स्कूल में पढ़ाने के लिए भेज रहे है। -- क्या जो व्यक्ति 30-40 वर्ष पहले मैट्रिक किया और उस समय यदि वह तेज था और फिर इधर वर्षों से पढाई-लिखाई से उसका कोई संबंध नहीं रहा है तो क्या आप यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि वह अब भी पढ़ाने के योग्य है? फिर आपको यह भी समझना चाहिए कि कोई यदि पढने में तेज है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह सही ढंग से पढ़ाने के भी योग्य है। अपने तेज होने और दुसरे को पढ़ाना दोनों में बहुत ही अंतर है। फिर मैं पूछना चाहूँगा कि क्या परीक्षा में ज्यादा अंक लाने का मतलब तेज होना है? निःसंदेह इसका उत्तर लोग हाँ में देंगे। पर मैं याद दिलाना चाहता हूँ कि किस प्रकार पहले परीक्षा में खुलकर कदाचार होता था और तेज विद्यार्थी अंक पाने में पीछे राह जाते थे व कमजोर व मुर्ख विद्यार्थी अच्छे अंक लाते थे। मेरे इस कथन से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह सर्वविदित है कि बिहार में परीक्षा में व मूल्यांकन में कदाचार पहले भी होता था और अब भी हो रहा है। पटना उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से 1996 में सुधार हुआ व परीक्षा में कड़ाई हुयी। पर फिर ........ फिर उसी तरह परीक्षा में चोरी / नक़ल व कदाचार जारी है। अंतर सिर्फ यही है कि पहले विद्यार्थी परीक्षा में बैग में किताब भरकर ले जाते थे और डेस्क पर किताब रखकर किताब खोलकर व देखकर उत्तरपुस्तिका में लिखते थे। पर अब डेस्क पर किताब रखकर चोरी / नक़ल नहीं की जाती है पर परीक्षा हॉल में किताब व चीट / पुर्जा जाता ही है और चोरी होती ही है, जो किसी से छिपी हुयी नहीं है। ...... मैं यह भी याद दिलाना चाहूँगा कि क्या आप यह भूल गए कि बिहार के शिक्षा में कुव्यवस्था के कारण ही बिहार के बाहर के एक राज्य (नाम मुझे याद नहीं है) ने बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद के प्रमाण पत्र की मान्यता समाप्त कर दी थी। फिर बहुत ही मुश्किल से बिहार इंटरमीडिएट शिक्षा परिषद ने उस राज्य में अपने प्रमाण पत्र की मान्यता को पुनः प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की थी। ................. तो इस प्रकार परीक्षा में कदाचार होती थी व होती है। तो क्या यह कहना उचित होगा कि उच्च अंक प्राप्त करने वाला तेज है ही। और फिर इस प्रकार उच्च अंक प्राप्त करने वाले के बिना कोई ज्ञान के जांच किए ही शिक्षक के रूप में नियुक्त कर बिना ट्रेनिंग के ही सीधे स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजना उचित है? क्या इस प्रकार के शिक्षक बच्चे को सही ढंग से पढ़ा सकेंगे? बिहार में यही हो रहा है। पिछले बार के बहाली में तो उम्मीदवार के ऊपरी आयु सीमा वही थी जो आयु सीमा सेवानिवृति के लिए है। अतः 50-55 वर्ष के व्यक्ति को भी शिक्षक का नौकरी लग गया और वे अपना business छोड़कर नौकरी पर आ गए। ऐसे कितने लोगों को शिक्षक का नौकरी लग गया जिसे खुद कुछ नहीं आता है। ताज्जुब तो तब होती है जब एक पचास-पचपन वर्ष के एक पैर वाले व्यक्ति को Drill Teacher (व्यायाम शिक्षक) के रूप में नियुक्त किया गया। नियुक्त ही नहीं किया गया बल्कि वर्षों से वे नौकरी कर भी रहे है। आप सोच सकते हैं के जिनका एक ही पर है (उनका दूसरा पैर घुटना के ऊपर से ही कटा हुआ है) वह व्यायाम शिक्षक के रूप में बच्चे को क्या सिखाएंगे? ........................
तो इस प्रकार हुयी है व हो रही है शिक्षकों की बहाली और ऐसी है हमारी शिक्षा नीति। आप खुद सोच सकते हैं कि ऐसे शिक्षकों के भरोसे बच्चों का कितना विकास होगा? मेरे इस बात से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए कि बिहार में शिक्षकों की इस प्रकार के बहाली से लोगों को शिक्षक शब्द से ही शिक्षक के प्रति जो आदर व सम्मान की भावना थी वह अब नहीं रही। सच पूछिये तो शिक्षकों का कार्य अब अपने ज्ञान से सेवा भाव से बच्चों को सही राह पर लाकर विकास करना नहीं रहा बल्कि उनका कार्य अब सिर्फ बैठे-बैठे पैसा कमाना हो गया है।
शिक्षक = मास्टर = मास + टर
(यानी पढावें या न पढावें बस किसी तरह मास यानी महीना टरेगा यानी बीतेगा और पैसा मिलेगा)
..............
आप खुद सोचें कि इस प्रकार की व्यवस्था से देश का विकास होगा या देश का पतन होगा?

Thursday, January 28, 2010

आरक्षण नीति : उचित या अनुचित

मैंने अपने पिछले पोस्ट में बताया कि किस प्रकार सरकार जाति के आधार पर समाज को बाँट रही है। सरकार जाति के आधार पर आरक्षण करके देश को विकाश के ओर ले जा रही है या पतन की ओर? विचारने पर यह बात सामने आता है कि जाति के आधार पर या किसी भी आधार पर आरक्षण होने के कारण योग्य उम्मीदवार का चयन न होकर अयोग्य उम्मीदवार का चयन करना पड़ता है। जी हाँ, जिस वर्ग के लिए जो आरक्षण है उसे उस आरक्षण का लाभ देने के लिए यदि उस वर्ग विशेष में योग्य उम्मीदवार नहीं है तो अयोग्य को चुन लिया जाता है भले ही उसका परिणाम जो भी हो। ऐसा प्रतियोगी परीक्षा से लेकर राजनीति तक में हो रही है। आप खुद देखें -- चुनाव में जो सीट किसी वर्ग विशेष के लिए आरक्षित रहता है तो उस क्षेत्र में उस वर्ग विशेष के बाहर के कोई व्यक्ति खड़ा नहीं हो सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि यदि उस आरक्षित वर्ग विशेष में यदि योग्य व्यक्ति न भी हैं तो किसी भी अयोग्य ही सही, व्यक्ति चुनाव लड़ते हैं और जितने के बाद ......................... अयोग्य व्यक्ति जितने के बाद क्या करेंगे यह आप समझ ही सकते हैं। इस प्रकार आरक्षण की इस व्यवस्था से हमारा देश उन्नति की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही जाता है। कितने सीट महिला के लिए आरक्षित रहती है। वहाँ यदि कोई योग्य महिला नहीं रहती है तो फिर उसी तरह आरक्षण के कारण किसी न किसी महिला को ही जन प्रतिनिधि बनना पड़ता है। पर जितने के बाद क्या वह अपने विवेक से कुछ कर पाती है। उसका सारा कार्य उसका पति या कोई अन्य करता है। वह तो सिर्फ नाम का ही जन प्रतिनिधि रहती है। अब आप बताएं कि जब जितने के बाद भी वहाँ उसका पति या अन्य ही कार्य करता है तो महिला के नाम पर उस आरक्षण का क्या हुआ? ऐसी स्थिति सिर्फ चुनाव में ही नहीं, सरकारी नौकरियों व प्रतियोगी परीक्षाओं में भी है। और वहाँ आरक्षण के कारण अयोग्य को भी बड़े से बड़े जिम्मेदारी वाला कार्य सौंप दी जाती है और इसका सीधा असर आम जन पर पड़ता है।
इस प्रकार आरक्षण की निति से देश उन्नति की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही जाती है। सरकार को यह समझना चाहिए कि कमजोर वर्ग को ऊँचा उठाने के लिए आरक्षण नहीं बल्कि उसे वैसी व्यवस्था व साधन चाहिए जिससे वह अपने को मेधा सूचि में ला सके। और फिर बिना किसी जाति के आधार पर वह आरक्षित श्रेणी से आए नहीं कहलाकर योग्य कहलाये।
ऊँची डाली को छूने के लिए हमें ऊपर उठना चाहिए न कि डाली को ही झुकाना चाहिए। उसी तरह कमजोर को योग्य बनाकर उसे कार्य सौंपे न कि आरक्षण से कार्य को ही झुका दें।
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पाठक अपना निष्पक्ष विचार देने की कृपा करें।
आपका
महेश

Wednesday, January 27, 2010

जाति के आधार पर समाज को बांटने में सरकार कितनी दोषी

सोचनीय है कि एक ओर धर्म व जाति के आधार पर भेद-भाव समाप्त करने की बात कही जाती है और दूसरी ओर धर्म व जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाता है। विचारने पर तो यही बात सामने आती है कि धर्म व जाति के आधार पर समाज को बांटने का कार्य करने में सबसे ज्यादा हाथ हमारी यह धर्म व जाति के आधार पर के आरक्षण व्यवस्था है। यह कोई कोरी बहस नहीं है बल्कि सौ फीसदी सही है। आप खुद देख सकते हैं कि हमारे समाज में किसी भी जाति के लोगों को एक जगह रहने में या अपना व्यापार करने में कोई दिक्कत नहीं है। पर हमारी कानून की क्या व्यवस्था है? कानून कि व्यवस्था है कि जाति प्रमाण पत्र ले आओ तो यह सुविधा मिलेगा....... तो फलां जाति के लिए इतना आरक्षण तो फलां जाति के लिए इतना आरक्षण..........आप खुद देखें कि सरकार व कानून ने समाज को जाति के आधार पर कितने वर्गों में बांटा है...... फॉरवर्ड, बैकवर्ड, पिछड़ा वर्ग, अन्यन्त पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति , दलित, महादलित............. आप कहेंगे कि जाति की व्यवस्था हमारे समाज में पहले से ही है और वहाँ इससे भी अधिक बहुतों जातियां हैं। पर आप खुद सोचें कि हमारे समाज में एक शादी को छोड़कर अन्य कहीं भी जाति को लेकर किसी को रहने या कार्य करने में कोई दिक्कत नहीं है। हाँ, पहले हमारे समाज में जातिवाद था पर अब समाज इसे छोड़ रही है पर अफसोस कि अब हमारे सरकार की जाति पर आधारित आरक्षण व्यवस्था इसे बढा रही है।
किसी ने सही कहा है :
सरकार कहती है जाति-पाती हटाओ।
कानून कहता है जाति प्रमाण पत्र ले आओ॥
क्या यह षडयंत्र है।
नहीं यह लोकतंत्र है॥
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मेरे इस आलेख पर पाठक अपनी निष्पक्ष विचार देने की कृपा करें।
आपका
महेश

Tuesday, January 26, 2010

देश से अपराध भगाना है, खुशहाल जीवन लाना है।

आज राष्ट्र 61 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा है। भारत को स्वतंत्र हुए 62 वर्ष व गणतंत्र हुए 60 वर्ष हो गए। पर इतने अवधि में हमने क्या पाया? क्या देश के आम नागरिकों को देश के विकाश का वास्तविक फायदा मिल पाया है? इस बात पर विचारने पर हम पाते हैं कि कहने के लिए देश कितनी भी प्रगति क्यों न कर लिया हो पर आम लोगों के जीवन में इस प्रगति का कोई फायदा नहीं है। आज देखें हरेक जगह बेईमानी व भ्रष्टाचार फैला है और इसका सीधा असर आम जन पर पड़ रहा है। पर इस प्रकार के स्थिति के लिए जिम्मेवार कौन है? इसके लिए जिम्मेवार देश के बाहर के कोई दुश्मन नहीं बल्कि देश में ही रहने वाले हम व आप सहित पूरा देश है। और यदि हम अपने देश के अंदरूनी भ्रष्टाचार पर काबू नहीं पाएंगे तो वह दिन दूर नहीं जब हम पुनः अपने देश के अंदर के ही दुश्मन के गुलाम बन जाएंगे। हमें जागना होगा व देश के दुश्मन को भगाना होगा और इसके लिए हम सबों को साथ मिलकर चलना होगा। तो आएं अपने देश के अंदर फैले अपराध, बेईमानी व भ्रष्टाचार को समाप्त कर व देश में मानवता व सच्चाई-ईमानदारिता के धर्म की स्थापना कर देश को अपराध मुक्त व खुशहाल बनाने में अपना सहयोग करें।

देश से अपराध भगाना है।

खुशहाल जीवन लाना है॥

जय हिंद।

जय भारत॥

Sunday, January 24, 2010

क्यों न करूँ मैं गणतंत्र दिवस का बहिष्कार

गणतंत्र दिवस है आया
सोचने पर हमने है विचारा
है नहीं यहाँ बच्चों को पढने का अधिकार
है नहीं बच्चों को खेलने का अधिकार
बच्चे करते हैं होटल में काम
बेचते हैं रेल पर नशा तमाम
देखने वाला नहीं है कोई उसे
फिर हमने देश को गणतंत्र माना कैसे
गणतंत्र दिवस है आया
सोचने पर हमने विचारा
नहीं है यहाँ पीड़ित को न्याय का अधिकार
गुनाहगार घूमता है खुला बाजार
न है न्याय पाने का अधिकार
न है न्याय करने का अधिकार
न है सच बोलने का अधिकार
न है सच पर चलने का अधिकार
देश में फैली है भ्रष्टाचार
हो रही है सबों के साथ बलात्कार
तो फिर क्यों कहते हैं मेरा देश है महान
क्यों मनाऊं मैं गणतंत्र दिवस का त्यौहार
क्यों न करूँ मैं गणतंत्र दिवस का बहिष्कार
क्यों न करूँ मैं गणतंत्र दिवस का बहिष्कार
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चिट्ठाजगत
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