जाति के आधार पर जनगणना का कोई अर्थ ही नहीं है. हाँ, यह बात सही है कि जब मुझे विभिन्न जातियों को जाति के आधार पर विशेष सुविधा देनी है तो हमें जाति का हिसाब रखना ही होगा और इसके लिए जनगणना में जाति पूछना ही होगा. पर जाति के आधार पर आरक्षण या अन्य सुविधा क्यों? हमारी समाज को जाति के नाम पर आखिर इस प्रकार का बंटवारा क्यों? सच पूछिये तो आज हमारे समाज जाति-प्रथा को जितना ही छोड़ रही है सरकार उसे उतना ही पकड़कर बढा रही है. हमारे समाज में पहले जाति-प्रथा थी उसे समाप्त करने के लिए हम वर्षों से प्रयासरत हैं और काफी हद तक सफलता भी प्राप्त किये हैं. पर सरकार उसी जाति-प्रथा को पुनः लाने की कार्य कर रही है. सरकार की इस प्रकार की नीति किसी भी अर्थ में उचित नहीं है. जाति-विशेष के नाम पर कोई कार्य नहीं होनी चाहिए. बस हमारी एक ही जाति है मानव जाति और सभी के लिए एक समान नियम व एक समान अधिकार होनी चाहिए. इस प्रकार जाति विशेष के नाम पर कुछ नहीं होनी चाहिए. और इस कारण जनगणना में जाति पूछना या जाति नोट करना उचित नहीं है. सरकार जाति की नाम पर लोगों के व भारत के भविष्य को शिखर की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही ले जा रही है, जो देश के लिए खतरनाक है. आखिर ऐसा क्यों?
हम जाति के नाम पर समाज को बांटने का घोर विरोध करते हैं.
-- महेश कुमार वर्मा
7 comments:
महेश जी हम आपसे सहमत हैं
मैं भी सहमत हूँ।
हम जाति के नाम पर समाज को बांटने का घोर विरोध करते हैं.'
हम भी पुरजोर विरोध करते है.
सरकार जाति की नाम पर लोगों के व भारत के भविष्य को शिखर की ओर नहीं बल्कि पतन की ओर ही ले जा रही है,
आप के लेख से सहमत है जी
गरीबी हटाओ आन्दोलन नहीं है आरक्षण
आरक्षण को समझने के लिए आरक्षण का इतिहास भी झाक लेना जरुरी है |
आरक्षण की शुरूआती मांग हुई थी 1891 में | उस समय भारत में अंग्रेज राज
करते थे | अंग्रेज सरकार ने कई नौकरियां निकलवाई थी लेकिन भर्ती प्रक्रिया
में भारतीयों से भेदभाव के चलते सिर्फ अंग्रेजो को ही नौकरी दी जाती थी, और
काबिल भारतीय नौकरी से वंचित रह जाते थे |
भारतीयों ने नौकरी में आरक्षण के लिए आन्दोलन किया | भारतीयों का नौकरी में
आरक्षण का आंदोलन सफल रहा और हमारे कई भाइयो को इसका फायदा हुआ |
आजादी के बाद कई लोगो को इस बात का यकीं था की पिछडो के साथ भेदभाव के चलते
उन्हें नौकरियों में काबिल होने के बावजूद जगह नहीं दी जाएगी, क्योकि
जितना भेदभाव अंग्रेज भारतीयों से करते थे उससे कही ज्यादा भेदभाव भारतीय
पिछड़ी जाती के लोगो से करते है |
सवाल यह उठता है की क्या पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव ख़त्म हो गया है ?
जवाब है नहीं | Being Indian Group ने एक सर्वे किया, जिससे पता चला की जहा
गावो में यह भेदभाव स्पष्ट रूप से मौजूद है वाही शहरों में यह अदृश्य और
अप्रत्यक्ष रूप से जिन्दा है |
अरे भाई
समाज के कुछ तबके ऐसे है जिन्हें Helping Hand देने की जरुरत है |
आज भी बिहार और उत्तरप्रदेश में गावो के बाहर दलितों के टोले बना दिए गए
है, जिन्हें समाज का हिस्सा नहीं समझा जाता | और उनकी परछाई भी नहीं पड़ने
दी जाती |
विदेशो में भी आरक्षण होता है, पर वहा इसे आरक्षण नाम से नहीं, अफर्मेटिव
एक्शन और पोसिटिव डिस्क्रिमिनेशन के नाम से जाना जाता है | देश में भेदभाव
तब ख़त्म होगा जब एक दलित लड़का एक सवर्ण लड़की का हाथ मांगेगा और सवर्ण माता
पिता ख़ुशी-ख़ुशी उस लड़की का हाथ दलित के हाथ में दे देंगे |
एसा अगले 1000 सालो में शायद हो जाए, तब तक तो, इन भंगीयो को अपनी लड़की कौन
देगा हट हट हूरररर.........
मेरे प्यारे भाइयो सामजिक भेदभाव मिटा दो, में आपको विश्वास दिलाता हु की
आरक्षण भी मिट जाएगा | अब बोलो कौन-कौन तैयार है अपनी बहन की शादी भंगी
चमार से कराने को | Comment में लिखो "मै तैयार हु" देखते है कितने लोग
लिखते है ? मै पुरे विश्वास के साथ कहता हु, एक भी नहीं लिखेगा !!!!!
गरीबी हटाओ आन्दोलन नहीं है आरक्षण
आरक्षण को समझने के लिए आरक्षण का इतिहास भी झाक लेना जरुरी है |
आरक्षण की शुरूआती मांग हुई थी 1891 में | उस समय भारत में अंग्रेज राज
करते थे | अंग्रेज सरकार ने कई नौकरियां निकलवाई थी लेकिन भर्ती प्रक्रिया
में भारतीयों से भेदभाव के चलते सिर्फ अंग्रेजो को ही नौकरी दी जाती थी, और
काबिल भारतीय नौकरी से वंचित रह जाते थे |
भारतीयों ने नौकरी में आरक्षण के लिए आन्दोलन किया | भारतीयों का नौकरी में
आरक्षण का आंदोलन सफल रहा और हमारे कई भाइयो को इसका फायदा हुआ |
आजादी के बाद कई लोगो को इस बात का यकीं था की पिछडो के साथ भेदभाव के चलते
उन्हें नौकरियों में काबिल होने के बावजूद जगह नहीं दी जाएगी, क्योकि
जितना भेदभाव अंग्रेज भारतीयों से करते थे उससे कही ज्यादा भेदभाव भारतीय
पिछड़ी जाती के लोगो से करते है |
सवाल यह उठता है की क्या पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव ख़त्म हो गया है ?
जवाब है नहीं | Being Indian Group ने एक सर्वे किया, जिससे पता चला की जहा
गावो में यह भेदभाव स्पष्ट रूप से मौजूद है वाही शहरों में यह अदृश्य और
अप्रत्यक्ष रूप से जिन्दा है |
अरे भाई
समाज के कुछ तबके ऐसे है जिन्हें Helping Hand देने की जरुरत है |
आज भी बिहार और उत्तरप्रदेश में गावो के बाहर दलितों के टोले बना दिए गए
है, जिन्हें समाज का हिस्सा नहीं समझा जाता | और उनकी परछाई भी नहीं पड़ने
दी जाती |
विदेशो में भी आरक्षण होता है, पर वहा इसे आरक्षण नाम से नहीं, अफर्मेटिव
एक्शन और पोसिटिव डिस्क्रिमिनेशन के नाम से जाना जाता है | देश में भेदभाव
तब ख़त्म होगा जब एक दलित लड़का एक सवर्ण लड़की का हाथ मांगेगा और सवर्ण माता
पिता ख़ुशी-ख़ुशी उस लड़की का हाथ दलित के हाथ में दे देंगे |
एसा अगले 1000 सालो में शायद हो जाए, तब तक तो, इन भंगीयो को अपनी लड़की कौन
देगा हट हट हूरररर.........
मेरे प्यारे भाइयो सामजिक भेदभाव मिटा दो, में आपको विश्वास दिलाता हु की
आरक्षण भी मिट जाएगा |
आज ही हमारे ऑफिस में लेटर आया है की जाच करो, स्कुलो में दलित बच्चो को पानी नहीं पिने दिया जा रहा ये बच्चे या तो घर आ कर पानी पिते है या फिर सवर्णों द्वारा ऊपर से पिलाये जाने पर |
अब बोलो कौन-कौन तैयार है अपनी बहन की शादी भंगी
चमार से कराने को | Comment में लिखो "मै तैयार हु" देखते है कितने लोग
लिखते है ? मै पुरे विश्वास के साथ कहता हु, एक भी नहीं लिखेगा !!!!!
ऊपर जिन महानुभाव ने कमेंट किया है, क्या वे ईमानदारी से बता सकते हैं कि आप अपना नाम तक गुप्त रखकर क्यों कमेंट करते हैं? आप अपने को गुप्त भी रखना चाहते हैं और यह भी चाहते हैं कि लोग आपसे हाथ मिलाये। क्यों? ............
रही जातिवाद की बात तो यही बात तो सोचना है कि जातिवाद देश के लिए खतरा है। और जब तक लोग यह सोचेंगे कि मैं फलां जाति के हूँ और वह फलां जाति के हैं तब तक जातिवाद समाप्त नहीं हो सकता है। जातिवाद समाप्त करने के लिए कहीं भी, किसी भी तरह से व्यक्तिगत या सरकारी कोई काम जाति के आधार पर होना ही नहीं चाहिए। और इस तरह आप अपने कमेंट में जो दलित, भंगी या चमार से शादी के बात कर रहे हैं तो आपका ऐसा कहना सही नहीं है। जबतक आप अपने को दलित या भंगी या चमार समझेंगे तबतक खुद आप अपने को उन्नति से रोकेंगे। आप यदि योग्य रहेंगे तो हरेक जगह आपको जगह मिलेगी।
मैं तो खुद अपने को किसी भी जाति का नहीं मानता हूँ बल्कि सिर्फ अपने को मानव जाति का ही मानता हूँ। और न तो मैं कभी किसी की जाति जानने की कोशिश ही करता हूँ। और यह बात भी सही है कि सभी का एक ही जाति मानव जाति है। दलित, भंगी, चमार, डोम, ब्राहमण, राजपूत ...... ये सब कोई जाति नहीं है। बल्कि सभी की जाति मानव या मनुष्य है। मनुष्य, पशु, पक्षी ...... ये सब जीव के अलग-अलग वर्ग या श्रेणी हैं। पशु या पक्षी वर्ग के जीव में कई जाति हैं। जैसे - कुत्ता, बिल्ली, कोयल, मोर, ..... इत्यादि। पर मनुष्य वर्ग में सिर्फ एक ही मनुष्य या मानव जाति के ही जीव है। इस वर्ग में मानव के अलावा अन्य कोई जाति नहीं है। अतः अपने को सिर्फ और सिर्फ मानव जाति ही समझें। भगवान ने हमें सिर्फ मानव बनाया। डोम, चमार, ब्राहमण या राजपूत जैसे बात कहकर भेदभाव तो हमने किया, जो किसी भी अर्थ में सही नहीं है। .............
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