अपराधियों के लिए सुरक्षित स्थान : जेल
इस लिंक http://www.hindi.indiasamvad.co.in/…/8-members-of-banned-si…
पर सवाल उठाया गया है कि मुठभेड़ में मारे गए 8 आंतकियो के पास कहां से आए
ब्रांडेड जींस टीशर्ट, मंहगी घड़ी, स्पोर्टस शूज़ ? आगे कहा गया है कि
लगता है कि यह जेलखाना नहीं बल्कि आतंकियों के ऐशगाह के रूप में तब्दील थी।
..............
मैं यह स्पष्ट रूप से कहना चाहता हूँ कि व्यावहारिक
में सही में जेल के अंदर की स्थिति अपराधियों के लिए सुरक्षित स्थान रहता
है जहां से वे बैठे-बैठे आसानी से जेल के बाहर अपराध कर सकते है। और अंधा
कानून को कभी पता भी नहीं चलेगा कि जेल में रहकर वहाँ से अपराध किया गया
है। ................ चौंकिए मत यह बात सही है। जेल के अंदर विचारधीन बंदी व
सजायाफ्ता बंदी सभी के लिए वहाँ हरेक तरह के सामान उपलब्ध रहते हैं। जेल
के अंदर की बात को एक पंक्ति में लोग कहते हैं कि सिर्फ कहने के लिए वह जेल
है पर वहाँ लड़की छोड़कर सब कुछ उपलब्ध है। ........... मुझे यह भी कहने
में कोई संकोच नहीं है कि कुछ विशेष को तो वह भी मिल जाता है।
....................
मेरी बात सुनने में अटपटा लग रहा होगा पर यह
हकीकत है। वहाँ मोबाइल, बीड़ी, खैनी, सिगरेट, गाँजा ये सब तो आसानी से मिलते
ही हैं। बल्कि कहिए तो जेल के अंदर इसकी दुकान रहती है। हाँ, जेल प्रशासन
के कागज पर यह दुकान नहीं रहती है। पर सबको मालूम रहता है कि कहाँ किस चीज
की दुकान है। .............. आपको नया मोबाइल लेना है तो नया मोबाइल मिल
जाएगा। सिम कार्ड लेना है तो सिम कार्ड भी मिल जाएगा। मोबाइल से बात करने
के बारे में मत पूछिए --- इस संबंध में तो फ्री होकर मोबाइल से देश दुनियाँ
जहां बात करना हो कीजिये। और जिसके पास मोबाइल नहीं है वह बात कराने वाली
नाजायज दुकान पर पंक्ति में लगकर बात करते हैं। .....................
गाँजा की दुकान, सिगरेट की दुकान सब दुकान है वहाँ ......................
इतना ही नहीं टीवी सेट में अपना pen drive या memory card लगाकर अपना
मनचाहा फिल्म आप देख सकते हैं। अपराधी लोग हॉलीवुड फिल्म अधिक देखते हैं
ताकि अपराध करने का तरीका वो आसानी से सीख सके। ................. टीवी में
डिश का connection लगा रहता है। जो चैनल मन वह चैनल देखिये।
................
सरकारी जेल प्रशासन के तरफ से कागजी रूप में कैंटीन,
लाइब्रेरी, जीम व गीत-संगीत की व्यवस्था भी रहती है। (पर यह सब सरकारी
व्यवस्था हरेक जेल में नहीं रहती है।) पर और यदि कुछ नहीं है तो घबराने की
बात नहीं है। मोबाइल है न? अपने आदमी को फोन कीजिए वह आपका सामान लेकर
मुलाकाती के रूप में आपसे मिलने आ जाएगा और सामान आपको मिल जाएगा।
.................. आप मांस, मछली, मिठाई, व अन्य खाने-पीने का सामान आसानी
से मँगवा सकते हैं। ब्रांडेड कपड़ा, जूता-चप्पल, सब कुछ मँगवा सकते हैं।
............. हथियार ................ वहाँ, बंदी में से ही कई प्राइवेट
नाई है जो वहाँ नाई का काम करते हैं और बंदी उनको पैसे देकर अपना हजामत
यानि बाल, दाढ़ी, मूंछ बनवाते हैं। तो जब उन नाई बंदी के पास उस्तरा और
ब्लेड आ सकता है इसके अलावा कितने बंदी अपना खाना खुद पकाते हैं और इसके
लिए जब उनके पास सब्जी काटने के लिए चाकू आ सकता है। तो क्या यह हथियार आना
नहीं हुआ? और जब इतना कुछ हो सकता है। तो व्यवस्था करने वाला इससे बड़ा
व्यवस्था भी कर सकता है। ......................
इतना ही नहीं जेल के
अंदर की दुकान में बाहर के दुकान से सस्ता में अनाज (चावल, दाल, आटा वगैरह)
मिलता है और बंदी उसे खरीदकर अपने घर ले जाता है। वहाँ के अनाज के रेट
सुनकर आप दंग रह जाइएगा कि इतना सस्ता? सस्ता क्यों नहीं हो? कौन वहाँ
बेचने वाले को अपने घर से पूंजी लगा है? वह तो बंदी के खाने के लिए जो अनाज
आता है उसे वह बेचकर अपना पैसा बना लेता है। यह काम रसोइया द्वारा किया
जाता है, जो सजायाफ्ता बंदी ही रहता है। ...............
कितने सजायाफ्ता बंदी वहाँ जायज पैसा तो थोड़ा ही कमाते हैं पर नाजायज पैसा खूब कमाते हैं।
जब इतना कुछ जेल के अंदर आसानी से है तो कैसे नहीं कह सकते हैं कि जेल के
अंदर ऐशो आराम के सब चीज है? हाँ, यह बात भी सही है कि जो पेशेवर अपराधी
हैं या जो सजायाफ्ता बंदी हैं उन्हें सारी सुविधा आसानी से उपलब्ध रहती है।
और यह बात भी है कि नए विचारधीन वैसे बंदी जो पेशे से अपराधी नहीं हैं वे
इन पुराने व अपराधी बंदी के द्वारा प्रताड़ित भी होते हैं। पर जो चीज खुला
दुकान में मिलता है वह सबों को उपलब्ध रहता है। नए बंदी से उसे वहाँ रहने
के लिए पैसे भी लिए जाते हैं। .......................... इस प्रकार वह
बंदी जो पेशेवर अपराध है उसके लिए जेल वहाँ से अपराध करने का एक सुरक्षित
स्थान रहता है। और उसका सबसे बड़ा कारण है कि उसके पास मोबाइल से बात करने
की पूरी छुट है। और वे मोबाइल से बात कर अपना अपराध के धंधा को वहीं से
बढ़ाते रहते हैं। पर जेल से बाहर किसी भी तरह के अपराध होने पर शक के आधार
पर भी पुलिस उसका नाम नहीं देगी क्योंकि वह तो जेल में बंद है।
.....................
मैं बहुत लंबा लिख दिया पर आप कहेंगे कि मैं
किस आधार पर जेल के अंदर इस तरह की व्यवस्था होने की पुष्टि करता हूँ? तो
मैं आपको बता दूँ कि मैं एक झूठा केस में निर्दोष रहते हुये भी सात माह
(210 दिन) जेल में विचारधीन बंदी के रूप में रह चुका हूँ। इन सात माह में
मैं तीन जेल में रहा। जिसमें मैं एक उपकारा, एक केंद्रीय कारा (सेंट्रल
जेल) व एक मंडल कारा में रहा हूँ। इन सात माह में मैंने जेल के अंदर की
तमाम कुव्यवस्था देखा। जेल से आने के बाद मैं जेल के अंदर के सारे
कुव्यवस्था व किस प्रकार बंदी वहाँ शोषित व प्रताड़ित होते हैं वह सब सारी
बात मैं सार्वजनिक करना चाहा था। इस संबंध में मैं इस लिंक https://www.facebook.com/maheshkumar.verma2/posts/855097111243018 व इस लिंक https://www.facebook.com/maheshkumar.verma2/posts/855097221243007
पर मैं स्पष्ट लिखा था कि "210 दिन के पुलिस हिरासत व जेल से मुझे बहुत ही
नुकसान हुआ है। पर जेल के अंदर किस प्रकार की अव्यवस्था रहती है, यह नजदीक
से देखने का अनुभव हुआ। इस जानकारी को भी मैं सार्वजनिक करूंगा कि किस
प्रकार जेल में बंदी जानवरों से भी बदतर स्थिति में रहते हैं व उनकी मौलिक
अधिकार का भी हनन होता है। मैं यह भी सार्वजनिक करूंगा कि किस प्रकार जेल
प्रशासन के सहयोग से ही उनलोगों के पास मोबाइल, खैनी, गाँजा व अन्य
आपत्तिजनक सामान पहुँचते है। मेरे द्वारा इन बातों को सार्वजनिक करने पर
यदि जेल के अंदर की स्थिति में यदि सुधार हो तो मैं समझूँगा कि मेरे जेल
जाने से बाहर आने पर मैं कुछ तो जनहित में कार्य कर सका व जेल जाने का कुछ
तो फायदा अन्य को हुआ। अतः आप सबों से अनुरोध है कि जेल के अंदर के स्थिति
में सुधार के कार्य में आगे आयें व सहयोग करें। खासकर सामाजिक कार्य से
जुड़े व्यक्ति व संस्था इस कार्य के लिए आगे आयें। आपलोगों के प्रयास से
जनहित में बहुत ही बड़ा कार्य हो सकता है। अंदर की सारी स्थिति व अव्यवस्था
को मैं बेहिचक सार्वजनिक करने के लिए तैयार हूँ।" ---------- ऐसा मैं उपरोक
लिंक पर लिखा था। पर सारी बात सार्वजनिक करने में कोई भी मेरे साथ देने को
आगे नहीं आया। पर आज "इंडिया संवाद" पर "अमित बाजपेयी" http://www.hindi.indiasamvad.co.in/Author/amit-vajpayee जी का यह आलेख "मुठभेड़ में मारे गए 8 आंतकियो के पास कहां से आए ब्रांडेड जींस टीशर्ट, मंहगी घड़ी, स्पोर्टस शूज़ ?" http://www.hindi.indiasamvad.co.in/…/8-members-of-banned-si…
पढ़ने के बाद मेरी चुप्पी टूट गयी और मैं यहाँ इतना लिख दिया। अभी भी और
बहुतों बात हैं जैसे आखिर किस प्रकार ये सब आपत्तिजनक सामान जेल के अंदर
आता है? कहाँ व कैसे इसे छिपाकर रखा जाता है जो बाहरी पुलिस वाले भी जब
छापा मारते हैं तब भी उन्हें नहीं मिलती है? ...... ऐसी बहुतों बात अभी और
हैं। .............
पर मैं यह कहना चाहता हूँ कि मैं जो लिखा हूँ वह
सही है और मैं यह अपने तीनों जेल में गुजारे समय के आधार पर लिखा हूँ। हाँ,
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि देश के सभी जेल ऐसे ही होंगे। पर अपने जेल में
गुजारे समय के आधार पर मैं यह सही बात लिखा हूँ। यह बात मात्र सच्चाई को
सार्वजनिक करने के उद्देश्य से लिखा गया है। पर मैं अनुरोध करना चाहता हूँ
कि मेरे इस बात को लेकर कोई मीडिया वाले या पत्रकार या पुलिस वाले या अन्य
कोई मुझे बेवजह तंग न करें पर हाँ, यदि कोई और भी गहरी सच्चाई जानने के
ख्याल से मुझसे पुछना चाहें तो मैं और भी अपना सारा अनुभव व सच्चाई बता
सकता हूँ। पर इसके लिए मेरे किसी भी नजदीकी या मेरे कार्य-स्थल या
निवास-स्थान पर जाकर वहाँ के लोग को डिस्टर्ब न करें बल्कि जो पुछना हो
मुझसे पूछें। ................
धन्यवाद।
आपका -
महेश कुमार वर्मा
10:20 Pm
05.11.2016
*****************https://www.facebook.com/maheshkumar.verma2/posts/1128169150602478