दिल की आवाज़ में आपका स्वागत है। यहाँ आप विभिन्न विषयों पर महेश कुमार वर्मा के स्वतंत्र विचार, तर्क व रचनाएँ देख व पढ़ सकते हैं। आपके स्वतंत्र व निष्पक्ष सुझाव व विचारों का स्वागत है। E-mail ID : vermamahesh7@gmail.com
Justice For Mahesh Kumar Verma
Justice For Mahesh Kumar Verma--------------------------------------------Alamgang PS Case No....
Posted by Justice For Mahesh Kumar Verma on Thursday, 27 August 2015
Saturday, November 2, 2013
Friday, August 23, 2013
बलात्कार या अन्य अपराध पर सजा पर मेरा निजी विचार
बलात्कार या अन्य अपराध पर सजा पर मेरा निजी विचार
31.12.2012 को मैं justice.verma@nic.in को मैं बलात्कार या अन्य अपराध पर सजा पर अपना निजी विचार e-mail से लिखा था उसे मैं यहाँ हुबहू दे रहा हूँ. पाठक अपना विचार दें.
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MAHESH KUMAR Verma | 31 December 2012 11:13 | |
To: justice.verma@nic.in
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Monday, March 25, 2013
होली : शुभकामना, निवेदन व अपील
होली : शुभकामना, निवेदन व अपील
पवित्र होली प्रेम व आपसी भाईचारा का पर्व है अतः इसे प्रेम व भाईचारा का ही पर्व रहने दें। इसे किसी विवाद व शत्रुता का बदला लेने का पर्व न बनाएँ। तथा सभी तरह का वैर व कटुता का भाव भुलाकर आपसी प्रेम-भाव बनाए रखें। किसी के साथ जोर-जबरदस्ती नहीं करें। जबरन किसी को रंग या गुलाल न लगायें।
धन्यवाद।
आपका -
महेश
होली : शुभकामना व निवेदन
होली : शुभकामना व निवेदन
पवित्र होली प्रेम व आपसी भाईचारा का पर्व है अतः इसे प्रेम व भाईचारा का ही पर्व रहने दें। इसे किसी विवाद व शत्रुता का बदला लेने का पर्व न बनाएँ। किसी के साथ जोर-जबरदस्ती नहीं करें। जबरन किसी को रंग या गुलाल न लगायें।
धन्यवाद।
आपका -
महेश
Thursday, March 21, 2013
जिंदा हूँ सब जानते हैं
जिंदा हूँ सब जानते हैं
जिंदा हूँ सब जानते हैं
पर मर गया ऐसा वो मानते हैं
या मेरे लिएअपने को मृत समझते हैं
इसीलिए तो मुझसे दूरी बनाये रहते हैं
जिंदा हूँ सब जानते हैं
पर मर गया ऐसा वो मानते हैं
मैं तो कई बार मरके भी जिंदा हूँ
पर तुम तो जिंदा रहके भी मृत हो
मैँ जिंदा हूँ तुम्हारे प्यार पाने को
पर तुम मृत हो मुझे तडपाने को
छुप-छुप कर मिलना
रात-रात भर बातें करना
अपने दिल की बात बताना
यह सब मुझे याद है
पर तुम्हारे बिना जीवन ये बर्बाद है
क्यों आने दिया दुनियाँ को
हमारे संबंध व प्यार के बीच
दुनियाँ वाले तो मजा उड़ाएँगे
पर वे प्यार को कभी न समझ पाएँगे
जिंदा हूँ सब जानते हैं
पर मर गया ऐसा वो मानते हैं
जिंदा हूँ सब जानते हैं
पर मर गया ऐसा वो मानते हैं
-- महेश कुमार वर्मा
21.03.2013
लेबल:
कविता
छत्तीस साल पहले
छत्तीस साल पहले
छत्तीस साल पहले
आज ही के दिन
मेरी माँ ने मुझे दिया था जन्म
पर आज जिंदा रहके भी
दोनों को मिला है मरण
क्योंकि दुनियाँ वालों ने
दोनों को एक-दुसरे से छिना
फिर मारने की धमकी के कारण
माँ ने मुझसे मिलना छोड़ा
था मैं उनतीस का
और आज हूँ मैं छत्तीस का
सात साल बीत गए
पर माँ है उसी कातिल पुत्र के साथ
जिसने आठ साल पहले
पिता को मारा
भूखे रखकर उन्हें मार डाला
और घर पर अधिकार जमाया
बीवी की बात मानी
पर उसे भी धोखा दिया
जिस कारण बीवी ने उन्हें छोड़ दिया
व एक नहीं चार-चार को
जेल का हवा खाना पड़ा
पिताजी का संजोया परिवार
बिखर-बिखर कर रह गया
छत्तीस साल पहले
आज ही के दिन
मेरी माँ ने मुझे दिया था जन्म
पर आज जिंदा रहके भी
दोनों को मिला है मरण
छत्तीस साल पहले
आज ही के दिन
मेरी माँ ने मुझे दिया था जन्म
-- महेश कुमार वर्मा
21.03.2013
21.03.2013
Friday, March 8, 2013
देश के बहना जागो
जागो बहना
मैं अपने देश के तमाम बहनों से आग्रह करना चाहूँगा कि वे महिला प्रताड़ना के विरुद्ध आवाज उठाएं।
देश के बहना जागो
तुम मानव हो
तुममे बुद्धि-विवेक है
अतः अपने बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल करो
अन्याय के विरुद्ध लड़ो
समाज से महिला प्रताड़ना को उखाड़ फेंको
व महिलाओं को शीर्ष स्थान पर स्थापित करो
जागो बहना जागो
जागो बहना जागो
Tuesday, February 26, 2013
मुझे छोड़ के कहाँ तुम चली गयी?
मुझे छोड़ के कहाँ तुम चली गयी?
मुझे छोड़ के कहाँ तुम चली गयी
न कोई पत्र न कोई मेसेज
न कोई संवाद न कोई फोन
छोड़ के क्यों तुम चली गयी
मुझे छोड़ के कहाँ तुम चली गयी
कब तक लेगी तुम मेरे प्यार की परीक्षा
आखिर क्या है तुम्हारी इच्छा
जाना ही था तो प्रेम पूर्वक कह देती
पर इतना कष्ट तुम मुझे न देती
अब कैसे रह पाऊंगा मैं
कैसे जी पाऊंगा मैं
तेरे इंतजार में हूँ मैं उस दिन से भूखा
जिस दिन से मुझे छोड़ के तुम चली गयी
मुझे छोड़ के कहाँ तुम चली गयी
तेरे कारण ही था मैं जिंदा
अब कैसे मैं रह पाऊंगा
अब कैसे मैं जी पाऊंगा
फिर भी है मुझे यह आस
कि आयेगी तुम जरुर मेरे पास
है मुझे यह विश्वास
कि आयेगी तुम जरुर मेरे पास
भूखे कष्ट में तुमसे यही सवाल करता हूँ
कि मुझे छोड़ के कहाँ तुम चली गयी
मुझे छोड़ के कहाँ तुम चली गयी
रचयिता -- महेश कुमार वर्मा
दिनांक - 26.02.2013
दिनांक - 26.02.2013
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जुदाई,
प्यार,
प्यार की परीक्षा
Thursday, January 10, 2013
भारतीय गणतंत्र के 63 वर्ष
भारतीय गणतंत्र के 63 वर्ष
मित्रों,
कुछ दिन बाद राष्ट्र 64वाँ गणतंत्र दिवस मनाएगा। भारतीय गणतंत्र के 63 वर्ष हो गए पर यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी आम लोग नारकीय जीवन जी रहे हैं। ये पग-पग पर जुल्म व अन्याय के शोषण हो रहे हैं आज ये न तो सुरक्षित हैं न तो इन्हें उचित न्याय ही मिल पाता है। हर ओर भ्रष्टाचार व्याप्त है। गलत व अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने पर ये और भी असुरक्षित हो जाते हैं, साथ ही ऐसी स्थिति में इनके साथ गलत व अन्याय और भी बढ जाता है। आज न्याय पाना भी मुश्किल हो गया है। अदालत में भी न्याय की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि पीड़ित को उसके जिन्दा रहते न्याय मिल ही जाएगा यह कहना भी मुश्किल है, तथा जबतक न्याय नहीं मिला तबतक वे मानसिक पीड़ा झेलते रहते हैं। कितने लोग इस प्रकार के जुल्म, शोषण व अव्यवस्था के शिकार से मानसिक रुप से इतने प्रताड़ित होते हैं कि ऊब कर वे या तो मौत को गले लगा लेते हैं या अपराध जगत में कदम रख देते हैं।
सोचें कि इस प्रकार के परिस्थिति के लिए कौन जिम्मेवार है? आखिर कब हमें स्वच्छ व अपराध मुक्त समाज मिलेगी?
-- महेश कुमार वर्मा
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