बलात्कार या अन्य अपराध पर सजा पर मेरा निजी विचार
31.12.2012 को मैं justice.verma@nic.in को मैं बलात्कार या अन्य अपराध पर सजा पर अपना निजी विचार e-mail से लिखा था उसे मैं यहाँ हुबहू दे रहा हूँ. पाठक अपना विचार दें.
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MAHESH KUMAR Verma | 31 December 2012 11:13 |
To: justice.verma@nic.in
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महाशय, सरकार
बलात्कारियों की सजा के संदर्भ में आम लोगों की से राय माँगी है। इसी
संदर्भ में यह ई-मेल किया जा रहा है जिसमें मेरा निजी विचार दिया जा रहा
है। --
बलात्कारियों की सजा क्या होनी चाहिए इस बात पर चर्चा करने से पहले मैं
इस बात पर चर्चा करना चाहूँगा कि बलात्कार या कोई भी अपराध के लिए अपराधी
को सजा देने का क्या उद्देश्य होना चाहिए? निश्चित रूप से सजा का उद्देश्य
यही होना चाहिए कि वह अपराधी या अन्य भी पुनः भविष्य में वैसी अपराध करने
का दुस्साहस न करे। और इस प्रकार अपराधी को सजा देकर अपराध मुक्त समाज की
स्थापना करना ही हमारा उद्देश्य होना चाहिए। और इसी उद्देश्य को ध्यान में
रखकर ही सजा तय की जानी चाहिए। इस बात पर विचार करने पर हम पाते हैं कि
किसी भी अपराध के लिए सजा ऐसा नहीं होना चाहिए की अपराधी को सजा के दौरान
कुछ समय के लिए कष्ट तो हो पर फिर सजा के बाद उसमें सुधार नहीं पाया जाए
तथा सजा ऐसी भी नहीं होनी चाहिए की सजा का असर सिर्फ उस अपराधी पर ही पड़े
तथा अन्य उस सजा से सबक न ले व अपने में सुधार न करे। अर्थात सजा वैसी होनी
चाहिए कि उस सजा के बाद अपराधी में सुधार हो और वह पुनः वैसा अपराध न करे
तथा सजा से अन्य भी सबक ले व फिर कोई वैसा अपराध करने का दुस्साहस न करे।
यानि सजा का उद्देश्य सिर्फ अपराधी को कष्ट देना ही नहीं बल्कि अपराधी व
समाज में सुधार लाना होना चाहिए।
इन सब बातों पर विचार करने पर हम पाते हैं कि पैसे वाले अपराधी के लिए
आर्थिक दंड की सजा का कोई मतलब नहीं रह जाता है उसी तरह अपराध के लिए जान
दाव पर लगाने वाले या मानव बम बनने वाले अपराधी के लिए वर्तमान तरीके से दी
जाने वाली मौत की सजा (समाज से दूर अकेले में फाँसी देना) का कोई मतलब
नहीं रह जाता है। हाँ, किसी अपराध में अपराधी को यदि मौत की सजा ही देनी है
तो समाज के बीच में उसे पिंजड़ा में बंदकर भूखे-प्यासे तड़पा कर मौत की सजा
दी जानी चाहिए और उसकी स्थिति को विभिन्न टी. वी. व रेडियो चैनलों पर
प्रसारित किया जाना चाहिए ताकि उसे अन्य लोग भी देख सके और उसका असर ऐसा
पड़े कि फिर कोई भी वैसा अपराध करने का दुस्साहस न करे। वैसे एक दृष्टी से
मौत की सजा उचित नहीं है क्योंकि हम मानव हैं और मानव को सर्वाधिक
बुद्धिमान व विवेकशील प्राणी माना गया है। तो अपराधी को मौत की सजा देना
हमारी / हम मानव की बुद्धिमत्ता नहीं है बल्कि हमारी बुद्धिमत्ता तो अपराधी
में सुधार लाकर उसे स्वच्छ विचार वाला बना देने में है। और इस प्रकार मौत
की सजा देने के स्थान पर उसे सार्वजानिक स्थान पर पिंजड़ा में बंदकर
भूखे-प्यासे रखे दिया जाए व साथ-साथ उसे उचित सिक्षा देकर उसमें सुधार का
प्रयास भी किया जाए व उसमें सुधार लाया जाए। और फिर स्वच्छ विचारधारा के
साथ उसे भी जीने का मौका दिया जाए। हाँ, उसे लगातार एकदम ही भूखे भी न रखा
जाना चाहिए बल्कि अपना उसे अपना अपराध महसूस करने व अपने में सुधार के लिए
सोचने व ऐसा करने के लिए जिंदा रहने के लिए कुछ दिनों के अंतराल पर भोजन या
जो उचित हो देकर उसे जिंदा रखा जाना चाहिए। और सजा के दौरान यदि यह प्रतित
नहीं होता है कि उसमें सुधार हो गया है तो जीवन भर उसे उसी तरह से उसी सजा
में रखा जाना चाहिए। सार्वजानिक रूप से सजा दिया जाए ताकि अन्य लोग उसे उस
स्थिति में देखकर सबक ले और फिर कोई भी वैसा अपराध न करे। सजा के दौरान उस
अपराधी की स्थिति का प्रसारण विभिन्न टी. वी. व रेडियो चैनलों पर भी होनी
चाहिए ताकि उस सजा को अधिकाधिक लोग देखे और उसका असर व्यापक रूप से पड़े व
सजा का यह उद्देश्य सफल हो कि फिर कोई ऐसी अपराध करने का दुस्साहस न करे।
हाँ, मैं यहाँ यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि मैं यहाँ भूखे रखने की
सजा मौत / फाँसी की सजा के स्थान पर रखना उचित समझता हूँ पर किस अपराध में
ऐसी सजा की व्यवस्था हो इसकी चर्चा मैं यहाँ नहीं कर रहा हूँ। मैं यह भी
कहना चाहूँगा कि वर्तमान में जिस तरह से समाज से दूर फाँसी की सजा दी जाती
है उससे अन्य अपराध प्रवृति के व्यक्ति पर विशेष असर नहीं पड़ता है क्योंकि
उनकी मानसिकता अपराधिक प्रवृति की ही रहती है और उसके सामने सजा न होने पर
उसकी मानसिकता में बदलाव नहीं आता है।
अब में आता हूँ बलात्कार पर सजा की बात पर। बलात्कारी की सजा क्या होनी
चाहिए -- वास्तव में यह एक महत्तवपूर्ण प्रश्न है। वास्तव में बलात्कार या
सामूहिक बलात्कार या यौन शोषण एक जघन्य अपराध है और इस अपराध के साथ
अपराधी पशुता से भी नीचे गिर जाता है। इस अपराध के बाद अपराधी मानव कहलाने
लायक नहीं रह जाता है। अतः निश्चित रूप से ऐसे अपराधी को कड़ी-से-कड़ी सजा
मिलनी चाहिए तथा सजा ऐसी होनी चाहिए जिसका समाज पर व्यापक असर हो और फिर
कोई भी ऐसी अपराध करने का विचार भी मन में न लाए। मेरे विचार से ऊपर मेरे
द्वारा बताये गए भूखे रखने की सजा से भी कठोर सजा इस अपराध के लिए होना
चाहिए। पर वह कठोर सजा क्या हो इसपर गंभीरता से सोचकर तय किया जाए। मैं यह
भी कहना चाहूँगा कि वह कठोरतम सजा जो भी हो पर इस अपराध में पीड़िता के ईलाज
में खर्च व पीड़िता को दी जाने वाली मुवावजा की रकम अपराधी से वसूल किया
जाना चाहिए।
अंत में मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि सजा तो अपराध हो जाने के बाद दी
जाती है। हमें वैसी व्यवस्था करनी चाहिए कि अपराध हो ही नहीं। और ऐसी
व्यवस्था के लिए हरेक मामला पर उचित व्यवस्था, उचित प्रशासन तथा उचित व
त्वरित कार्रवाई के साथ-साथ प्रारंभ से ही बच्चों को उचित शिक्षा दी जानी
चाहिए ताकि आगे बढ़कर उसकी मानसिकता अपराधिक प्रवृति की न बने।
धन्यवाद।
आपका - महेश
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2 comments:
सुन्दर प्रस्तुति! हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} की पहली चर्चा हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती -- हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल चर्चा : अंक-001 में आपका सह्य दिल से स्वागत करता है। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
शामिल रज़ा* न हो तो 'बलात्कार' ही तो है, *permission
हठधर्मिता की श्रेणी; व्याभिचार ही तो है।
प्रशस्त कर रहे है वो 'मुक्ति' का मार्ग ही !
"बाबा"* जो कर रहे है वो सहकार ही तो है!! * आज के 'बापू'
http://mansooralihashmi.blogspot.com
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