गलत व झूठ का सर्वाधिक प्रयोग न्यायालय
में
जी हाँ, न्यायालय, जिसकी व्यवस्था की गयी है न्याय
पाने के लिए, पर दुःख की बात है कि इसी न्यायालय में गलत व झूठ का सर्वाधिक प्रयोग
किया जाता है. और बिना जाँच किए फैसला भी
किया जाता है. और इस कारण कई बार बेकसुर
को भी सजा मिल जाती है तो कई बार दोषी को उचित सजा नहीं मिलती है. ................ केस की अधिकांश कहानी तो मनगढ़ंत ही रहती
है. ............... जैसे किसी व्यक्ति को
किसी से किसी बात का बदला लेना है तो उसे फँसाने के लिए वह व्यक्ति उसके खिलाफ
झूठा क्रिमिनल केस कर देता है जिसमें वह मारपीट का या कोई अन्य आरोप लगा देता
है. ................. ऐसा झूठा केस तैयार करते समय वे लोग अपने वकील
से इस बात पर भी विचार करते हैं कि घटना का स्थान क्या दें जैसे कि क्या दें कि
मारपीट घर पर हुआ या खेत में या दुकान पर ..................... अब जब वास्तव में मारपीट हुआ ही नहीं और झूठा
ही केस करके फँसाना है तो सोचना पड़ता है कि घटना का स्थान क्या दें
................ निश्चित है कि ऐसी
स्थिति में मुदालय यदि अपने को निर्दोष साबित नहीं कर पाता है तो उसे सजा भुगतना
ही पड़ेगा.
कई बार तो लोग अपने बचाव के लिए या गलत कार्य करने
के लिए झूठ का सहारा लेते हैं और हमारी अंधी कानून व्यवस्था बिना जाँच किये
कार्रवाई पूरी कर देती है और फिर लोग उसी कार्रवाई के आड़ में गलत कार्य कर लेते
हैं. ............. ऐसा ही एक उदाहरण है – एक नबालिग लड़की अपने
प्रेमी के साथ भागकर शादी कर ली. वह दोनों
तो घर से भागे हुए थे. इधर लड़की के
घरवालों ने उस लड़का पर लड़की भगाने का या अपहरण का केस कर दिया. कोर्ट की कार्रवाही प्रारंभ हुयी. .................... लड़का गिरफ्तार नहीं हो सका तब कुर्की जब्ती का
आदेश हुआ. .................. अब
लड़का-लड़की दोनों चाहते हैं कि कुर्की जब्ती भी नहीं हो और हमदोनों का शादी बना हुआ
ही रहे. ............ इस संबंध सहायता के लिए लड़का-लड़की दोनों एक
वकील के पास पहुँचते हैं. वकील मामला
जानने के बाद उसे कहते हैं कि ऐसे नहीं होगा पहले माँग का सिंदूर धोओ और साड़ी
उतारकर सलवार-समीज पहनो ........... इसपर
लड़का-लड़की दोनों आपत्ति करते हुए कहते हैं कि हमलोग तो शादी कर चुके हैं
.............. तब वकीत साहब उन्हें बताते
हैं कि शादी निश्चिंत से करना पहले सिंदूर धोओ और सलवार-समीज पहनो.
.................. इस प्रकार वह वकील उस
लड़की का सिंदूर धुलवा दिए और साड़ी हटवाकर सलवार-समीज पहनवा दिए. ................ अब वकील उस लड़की को DSP के पास ले जाकर
ब्यान दिलवा दिए कि मुझे मेरे पिताजी बेचना चाहते थे तो मैं भागकर ननिहाल चली गयी
थी और वहीं थी. मुझे मालुम हुआ कि लोग उस
पर (उस लड़का पर) केस कर दिए हैं इसलिए हम आए हैं जबकि मैं उसके साथ नहीं थी, मुझे
उससे भेंट भी नहीं हुयी है.
............... रहेगी कहाँ? इसपर लड़की कही कि रहेंगे तो पिताजी के पास
ही. .................................. DSP के पास इस
प्रकार का ब्यान लड़की से दिलवा दिया गया फिर वकील साहब उस लड़की को Court लाकर Court में भी वही ब्यान
दिलवा दिए. ............. Court लड़की के पिताजी
पर लड़की बेचने के सोच का आरोप का जाँच किए बिना लड़की को उसके पिताजी को सौंप दी
तथा उनसे यह बात लिखवाकर receiving ले ली कि लड़की को ले जा रहे हैं, इसे सही ढंग से
रखेंगे तथा जब भी अदालत माँग करेगी इसे अदालत में पेश
करेंगे..........................
इस प्रकार अपने पिताजी पर
बेचने की सोच का आरोप लगाकर भी अपनी ईच्छा से लड़की अपने पिताजी के पास चली
गयी. और उसके पिताजी उसे सही ढंग से रखने
व जरूरत पड़ने पर अदालत में पेश करने की बात पर ले गए. ................. और इसके बाद उस लड़का पर का केस भी समाप्त हो
गया. ........... पर लड़की नबालिग ठीक तो
क्या उसका तो उद्देश्य अपने प्रेमी के साथ शादी करके रहने का था और इसी उद्देश्य
के लिए हे तो वकील उसके पिता पर लड़की के मुख से ही बेचने की सोच का आरोप लगवा दिए
थे ..................... लड़की कुछ दिन
पिताजी के पास रही और फिर घर से और भी पैसे वगैरह लेकर फिर अपने उसी प्रेमी के साथ
भाग गयी. ........................ बस, लड़की का काम हो गया. ......................... अब लड़की के पिताजी पुनः न तो थाना जा सकते थे न
तो कोर्ट ही जा सकते थे क्योंकि लड़की पहले से उनपर बेचने की सोच का आरोप लगा चुकी
है और उसके पिताजी कोर्ट में यह लिखकर दे चुके हैं कि हम इसे ले जा रहे हैं और सही
ढंग से रखेंगे तथा अदालत जब माँग करेगी तब इसे अदालत में पेश करेंगे
.............................. बेचारा
लड़की के पिताजी फँस गये. अब यदि वे Court या थाना जाते हैं
तो उनपर ही गाज जिरेगी कि वे सही से लड़की को नहीं रखे. .........................
तो इस प्रकार झूठ का
सहारा लेकर लड़का के कुर्की जब्ती को रोक भी दिया गया और नबालिग लड़की अपने उसी
प्रेमी लड़का के साथ भी हो गयी और फँक गए बेचारे लड़की के पिताजी और उसे लड़की मिली
भी तो फिर भाग ही गयी.
....................... यहाँ,
हमारी अँधी कानून व्यवस्था के कारण ही झूठ का सहारा लेकर नबालिग लड़की अपने प्रेमी
के साथ दुबारा भागने में सफल रही. .................. यदि हमारा कानून व्यवस्था लड़की द्वारा पिताजी
पर बेचने की सोच की आरोप का जाँच करता तथा जाँच करता कि लड़की वास्तव
में कहाँ थी तो शायद उसे दुबारा भागने से बचाया जा सकता था. ..................
वास्तव में हमारी कानून
व्यवस्था अंधी ही है.
न्यायालय में आँख पर
पट्टी बाँधे हाथ में तराजू लिए महिला का मूर्ति / चित्र इस बात का प्रतीक माना
जाता है कि यहाँ पक्षपात नहीं होता है बल्कि उचित न्याय होता है. पर आज के स्थिति में यह कहना गलत नहीं होगा कि
यह मूर्ति इस बात का प्रतीक है कि मैं (न्यायालय) अंधा हूँ, यहाँ हम कुछ नहीं
देखते हैं बल्कि जैसा कहा जाता है उसे ही सही मान लेते हैं और उसी अनुसार सही-गलत
देखे बिना ही फैसला करते हैं क्योंकि मेरे आँख पर पट्टी है, मैं नहीं देख सकता हूँ
तथा मैं अंधा हूँ.
-- महेश कुमार
वर्मा
2 comments:
Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.
***HAPPY INDEPENDENCE DAY***
यह सब इसलिए संभव है कि झूठ बोलनेवालों को न्यायतंत्र का सानिद्य प्राप्त है और सामान्यतया झूठ बोलनेवालों और झूठे दस्तावेज प्रस्तुत करने वालों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाती है | वैसे न्यायाधीश भी तो भूतपूर्व वकील ही हैं , कोई अवतार पुरुष नहीं हैं | जो गुणधर्म हम वकीलों में देखते हैं वे सब के सब भारतीय न्यायाधीशों में उपलब्ध हैं!
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