चुनाव आयोग मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र बनाने में काफी पैसे खर्च कर रही है। पर मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र में गलत आंकड़ा में कमी नहीं हो रही है। और जगह की बात तो मैं नहीं कह सकता पर बिहार में तो स्थिति यही है। यहाँ के मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र मतदाता में अंकित मतदाता या संबंधी के नाम में गलती रहना आम बात हो गयी है। मतदाता पहचान पत्र में तो आप यह भी देखेंगे कि मतदाता कोई और है और फोटो किसी और का है, मतदाता पुरुष है तो फोटो किसी महिला का है, इत्यादि। बिहार में मतदाता पहचानपत्र बनने की शुरुआत कई वर्ष पहले ही हुई। पर प्रारंभ से अब तक मतदाता सूचि में मतदाता के नाम वगैरह में सुधार सही ढंग से नहीं हो पाया है। और जिस ढंग से कार्य होती है उसी ढंग से कार्य हो तो शायद कभी सुधार होगी भी नहीं। क्यों? क्या आपने कभी इस विषय पर सोचा कि आखिर यह सुधार क्यों नहीं हो पाती है जबकि चुनाव आयोग इसपर काफी रकम खर्च कर रही है? बिहार में रहने वाले तो इस बात को जरुर जान रहे होंगे कि मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र में कितनी गलतियाँ रहती है। इस गलती के कारण एक बार चुनाव में चुनाव आयोग को समाचार पत्र में विज्ञप्ति निकालना पड़ा था कि मतदाता पहचान पत्र में हुई गलती को नजरअंदाज करके मतदाता को वोट डालने दिया जाए। भले ही मतदाता उस पहचान पत्र से वोट तो डाल देते हैं पर उस पहचान पत्र में हुई गलती के कारण उसे वे अन्य जगह उपयोग नहीं कर पाते हैं। करते भी हैं तो कहीं-कहीं तो काम हो जाता है परकहीं-कहीं नाम में गलती रहने के कारण उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। अब आप ही बताएं कि चुनाव आयोगद्वारा जारी किया गया मतदाता पहचान पत्र में गलती हो और उस गलती के कारण उसका उपयोग अन्य जगह नहीं हो, उसे अस्वीकार कर दिया जाये तो फिर उस पहचान पत्र का क्या मतलब रह गया? ऐसा भी देखने में मिला है किकिसी मतदाता सूचि में एक ही परिवार के सभी सदस्यों के नाम दो बार दर्ज है पर हरेक बार सुधार के कार्य होने के बाद भी वह उसी तरह रहता है। प्रश्न उठता है कि सुधार कार्य में इतने रकम खर्च करने के बाद भी आखिर सुधार क्यों नहीं हो पाता है?
चूँकि मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र का कार्य मैं भी किया हूँ अतः मुझे उपरोक्त प्रश्न का सही जवाब मालुम हैऔर आज मैं यह खुलासा कर रहा हूँ कि किस प्रकार मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र का कार्य होता है जिस कारण सुधार नहीं हो पाता है और सरकार का सभी पैसा पानी के तरह बह जाता है।
चुनाव आयोग मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र बनाने का कार्य ठेका पर (Contract basis पर) किसी प्राइवेटकंपनी को दे देती है। बिहार का कार्य सामान्यतः कोलकाता के किसी कंपनी को दिया जाता है। और फिर वह कंपनी पटना में विभिन्न स्थानों पर व पटना से बाहर भी खुद या किसी अन्य को contract basis पर कार्य देकर कार्य कराती है। कार्य करने के लिए वे local (स्थानीय) ओपेरटर रखते हैं। पर ओपेरटर को वे कार्य का पूरा बोझ दिए रहते है। वे ओपेरटर को टार्गेट दे देते हैं कि इतना कार्य करना है। और फिर इस स्थिति में ओपेरटर क्या करेगा? वे सुधार कार्य में समय बिताना छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। और इस प्रकार गलती, जहाँ सुधार करनी थी वह ज्यों का त्यों बना ही रहता है। आप कहेंगे कि ओपेरटर को तो इस प्रकार नहीं करना चाहिए। क्यों? आपका कहना तो ठीक हो सकता है पर मैं यहाँ यह भी बता दूँ कि ओपेरटर पर कार्य का काफी दबाव बना रहता है कि इतना कार्य करके इस टार्गेट को पूरा करना ही है। कितने जगह तो ओपेरटर को यह भी निर्देश दे दिया जाता है कि सुधार करने में समय मत बिताओ बल्कि कंप्यूटर पर सिर्फ वह डाटा खोलकर आगे बढ़ जाओ वह डाटा सुधार किया हुआ डाटा में गिनती कर लिया जायेगा। और ओपेरटर यही करते है तथा गलती में वास्तविक सुधार नहीं होता है जबकि सिस्टम में उसे सुधार किया गया डाटा में गिन लिया जाता है। आपको मैं यह भी बता दूँ कि कोलकाता के एक कंपनी Netware Computer Services ने मुझे इसीलिए काम पर से हटा दिया था क्योंकि गलती को बिना सुधारे आगे बढ़ने के उसके बात को मेरे द्वारा नहीं मानने के कारण मैं उसका टार्गेट पूरा नहीं कर पाता था। .............
किसी भी व्यक्ति को मेरे इस सच्चाई का खुलासा करने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और यों ही पानी के तरह पैसा नहीं बहाना चाहिए। बल्कि कार्य में कहाँ त्रुटी है उसे खोजकर उसमें सुधार करना चाहिए।
चूँकि मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र का कार्य मैं भी किया हूँ अतः मुझे उपरोक्त प्रश्न का सही जवाब मालुम हैऔर आज मैं यह खुलासा कर रहा हूँ कि किस प्रकार मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र का कार्य होता है जिस कारण सुधार नहीं हो पाता है और सरकार का सभी पैसा पानी के तरह बह जाता है।
चुनाव आयोग मतदाता सूचि व मतदाता पहचान पत्र बनाने का कार्य ठेका पर (Contract basis पर) किसी प्राइवेटकंपनी को दे देती है। बिहार का कार्य सामान्यतः कोलकाता के किसी कंपनी को दिया जाता है। और फिर वह कंपनी पटना में विभिन्न स्थानों पर व पटना से बाहर भी खुद या किसी अन्य को contract basis पर कार्य देकर कार्य कराती है। कार्य करने के लिए वे local (स्थानीय) ओपेरटर रखते हैं। पर ओपेरटर को वे कार्य का पूरा बोझ दिए रहते है। वे ओपेरटर को टार्गेट दे देते हैं कि इतना कार्य करना है। और फिर इस स्थिति में ओपेरटर क्या करेगा? वे सुधार कार्य में समय बिताना छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं। और इस प्रकार गलती, जहाँ सुधार करनी थी वह ज्यों का त्यों बना ही रहता है। आप कहेंगे कि ओपेरटर को तो इस प्रकार नहीं करना चाहिए। क्यों? आपका कहना तो ठीक हो सकता है पर मैं यहाँ यह भी बता दूँ कि ओपेरटर पर कार्य का काफी दबाव बना रहता है कि इतना कार्य करके इस टार्गेट को पूरा करना ही है। कितने जगह तो ओपेरटर को यह भी निर्देश दे दिया जाता है कि सुधार करने में समय मत बिताओ बल्कि कंप्यूटर पर सिर्फ वह डाटा खोलकर आगे बढ़ जाओ वह डाटा सुधार किया हुआ डाटा में गिनती कर लिया जायेगा। और ओपेरटर यही करते है तथा गलती में वास्तविक सुधार नहीं होता है जबकि सिस्टम में उसे सुधार किया गया डाटा में गिन लिया जाता है। आपको मैं यह भी बता दूँ कि कोलकाता के एक कंपनी Netware Computer Services ने मुझे इसीलिए काम पर से हटा दिया था क्योंकि गलती को बिना सुधारे आगे बढ़ने के उसके बात को मेरे द्वारा नहीं मानने के कारण मैं उसका टार्गेट पूरा नहीं कर पाता था। .............
किसी भी व्यक्ति को मेरे इस सच्चाई का खुलासा करने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए। पर सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए और यों ही पानी के तरह पैसा नहीं बहाना चाहिए। बल्कि कार्य में कहाँ त्रुटी है उसे खोजकर उसमें सुधार करना चाहिए।
-- महेश कुमार वर्मा