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Justice For Mahesh Kumar Verma

Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....

Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015

Thursday, March 25, 2010

पतन की ओर हिन्दी भाषा

22 मार्च 2010 को बिहार में बिहार दिवस मनाया गया. बिहार के स्थापना के 98 वीं वर्षगाँठ पर पहली बार मनाया जाने वाला इस बिहार दिवस का मुख्य कार्यक्रम बिहार सरकार की ओर से 22 , 23 व 24 मार्च 2010 को पटना के गांधी मैदान में आयोजित किया गया. 24 .03 .2010 को बिहार दिवस के समापन समारोह में बिहार विधान परिषद के सभापति ताराकांत झा, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी, मानव संसाधन विकास मंत्री हरी नारायण सिंह व माननीय राज्यपाल देवानंद कुमर ने उपस्थित लोगों के सामने अपने-अपने विचार व्यक्त किये. बिहार विधान परिषद के सभापति ताराकांत झा, बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी व मानव संसाधन विकास मंत्री हरी नारायण सिंह ने बिहार सरकार के कई योजनाओं का हवाला देते हुए स्पष्ट करना चाहा कि बिहार विकास कर रहा है. माननीय राज्यपाल देवानंद कुमर ने भी स्पष्ट किया कि विश्व बैंक ने बिहार को सबसे तेजी से बढ़ने वाला राज्य माना है. 2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनने की बात की चर्चा करते हुए राज्यपाल ने 2015 तक बिहार को सबसे विकसित राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया. राज्यपाल ने बिहार के इतिहास से कई महापुरुषों को याद कराया जो बिहार के ही थे. बिहार विधान सभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने स्पष्ट किया कि बिहार में व्यक्ति के जन्म से मरण तक के लिए योजनायें हैं. बिहार विधान परिषद के सभापति ताराकांत झा ने जोर देकर कहा कि बिहार बदल रहा है और इसी कारण अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने मुख्यमंत्री नितीश कुमार से मिलने की इच्छा जताए हैं और नितीशकुमार से मिलने वे बिहार आ रहे हैं.
बिहार कितनी प्रगति की है और कितनी प्रगति कर रही है यह तो अलग बात है पर इस पूरे कार्यक्रम से एक बात तो स्पष्ट है कि बिहार में बिहार की राजभाषा हिन्दी पतन की ओर जा रहा है. उल्लेखनीय है कि पूरे कार्यक्रम में वक्ता के भाषण को छोड़कर उदघोषक के द्वारा जो भी घोषणाएं की गयी या जो भी कहा गया उसमें एक पंक्ति भी हिन्दी भाषा का इस्तेमाल नहीं किया गया. पूरा का पूरा उदघोषणा भोजपुरी भाषा में की गयी. प्राप्त जानकारी के अनुसार तीनों दिन के कार्यक्रम में मुख्य मंच के कार्यक्रम में यही स्थिति थी और हिन्दी भाषा नदारद थी. बिहार के स्थापना दिवस पर बिहार सरकार द्वारा मनाया जाने वाला इस बिहार दिवस के मुख्य कार्यक्रम के होने वाली घोषणाओं में बिहार के राजभाषा हिन्दी को स्थान न देने के पीछे सरकार की क्या सोच थी पता नहीं? बिहार दिवस में बिहार के राजभाषा हिन्दी को स्थान न देना बिहार के लिए कलंक की ही बात है. मैं बिहार सरकार से जानना चाहूँगा कि बिहार दिवस में बिहार के राजभाषा हिन्दी को स्थान न दिए जाने के पीछे आखिर उनकी क्या सोच थी? क्या बिहार की राजभाषा हिन्दी की मौत हो गयी है?

-- महेश कुमार वर्मा

6 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

भोजपुरी हिन्दी की एक उपभाषा या बोली है।

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

भोजपुरी हिन्दी की एक उपभाषा या बोली है।
यह बात मुझे मालुम है. पर वहाँ भोजपुरी भाषा से संबंधित कार्यक्रम नहीं था वहाँ बिहार दिवस का कार्यक्रम था.

राज भाटिय़ा said...

भोजपुरी भाषा मै इस लिये कि आम आदमी भी सारी बात समझ सके, इस मै कोई बडी बात नही, बडी बात तब होती जब यही बाते अग्रेजी मै बोली जाती

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

पर यह बात भी सही है कि भोजपुरी पूरे बिहार की स्थानीय भाषा नहीं है. बिहार के मात्र कुछ ही स्थानों पर भोजपुरी बोली जाती है. जबकि हिन्दी भाषा को लोग संपूर्ण बिहार में जानते व समझते है. और यह कार्यक्रम न तो भोजपुरी बोले जाने वाले स्थान की थी और न तो भोजपुरी भाषा से संबंधित थी. अतः वहाँ हिन्दी हो पूर्ण रूप से छोड़कर सिर्फ भोजपुरी का प्रयोग करना उचित नहीं था. हाँ, यह बिहार दिवस का कार्यक्रम था अतः बिहार के सभी भाषाओँ को स्थान दिया जाता तब कोई बात नहीं थी. क्यों?

Anonymous said...

काहे जरुरी बा भोजपुरी के पहचान अउर सम्मान


एक दिन के बात हवे हमार एगो संघतिया से एहितरे चैट होत रहे आ वोही बीच मे बात निकलल ( उहो भोजपुरिया हवन ) त कहे लगलन कि महराज भोजपुरी बोली हवे आ एकर कवनो आधार नईखे कवनो भविष्य नईखे , रउवा फालतु मे आपन समय बरबाद करत बानी आ उ सुझाव देहलन की जईसे रउवा पहिले हिन्दी खातिर लागल रहनी हा वोहितरे फेरु से लाग जाई आ ई भोजपुरी के गुणगान कईल छोडी । भोजपुरी त अब खाली अश्लीलता के प्रतीक हो गईल बिया गवारन के भाषा बन के रही गईल बिया ।

( हम का कहनी वोह के हम एजुगा नईखी लिखत काहे कि उ एजुगा लिखल जरुरी नईखे , आ हमार संघतिया फेरु से भोजपुरी के प्रति लगिहन की ना लगिहन एकर भी कवनो गारण्टी नईखे )

लेकिन उनुकर ई बात हमरा दिमाग मे कई गो सवाल पैदा कई देहलस फेरु हम बहुत फेर मे पडनी आ कहनी की कुछ लोग भोजपुरी के बोली कहेला , कुछ लोग गँवार के भाषा कहेला , कुछ लोग अश्लीलता के प्रतीक कहत बा और भी कई चीज बा त फेरु हम सोचनी की अईसन कवन भाषा बा जवना मे गँवार नईखन ? अईसन कवन भाषा बा जवना मे अश्लीलता नईखे ? आ अगर बा त का उ लोग छोड देले बा का अपना भाषा के बोलल , वोह मे बतियावल वोह मे लिखल पढल ? अगर ना त फेरु काहे भोजपुरी के प्रति वोह लोगन के अईसन भावना बा ?


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महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

कवनो भाषा गंवार या अश्लीलता के प्रतिक नइखे. अइसन सोच संकीर्ण विचारवाला लोग के हन.

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